देश में कोरोना वायरस का संकट लगातार बढ़ता ही जा रहा है. वहीं देश में कोरोना संकट से निपटने के लिए योग्य डॉक्टर्स की कमी भी देखने को मिल रही है. इस बीच कोरोना काल में सेवा देने को आतुर करीब 50 हजार डॉक्टर एफएमजीई नियमों की रोक के कारण मजबूर हैं और सेवा नहीं दे पा रहे हैं.
रोजाना हजारों की संख्या में कोरोना वायरस के नए मरीज सामने आ रहे हैं. बढ़ते मरीजों की तादाद, छोटे शहरों और गांवों में चिकित्सीय सुविधाओं के घोर अभाव के बीच डॉक्टर्स की भी भारी किल्लत देखने को मिल रही है.
वहीं विदेशों के मेडिकल कॉलेजों से एमबीबीएस की डिग्री लेकर आए भारतीय डॉक्टर्स की भी फौज है. युवा, प्रतिभावान और ऊर्जा से भरे ये डॉक्टर्स अपनी सेवाएं देने को बेताब हैं लेकिन केंद्र सरकार के एक साल की अतिरिक्त इंटर्नशिप पूरी करने के बाद ही चिकित्सा कार्य करने देने के नियम की मजबूरी इनको रोक रही है.
भारत में मौजूदा नियमों के मुताबिक किसी भी दूसरे देश के मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री लेकर वतन लौटे डॉक्टर को अपने यहां के किसी अस्पताल सह मेडिकल कॉलेज में साल भर इंटर्नशिप करनी होती है. फिर फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम (एफएमजीई) पास करना होता है. इसके बाद ही वो चिकित्सा कार्य कर सकता है.
एफएमजीई रद्द कर मिले लाइसेंस
छात्र इस मांग पर भी जोर दे रहे हैं कि एफएमजीई परीक्षा में उनका पासिंग कटऑफ भी 50 फीसदी से घटा कर 35 फीसदी कर दिया जाए. हालांकि सरकार का कहना है कि इस मांग पर शायद विचार न हो. भारत में 31 अगस्त से एफएमजीई की परीक्षा होनी हैं. विदेशों के मेडिकल कॉलेज से मेडिकल ग्रेजुएट होकर लौटे छात्रों की सरकार से गुजारिश है कि एफएमजीई रद्द कर एक साल के लिए डॉक्टरी का लाइसेंस दे दिया जाए.
नियमों में छूट देने पर विचार
वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सरकार को इस बारे में पता चला है. लेकिन कई तरह की तकनीकी और कानूनी दिक्कत है. इसके कारण चिकित्सा सेवा के संकट और डॉक्टर्स की जरूरत को ध्यान में रखते हुए सरकार इस पर विचार कर सकती है. हो सकता है सिर्फ इस साल फौरी तौर पर नियमों में ढील देने के इस प्रस्ताव पर विशेषज्ञों के साथ विचार किया जाए.