48 घण्टे के सफर के बाद भी नहीं घर नहीं पहुंच पाये प्रवासी मजदूर, रास्ता भटककर पहुंचे बालाघाट, भूखे ही तय कर रहे थे घर का सफर

बालाघाट. प्रवासी मजदूरों की तकलीफ कम होने का नाम नही ले रही हैं. जिले की सीमा पर मंगलवार की देर रात करीब 150 श्रमिक 4 बसों में रास्ता भटक कर बालाघाट पहुंचे. इन श्रमिकों को पिछले 48 घंटो तक यात्रा करने के दौरान ना कहीं खाना मिला ना कहीं पानी. जिले की मोवाड़ सीमा के रास्ते ये श्रमिक जिले की सीमा में दाखिल हुए, जबकि इन्हे नागपुर से सीधे जबलपुर हाईवें पकड़ कर अपने जिलो की ओर जाना था. लेकिन बस चालको को रास्ता नहीं मालूम होने के कारण वे भटकते हुए महाराष्ट्र से होते हुए मप्र की सीमा से लगे हुए तुमसर होते बालाघाट मुख्यालय पहुंच गए. प्रवासी मजदूरो के आने की जानकारी जैसे ही जिला प्रशासन को लगी वैसे ही कलेक्टर दीपक आर्य द्वारा संपर्क कर इन मजदूरों को जिला मुख्यालय लाया गया, जिन्हें अपने जिले भेजने के लिए तहसीलदार रामबाबू देवांगन सहित नगरपालिका एवं अन्य कर्मचारी स्थानीय बस स्टैण्ड पहुंच गए.  

तहसीलदार ने समाजसेवी संस्था की मदद से की खाने की व्यवस्था

रात्रि करीब 8. 30 बजे आंध्रप्रदेश की एक के बाद एक चार बसें बस स्टैण्ड पहुंची, जहां पर उपस्थित तहसीलदार द्वारा जानकारी लेते हुए इन सभी मजदूरो को स्थानीय बस से उनके ग्रह जिले भेजने की व्यवस्था की गई. इस बस में मप्र के उज्जैन, नीमच, रायसेन, सिहोर, खण्डवा, छतरपुर, दतिया, भोपाल, सिंगरौली, रीवा, सतना, कटनी जिले लगभग 150 से भी अधिक मजदूर एवं बच्चे शामिल थे. इस दौरान चालक ने बताया कि वे आंध्रप्रदेश की सीमा से आखरी जिले से इन मजदूरो को लेकर रवाना हुए थे, लेकिन आंध्रप्रदेश की सीमा पार करने के बाद वे महाराष्ट्र राज्य में पहुंच गए और उन्हें रास्ते की जानकारी नहीं होने के कारण वे भटकते हुए महाराष्ट्र से होते हुए मध्य प्रदेश की सीमा में प्रवेश करें. मप्र की सीमा में पहुंचते ही उन्हें रोक लिया गया तथा उनसे संबंधित जानकारियां प्राप्त कर मुख्यालय भेजा गया. उन्होने कहा कि विगत दो दिनों से लगातार बिना भोजन किए चले आ रहे हैं. जिस पर तहसीलदार राम बाबू देवांगन द्वारा उन्हे समाजसेवी संस्था महावीर इंटरनेशलन द्वारा बांटी जा रही नास्ते की किट प्रदान की गई. जिसके बाद उनके लिये खाने की भी व्यवस्था जिला प्रशासन द्वारा की गई.  

मजदूरों की व्यथा, जहां कही रूकती थी बसें भगा देती थी पुलिस, बालाघाट से बसें देकर भेजा गया घर 

इस संबंध में कुछ मजदूरो से चर्चा की गई तो उन्होने बताया कि वे कमाने के लिए आंध्रप्रदेश गए हुए थे, लेकिन कोरोना महामारी के लॉकडाउन में फंस गए, कोई साधन नहीं मिलने के कारण उनके द्वारा वहां के शासन-प्रशासन से गुहार लगाई गई जिनके द्वारा उन्हें बस से उनके गृह जिले के लिए भेजा गया, लेकिन वहां के चालको को मप्र के रास्तो का जानकारी नहीं होने के कारण वे भटकते हुए बालाघाट पहुंचे. उन्होने बताया विगत 48 घण्टे से अधिक का सफर वे भूखे ही कर रहे हैं, कहीं पर भी भोजन की व्यवस्था नहीं मिली, यदि कहीं चालक द्वारा वाहन रोका जाता तो उन्हें वहां से भगा दिया जाता था. लेकिन कहीं पर भी उनकी भोजन की व्यवस्था नहीं हुई उनके पास जो कुछ भी था उसी से अपना पेट भर रहे थे. और जैसे तैसे यहां तक पहुंचे है. जिसके बाद यहां के प्रशासन ने उन्हे बसें देकर उनके गंतव्य की ओर रवाना किया.  

सुखा नाश्ता मिलते ही टुट पड़े श्रमिक, भूख से बेहाल थे मिली राहत

इस दौरान तहसीलदार द्वारा जैसे ही श्रमिको को महावीर इंटरनेशलन द्वारा बांटे गये सूखे नाश्ते के पैकेट दिये गये. भूख से बदहाल श्रमिक उस पर टुट पड़े. विदित हो कि जिले में सीमा से आने वाले प्रवासी मजदूर परिवार को 10 मई से लगातार  प्रति प्रतिदिन सैकड़ों मजदूरों को 7 दिन की राशन सामग्री सूखे नाश्ते एवं  बिस्किट आदि के साथ के साथ 12 आइटम का किट देर रात तक भी प्रदान करने का सिलसिला जारी है. इस कार्य में संस्था के राजू यादव द्वारा पिछलेे 20 दिनो से लगतार यह सेवा संस्था के सौजन्य से दी जा रही है.  

इन जिलों के थे प्रवासी मजदूर

आंध्रप्रदेश से चार बसों में आए प्रवासी मजदूर मध्यप्रदेश के कटनी जिले के 25, सतना 3, रीवा 4, सिंगरौली 3, छतरपुर 29, दतिया के 2, भोपाल 19, सिहोर 5, उज्जैन 10 तथा रायसेन 32, नीमच 2, खंडवा के 8 मजदूरों के अलावा प्रवासी मजदूरों के बच्चे भी इनके साथ शामिल थे जिन्हें जिला प्रशासन द्वारा बस से शिफ्ट कर जिले की बसों के माध्यम से इनके गृह जिलों में भेजा गया.


Web Title : EVEN AFTER A JOURNEY OF 48 HOURS, THE MIGRANT LABOURERS WHO WERE NOT ABLE TO REACH HOME, STRAYED ALONG THE WAY, BALAGHAT, WERE STARVING AND TRAVELLING HOME.