नहीं रहे खान दुर्घटना में 65 मजदूरों को मौत के मुंह से बचाने वाले बीसीसीएल के पूर्व जीएम जेएस गिल

धनबाद/अमृतसर: विश्व की खान दुर्घटनाओं के इतिहास के एक महान नायक का मंगलवार को निधन हो गया, जो एक नहीं, दो नहीं, बल्कि कुल 65 मजदूरों को मौत के मुंह से खींच लाये थे. ये थे अमृतसर निवासी जसवंत सिंह गिल. उनकी उम्र 80 वर्ष थी. वे अपने पीछे पत्नी, दो पुत्र एवं दो पुत्रियों को छोड़ गए हैं. उनकी मृत्यु का कारण कार्डियेक अरेस्ट बना. बुधवार दोपहर को शहीदां साहिब श्मशानघाट में सरकारी सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया.   

राकोमसं महामंत्री एके झा ने किया शोक व्यक्त

राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के महामंत्री एके झा ने इस बाबत गहरा शोक व्यक्त किया है. उन्होंने कहा कि कोयला उद्योग के लिए यह दोहरा दुख का विषय है जेएस गिल का दुनियां-ए-फानी से कूच कर जाना और बरकाकाना निवासी इंटक के वरिष्ठ नेता योगेन्द्र सिंह का निधन होना. दोनों की कर्मठता एवं उद्योग के प्रति योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है. श्री झा ने जेएस गिल के पुत्र डॉ. सरप्रीत सिंह गिल को फोन कर अपना शोक व्यक्त किया है और ढांढस बंधाई.  

कैसे जांबाजी से 65 मजदूरों की बचाई थी जान 

घटना 1989 की है. उन दिनों गिल ईस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) में पोस्टेड थे. रानीगंज एरिया की महावीर कोलियरी में 13 नवंबर को ब्लास्टिंग की वजह से खदान में पानी भर गया. वहां उस समय 220 मज़दूर कार्यरत थे. छह की तो तत्काल मौत हो गयी. कुछ जो डोली के नज़दीक थे, फ़ौरन खदान से ऊपर निकल लिए गए. शेष 65 श्रमिक पानी में फंस गए और स्थिति ऐसी थी उनकी मौत निश्चित है, ऐसा पूरा प्रबंधन मानने लगा. लेकिन, वहां एक ही व्यक्ति ऐसा था जो न केवल अलग और अभूतपूर्व सोच रखता था और उसने ऐसा कर दिखाया जिससे उसकी चर्चा पूरे विश्व के कोयला उद्योग में तेजी से फैल गई. गिल ने सबसे पहले वहां मौजूद अफसरों की मदद से पानी को पम्प के जरिए बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन ये तरीका कारगर नहीं रहा. इसके बाद उन्होंने वहां कई बोर खोदे, जिससे खदान में फंसे मजदूरों तक जिंदा रहने खाना-पीना पहुंचाया जा सके. तब उन्होंने एक 2. 5 मीटर का लंबा स्टील का एक कैप्सूल बनाया और उसे एक बोर के जरिए खदान में उतारा. जसवंत राहत और बचाव की ट्रेनिंग ले चुके थे. इसलिए वे उस माइन में उतरे. कई लोगों ने और सरकार ने इस बात का विरोध भी किया, लेकिन जसवंत ने किसी की बात मानते हुए रेस्क्यू जारी रखा. उनके दिए आइडिया से खदान में से एक-एक कर लोगों को उस कैप्सूल के जरिए 6 घंटे में बाहर निकाल लिया गया. जब तक सभी 65 लोगों को खदान से बाहर नहीं निकाल लिया गया, जसवंत खुद बाहर नहीं आए.

बीसीसीएल के भौंरा और लोदना के रह चुके थे जीएम

एके झा ने बताया कि स्व. गिल भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) के एरिया 10 (लोदना) एवं पूर्वी झरिया क्षेत्र (भौंरा) में महाप्रबंधक के रूप में कार्य कर चुके थे. यहां भी उन्होंने अपनी काबिलियत, माइनिंग क्षेत्र का ज्ञान, कौशल आदि का कंपनी हित में बखूबी प्रयोग किया था.  

राष्ट्रपति सम्मान से भी नवाजे गए थे

इस बहादुरी के लिए सन् 1991 में जसवंत को इंडियन गवर्नमेंट की तरफ से प्रेसिंडेट रामास्वामी वेंकटरमन के हाथों सिविलियन गेलेन्ट्री अवार्ड यानी सर्वोत्तम जीवन रक्षक पदक दिया गया. साथ ही, कोल इंडिया ने उनके सम्मान में 16 नवंबर को ´रेस्क्यू डे´ घोषित किया. गिल के बनाए कैप्सूल मैथड कई देशों के द्वारा इस्तेमाल किया गया. 2010 में चिली में इस कैप्सूल का इस्तेमाल हुआ था.

लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी मिला स्थान

गिल की इस जांबाजी को लिम्क बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी जगह मिली. इसके अतिरिक्त उन्हें प्रतिष्ठित भगत पूरण सिंह पुरस्कार भी मिला. तमिलनाडु विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्ट्रेट की उपाधि प्रदान की थी.  

बॉलीवुड गिल पर बना रहा है फिल्म 

स्वर्गीय जसवंत सिंह गिल पर कैप्सूल मैन नामक फिल्म तैयार हो रही है. इसमें अजय देवगन मुख्य भूमिका में हैं. यह बायोपिक होगी.