डीवीसी का 73वाँ स्थापना दिवस मनाया गया

निरसा(बंटी झा) :- आज दामोदर घाटी निगम(डीवीसी) का 73वाँ स्थापना दिवस मनाया गया. ठीक आज ही के दिन यानी 7 जुलाई, 1948 को दामोदर घाटी निगम कि स्थापना  कि गयी थी. जिनको लेकर आज मैंथन,  पंचेत, कोलकाता,  दुर्गापुर, बोकरो थरमल, चंदरपुरा, कोडरमा, मेजिया, रघुनाथपुर एवं इसके विभिन्न ग्रेडों में स्थापना दिवस मनायी गयी. करोना से पिड़ित देश एवं उसके निर्देशों का पालन करते हुए बड़ा हीं  सादगी ढंग से डीभीसी का जन्म  दिन मनाया गया.

दामोदर या देवनाद (जहाँ  से निकलती है उसे लोग देवनाद नदी के नाम से जानते हैं ) कमारपेट हिल झारखंड के फलामु जिले से निकलकर हुगली यानी गंगा नदी में  जा मिलती है. इस दरमियान कुल 541 किमी की दुरी तय करती है. इसकी मुख्य  सहायक नदियों में मौउला, साफी हाहरो, बोकारो, कोनार, जमनिया, गोवारड,


ईजरी,एवं बराकर हैं.


दामोदर बेसीन कुल लगभग 24,235 वर्ग  किलोमीटर में झारखंड के 7 जिलों एवं बंगाल के पांच जिलों  से होकर गुजरती है, यह घाटी खनिज संपदा से भरपुर है.


पूर्व  में  यह नदी ´रिवर औफ सौरो´ के नाम से प्रसिद्ध था पूर्व  के सौ साल के रिकार्ड बताते हैं  कि सौ साल में  करिब 22 साल काफी खतरनाक  बाढों का सामना करना पड़ा जिससे काफी नुकसान झेलना, पड़ा यहाँ  तक कि कोलकाता के ऊपर भी खतरा मंडराने लगा था.

अत:सन 1943 में 10 लोगों  की कमीटी गठन कर डा मेघनाथ साहा सदस्य  एवं वरदवान के महाराजा को चेयरमैन  नियुक्त कर दामोदर नदी के उफान को रोकने के लिये  टिम बनी और अमेरिका के टिनैसी भेली आॅथोरिटी (टिभीए) के आधार पर फरवरी 1948 को संसद में  पेश कर बिल को ध्वनी  मत से पास कर दिया गया और इसकी लिखित संरचना मार्च 27,1948 को तैयार की गई और इस प्रकार 7 जुलाई, 1948 को दामोदर घाटी निगम (DVC) की स्थापना हुई  /जन्म  हो गयी.


डीभीसी एक मल्टी परपस प्रोजेक्ट के तहत इसकी संरचना बिजली उत्पादन के साथ-साथ बाढ को रोकना, सिंचाई, ट्रंसमिसन एवं डिसट्रबियुशन, इसका मुखय काम था इसके अलावे नेविगेशन, सोयाल कंजरवेशन, पीसीकलचर, गाँव के लिये सवासथ एवं खेती कल-कारखाने को बिजली देकर इस श्रेत्र के विकास एवं अपने विकास को लेकर प्रमुख कार्यो को शामिल किया गया.


धीरे-धीरे  कई प्रोजेक्टों कि स्थापना कि गयी और एक समय बिजली उत्पादन के रिकॉर्ड स्थापित  कर एवं उसकी विक्री कर पुरे भारत को अचंभित कर दिया. आज भी ट्रांसमिशन के श्रेत्र में इसका कोई शानी नहीं.


परंतु आज यह संस्था अपने ही बुने जाल में  फंसकर अपनी प्रतिष्ठा बचाने की यदोजहद कर रहा है पर बिजली की चमक अभी भी बरकरार है तभी तो मांग और पूर्ति में किसी भी संस्था  से कम नहीं  है ना ही आंकने की कोशिश की जानी चाहिए. पूर्व  के कर्मठ एवं आज के कर्मियों का मेंहनत ही है कि अभूतपूर्व प्रतिस्पर्धा में  भी इसकी बहती लहु की धारा में  जरा भी जोश की कमी नहीं है. बिते वर्षों  के विभिन्न प्रकार के उतार-चढाव में सब कुछ झेलते हुए आज के आधुनिक कंप्यूटरीकृत युग में  कंधा से कंधा मिलाकर चलते हुए एक मिशाल कायम कर प्लैटिनम वर्ष मनाने के लिये बेताब है.