Special Story : पॉलिटिकल स्टंट के शिकार हो गये एसपी राकेश बंसल!

अभी एक बरस भी पूरे नहीं हुए कि झारखंड की पहली स्थिर सरकार का दावा करने वाली हुकूमत-ए-रघुवर ने देश की कोयला राजधानी धनबाद का पुलिस कप्तान दूसरी बार बदल डाला.

जी हां, ये काम उसी सरकार ने किया है, जो हाल ही में योजना बना रही थी कि ट्रांसफर-पोस्टिंग साल भर में, विभिन्न सरकारी विभागों में, एक ही बार एक साथ हो, ताकि विकास-कार्य प्रभावित न हो सकें. ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी क्या आफत आ गयी कि धनबाद एसपी (कहने के लिए झारखंड के डेढ़ दर्जन पुलिस अफसरान समेत) का ट्रांसफर कर दिया गया.

वर्ष भी के भीतर, वह भी तब जब केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी की वजह से मुख्यमंत्री धनबाद के दौरे पर थे, अचानक स्थानांतरण का आदेश जारी होना कई सवालों को जन्म दे रहा है.

      01. मसलन, लगभग साढ़े 11 महीने के राकेश बंसल के कार्यकाल से सरकार खुश नहीं थी?

      02. ट्रांसफर-पोस्टिंग साल में एक ही बार हो, सरकार का यह प्लान एक महीने के भीतर ही दम तोड़ गया?

      03. क्या धनबाद में क्राइम-रेट बढ़ गया था?

      04. क्या धनबाद की जनता आरक्षी अधीक्षक के खिलाफ आवाज उठा रही थी?

      05. क्या धनबाद में अवैध धंधे बहुत तेजी से पैर पसार रहे थे?

      06. क्या धनबाद में पुलिस की कार्यशैली सवालों के घेरे में थी ?

आखिर, उपरोक्त प्रश्नों में से कोई तो एक वजह होगी, जिस कारण सरकार को ऐसा फैसला लेना पड़ा. वैसे, यह सरकारी काम-काज का तरीका है, जिस पर सवाल करना समीचीन नहीं है.

लेकिन, फैसलों के जब ओर-छोर नहीं मिलते हैं, तो एक क्या, सवालों की श्रृंखला, सुरसा के मुंह की तरह खुलती ही जाती है.

अभी-अभी कुछ दिनों पहले, राज्य सरकार ने, धनबाद में, तीन एसपी की जरूरत महसूस करते हुए एसएसपी, सिटी एसपी एवं ग्रामीण एसपी के पदों का सृजन कैबिनेट के फैसले के तहत किया था.

फिलहाल, इन तीनों पदों के लिए समुचित संसाधन भी तैयार नहीं हो पाये थे, जैसे ग्रामीण एसपी एवं सिटी एसपी के कार्यालय एवं आवास कहां होंगे, सरकार पूरी तरह यह तय नहीं कर पायी थी, इसकी व्यवस्था करना तो दूर की बात है.

यानी अंदरखाने, इन तीनों पदों को व्यवस्थित करने की योजना की हालत ‘दिल्ली दूर’ वाली थी.

मतलब, धनबाद एसपी के स्थानांतरण की बात सरकारी स्तर पर नहीं सोची जा रही थी. फिर, अचानक 27 जनवरी को यह फैसला कैसे ले लिया गया ?

झारखण्ड के जन्म से लेकर अबतक 15 सालों में, लगभग 12 वर्षों तक भारतीय जनता पार्टी ही सत्तासीन रही.

लेकिन, सूबे में विकास नहीं कर पाने की अपनी अक्षमता को पार्टी स्थिर सरकार न होने का बहाना बना कर पाटती रही है.

अतः, जनता ने इस बार बहुमत की सरकार जनता ने बनाकर बीजेपी की चिर-प्रतीक्षित मांग पूरी की और एक स्थिर सरकार को खड़ा किया.

लेकिन, राज्य के हित के लिए स्थिर सरकार और गुड गवर्नेंस की माला जपने वाली भाजपा की सरकार ‘अस्थिर प्रशासन’ करके विकास की गाड़ी दौड़ा पायेगी?

अखिल भारतीय सेवा संवर्ग के पदाधिकारियों को रह-रह कर ताश के पत्तों की तरह फेंटकर रघुवर सरकार विकास के कौन से लक्ष्य को प्राप्त कर पायेगी, यह समझ से परे है.

राज्य में पिछले दस दिनों ने झारखंड राज्य शिक्षा परियोजना एवं सर्व शिक्षा अभियान से जुड़े पदाधिकारी-कर्मचारी हड़ताल पर हैं. पूरे राज्य के शिक्षा कार्यालयों की व्यवस्था मानव-संसाधन के अभाव में ध्वस्त हो चुकी है.

लेकिन, ट्रांसफर-पोस्टिंग में ‘रैपिड एक्शन’ लेने वाली रघुवर सरकार को न तो सूबे की शैक्षिक व्यवस्था और न ही हड़ताली पदाधिकारियों-कर्मचारियों की कोई सुध है.

जाम लगना धनबाद की सबसे बड़ी समस्या है. यहां की जनता बेतरह इस समस्या से परेशान है. सैंकड़ों बार सरकार के ‘दर’ पर इस संबंध में ‘अरदास’ की गयी है.

परंतु, एक साल से अधिक पुरानी हो चली मौजूदा राज्य सरकार ने इस संदर्भ में एक तिनका भी नहीं खड़काया है, फ्लाई ओवर जैसी बात तो अकल्पनीय ही लगती है.

अब फिर आते हैं पुलिस अधिकारियों के स्थानांतरण के मुद्दे पर. लगभग एक-डेढ़ महीने पहले धनबाद के एसपी राकेश बंसल ने अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करने का कारण बताते हुए, खुद को जैप में स्थानांतरित करने का आग्रह सरकार से किया था.

सरकार ने श्री बंसल (भापुसे 2007 बैच) की बात पर गौर तो नहीं किया, उन्हें नक्सल अभियान के एसपी के पद पर भेज दिया और उनसे जूनियर सुरेन्द्र झा (भापुसे 2010 बैच) को धनबाद का एसएसपी बना दिया.

अगर कोयला राजधानी में, पुलिसिया व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त करने की सरकार की पूर्व निर्धारित मंशा होती, तो एक साथ एसएसपी, सिटी एसपी व ग्रामीण एसपी; तीनों पदों के अधिकारियों की पोस्टिंग की जाती.

लेकिन, ऐसा नहीं हुआ, जो यह साफ दिखाता है कि सरकार जल्दबाजी एवं किश्तों में फैसले ले रही है.

इसके पीछे का कारण कोई दवाब है या स्वार्थसिद्धि, राम जाने.

Web Title : SPECIAL STORY : SP RAKESH BANSAL THE VICTIM OF POLITICAL STUNTS!