45 हजार रूपये में किराये की बस कर मजदूर लौटे घर, ई-पास बनाने चक्कर काट रहे थे मजदूर, मानव अधिकार आयोग मित्र के हस्तक्षेप से मजदूरों को मिली मंजूरी

बालाघाट. शासन और प्रशासन भले ही लाख दावे कर रहा हो कि मजदूरों को उनके घर पहुंचाया जायेगा, लेकिन मैदानी हकीकत इससे दूर है. ताजा उदाहरण प्रदेश के धार जिले के अलग-अलग क्षेत्रो से निर्माण कार्य करने आये मजदूरों का है, जो लॉक डाउन के बाद से यहां फंसे थे. लॉक डाउन के बाद काम धंधे बंद होने से मजदूर अपने घर जाना चाहते थे किन्तु ई-पास की जटिलता और जल्दी ई-पास जारी नहीं होने से मजदूर महिनों से यही पड़े थे. जिसकी जानकारी मिलने के बाद मानव अधिकार आयोग मित्र श्रीमती फिरोजा खान ने मजदूरों से संपर्क किया और प्रशासन तक इनकी समस्याओं को पहंुचाया. जिसके बाद प्रशासनिक अनुमति से आज 14 मई को परिवार सहित सभी 57 लोग निजी ट्रेव्हलर्स की बस से धार के लिए रवाना हुए.

बताया जाता है कि बालाघाट जिले में सीता होम प्रायवेट लिमिटेड द्वारा 36 वीं बटालियन में किये जा रहे निर्माण कार्य के लिए ठेकेदार द्वारा प्रदेश के धार जिले के सभी मजदूर को लाया गया था. जो दिपावली के बाद से यहां काम कर रहे थे, लेकिन इसके बाद वैश्विक महामारी कोविड-19 से बचाव के लिए 22 मार्च को जनता कर्फ्यु और उसके बाद 24 मार्च से लॉक डाउन के बाद मजदूर यहां फंस गये थे. काम धंधे बंद होने से सभी मजदूरों के सामने परिवार के जीविकोपार्जन की समस्या खड़ी हो गई थी. हालांकि इस कुछ ठेकेदार और कुछ उनके पास बचे राशन से वह किसी तरह अपना और परिवार का जीवन निर्वाह करते रहे किन्तु लॉक डाउन के लगातार बढ़ने और काम धंधे बंद होने के कारण अब उनके समक्ष भूखों मरने की नौबत आ गई थी. जिससे मजदूर घर जाना चाहते थे. जिसके लिए उन्होंने अपने स्तर से प्रशासन तक अपनी समस्याओं को पहुंचाने का प्रयास किया किन्तु हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लगी.  

बताया जाता है कि मजदूरों को जाने के लिए ई-पास बनाने के लिए कहा जाता रहा, लेकिन भोले-भाले मजदूर ई-पास की ज्यादा जानकारी नहीं होने से परेशान होते रहे, इस दौरान कुछ लोग ई-पास बनाने के नाम पर उनसे सौदा करने भी पहुंचे थे, लेकिन वे उनके झांसे में नहीं आये. इस दौरान मानव अधिकार आयोग मित्र श्रीमती फिरोजा खान को मजदूरों की परेशानी की जानकारी मिली. जिसके बाद वह उनसे मिलने पहुंची और उनकी समस्याओ को जानकर उसे प्रशासन तक पहुंचाने का प्रयास किया. मानव अधिकार आयोग मित्र की पहल पर अंततः प्रशासन ने मजदूरों के पंजीयन और स्वास्थ्य परीक्षण के बाद उन्हें जाने की अनुमति प्रदान की.

45 हजार रूपये से किराये में की बस

प्रशासन से मजदूरों को किसी माध्यम से घर नहीं भिजवाये जाने से परेशान मजदूरों ने आपस में रूपये एकत्रित कर 45 हजार रूपये में किराये से एक निजी ट्रेव्हलर्स की बस की और उसके माध्यम से वह अपने गृहग्राम की ओर रवाना हुए. मजदूरों ने बताया कि उन्होंने बालाघाट में काम कर मुश्किल समय के लिए जो राशि जोड़कर रखी थी, वह किराये में खर्च हो गई, लेकिन इस बात की खुशी है कि वह अपने घर जा रहे है. लॉक डाउन के बाद अब इच्छा होगी तो वह यहां काम करने आयेंगे.  

इस मामले में मानवीयता के नाते मजदूरों की मदद करने वाली मानव अधिकार आयोग मित्र श्रीमती फिरोजा खान ने बताया कि बालाघाट में प्रदेश के धार जिला से पहुंचे मजदूर लॉक डाउन के बाद काम धंधे बंद होने से मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान थे. जिनकी जानकारी मिलने के बाद उन्होंने मजदूरों को उनके गृहक्षेत्र में भेजे जाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों से चर्चा की. जिस पर प्रशासन ने स्वास्थ्य परीक्षण के बाद मजदूरों को जाने की अनुमति प्रदान की. उन्होंने बताया कि मजदूर काफी समय से ई-पास बनाने भटक रहे थे, लेकिन उनके ई-पास नहीं बन रहे थे. ई-पास को लेकर जिले में गोरखधंधा भी जमकर चल रहा है. कुछ प्रायवेट लोग, लोगों से ई-पास बनाने के नाम पर संपर्क कर रहे है. जिसकी एप्रोज है उसके ई-पास बन रहे है. उन्होंने कहा कि मजदूरों को सकुशल भिजवाने के शासन, प्रशासन के दावे धरातल पर सही साबित नहीं हो रहे है. जिसके लिए शासन, प्रशासन को सोचने की आवश्यकता है. मजदूर भले ही अपने राशि खर्च कर अपने गृहक्षेत्र जा रहा है लेकिन वह खुश है कि वह किसी तरह अपने घर पहुंच जायेगा.   


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