छठ एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें कोई कर्मकांड नहीं है. इसमें पूजा-अर्चना के लिए किसी पंडित या शास्त्रों की जरूरत नहीं पड़ती है. छठ व्रती ही सारे कर्मकांड करते हैं. वहीं हमारा समाज बदल रहा, बोलचाल, भाषा, संस्कृति, आचार-विचार सबमें बदलाव दिखता है. कर्मकांड विशेषज्ञ कहते हैं कि हमारे अन्य पर्वों में जहां आधुनिकता के कारण पर्याप्त परिवर्तन आ चुका है, वहीं छठ पर्व में हम पाते हैं कि लगभग 13वीं शदी से जो विधान शास्त्रों में पाये जाते हैं, वे आज भी सुरक्षित हैं. यह इस पर्व के प्रति असीम आस्था का परिणाम है.
छठ पूजा में इन चीजों का होता है इस्तेमाल
ज्योतिषी बताते हैं पूजन में जहां परंपरा की आज भी प्रधानता देखी जाती है,वहीं व्रतियों ने परिस्थिति व बदलते समाज के हिसाब से आधुनिकता का भी इसमें समावेश किया है. परंपरा है कि व्रती 36 घंटे के व्रत के दौरान मिट्टी पर ही सोते हैं पर आज शहरों में मिट्टी के घर कहां मिलेंगे. व्रती सोते तो हैं भूमि पर ही पर वह आज पक्का हो गया है. खरना के प्रसाद में गुड़ की खीर की प्रधानता होती है पर आज चीनी की खीर का प्रचलन होने लगा है. पहले परिधान में सूती का अधिक इस्तेमाल होता था पर आज सिल्क भी लोग पहनने लगे हैं. लोकआस्था और सूर्योपासना का महापर्व छठ सूर्य की पूजा का व्रत है. यह बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में पूरी श्रद्धा व भक्ति से मनाया जाता है. पांच देवताओं की पूजा में सूर्य भी शामिल हैं. यह ऐसा पर्व है जिसमें उदीयमान सूर्य से पहले अस्तालगामी सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है. भगवान भास्कर के साथ ही छठी मैया की भी आराधना की जाती है. देवी दुर्गा और पार्वती ही षष्ठी देवी के रूप में पूजी जाती हैं. लाखों श्रद्धालु भगवान भास्कर को अघ्र्य प्रदान करने के लिए गंगा घाटों और अन्य पवित्र सरोवरों में पहुंचते हैं. इसके प्रति समाज की आस्था और श्रद्धा दिखाई पड़ती है. इसे बताने की जरूरत नहीं पड़ती है. जो स्वच्छता और पवित्रता अनेक माध्यमों से समझाने पर भी नहीं होती वह लोग स्वयं कर लेते हैं.