बालाघाट. संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस, जिले में भी आदिवासी समाज द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया गया. लॉक डाउन के बावजूद विश्व आदिवासी दिवस पर उत्साह देखते ही बनता था. खासकर बालाघाट सहित आदिवासी क्षेत्र बैहर में विश्व आदिवासी दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमो का आयोजन किया गया. बालाघाट में विश्व आदिवासी दिवस पर वीरांगना रानी दुर्गावती सामुदायिक भवन में परंपरानुसार बड़ा देव की पूजा अर्चना की गई. इस दौरान आदिवासी नेत्री श्रीमती हीरासनबाई उईके, आदिवासी विकास परिषद अध्यक्ष भुवनसिंह कोर्राम, प्रवक्ता पीतम सिंह उईके, मनोज कोड़ापे, महेन्द्रसिंह उईके, पंकज उईके सहित सामाजिक लोग मौजूद थे.
बड़ा देव पूजा अर्चना के बाद मंचीय कार्यक्रम आयोजित किया गया. जहां वक्ताओं ने विश्व आदिवासी दिवस और आजादी के 70 सालों बाद भी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे आदिवासियों की स्थिति पर विस्तृत विचार रखते हुए सरकार से आदिवासियों के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं को आदिवासियों तक पहुंचाने की बात कही. मंचीय कार्यक्रम के उपरांत विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासी विकास परिषद के नेतृत्व मंें जागरूक सामाजिक लोगों ने जिला चिकित्सालय में पीड़ित मानवता के सेवार्थ रक्तदान किया और अस्पताल में भर्ती मरीजों को फल वितरण किया.
समाज के मेधावी छात्र, छात्राओं को किया गया सम्मानित
विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासी विकास परिषद द्वारा बोर्ड परीक्षाओ में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने पर समाज के प्रतिभावान छात्र, छात्राओं सोमनाथ मसराम, साक्षी मर्सकोले, डोमेन्द्र धुर्वे, विशाखा मड़ावी, रितेश कोड़ापे, विवेक मड़ावी, शिवम मर्सकोले, दीप्ति मर्सकोले, अंकित धुर्वे, स्वाती उईके, दामेश धुर्वे, पल्लवी भोयर, अनिल सैयाम, जयकुमार वाड़िवा, देवांश तेकाम, आयुष्मान मर्सकोले, अंजली सलामे, अुनभा उईके, रिशिता उईके, विभा उईके, तेजेश्वरी मरकाम, खुशबु मरकाम और प्रतिभा कुरचे का सम्मान किया गया.
जिले में आदिवासियों की हालत चिंताजनक
आदिवासी(जनजाति)जीवन से आरंभ से ही जल, जंगल और जमीन से जुड़ा रहा है. समय के साथ-साथ बदलाव हुए हैं और यह समाज भी बदला है. आदिवासी(जनजाति)समाज प्रकृति प्रेमी है और अपनी माटी से सर्वाधिक लगाव रखता है, परन्तु आदिवासी समाज के युवा, बुजुर्ग, महिला अपनी माटी छोड़ पलायन को मजबूर है. पर्याप्त रोजगार के साधन नहीं होने से कई युवा बेरोजगार है. इतना ही नहीं, रोजगार नहीं होने से क्षेत्र में पलायन की समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है. बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में अन्य राज्यो में पलायन कर जाते है. जिले में बड़े उद्योग या व्यापार नहीं होने से लोगों के सामने हमेशा रोजगार का संकट रहता है. अधिकांश युवा यहां से रोजगार की तलाश में बड़ों शहरों की तरफ जाने को मजबूर है. रोजगार के लिए पलायन की समस्या ग्रामीण अंचलो में अधिक है. आदिवासी समाजजन मजदूरी के लिए जाने को मजबूर है. यही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में जिले में आदिवासियों को मूलभूत सुविधायें भी नहीं मिल पा रही है. आलम यह है कि आदिवासियों के उत्थान के लिए बनाई गई योजनायें, आदिवासियों तक पहुंचने के पहले ही चट हो जाती है. जंगलो में निवास कर रहा आदिवासी भोले-भाले होने के कारण इनकी योजनाओं को इन तक पहुंचाने वाले सफाचट कर अपनी आर्थिक स्वार्थपूर्ति कर रहे है. बालाघाट में बैगाओं के आगे लाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा प्रतिवर्ष बैगा ऑलंपिक का आयोजन किया जाता है लेकिन इस ऑलंपिक के बाद बैगा आदिवासियो को कोई सुध नहीं ली जाती है. लाखों रूपये के होने वाले इस आयोजन से भले ही प्रशासन अपनी पीठ थप-थपाने का काम करती है लेकिन जमीनी धरातल पर बैगा आदिवासी की हालत इससे जुदा है. परदे के पीछे बैगा आदिवासी आज भी अपनी आवश्यकताओं और सुविधाओं के लिए तरस रहा है.