दुर्गोत्सव 2018 : मां शैलपुत्री की पूजन से पूरी होगी मनोकामना, साधना से प्रारंभ होगा शक्ति का पर्व

माँ शैलपुत्री - शक्ति स्वरूप नवदुर्गा का प्रथम स्वरूप : वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्. वृषारुढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्. .

नवरात्र का पहला दिन माँ भगवती के प्रथम स्वरुप माँ शैलपुत्री को समर्पित है. माँ शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं इसलिए इन्हें पार्वती एवं हेमवती के नाम से भी जाना जाता है. माँ शैलपुत्री का वाहन वृषभ है, इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल एवं बाएं हाथ में कमल पुष्प है. भक्तगण  माँ शैलपुत्री की आराधना कर मन वांछित फल प्राप्त करते हैं. माँ दुर्गा को मातृ शक्ति यानी  करूणा और ममता का स्वरूप मानकर पूजा की  जाती है.

अत: इनकी पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिग्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों आमंत्रित होती हैं. कलश स्थापना के समय इन सभी का आह्वाहन किया जाता है और विराजने के लिए प्रार्थना की जाती है. माँ शैलपुत्री कि आराधना से मूलाधार चक्र जागृत होता है, यहीं से योग साधना का आरम्भ भी माना जाता है.

कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी और मुद्रा सादर भेट की जाती है. पांच पल्लवों से कलश को सुशोभित किया जाता है. इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते हैं और दशमी तिथि को इन्हें काटा जाता है.


Shailaputri literally means the daughter (putri) of the mountains (shaila). Variously known as Sati Bhavani, Parvati or Hemavati, the daughter of Hemavana - the king of the Himalayas, she is the first among Navadurgas.

Her worship takes place on the first day of Navaratri – the nine divine nights. The embodiment of the power of Brahma, Vishnu and Shiva, she rides a bull and carries a trident and a lotus in her two hands.


माता शैलपुत्री

शैलपुत्री हिमालय पर्वत की पुत्री हैं. पूर्वजन्म में ये राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थीं. तब इनका नाम सती था. एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत विशाल यज्ञ का आयोजन किया. उन्होंने सभी राजा-महाराजा व देवी देवताओं को निमंत्रण दिया, लेकिन भगवान शिव का औघड़ रूप होने के कारण उन्हें निमंत्रण नहीं दिया.

जब देवी सती को अपने पिता के द्वारा विशाल यज्ञ के आयोजन के बारे में पता चला तो उनका मन उस यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल होने लगा. तब उन्होंने भगवान शिव को अपनी इच्छा की अनुभूति कराई. इस पर भगवान शिव ने कहा कि किसी कारण से रुष्ट होकर तुम्हारे पिता ने हमे आमंत्रित नहीं किया है, इसलिए तुम्हारा वहां जाना कदाचित उचित नहीं होगा. लेकिन देवी सती भगवान शिव की बात पर विचार किये बिना अपने पिता के यहां जाने का उनसे आग्रह करने लगीं. तब भगवान शिव ने उनके बार-बार आग्रह पर वहां जाने की अनुमति दे दी.

जब सती वहां पहुंची तो उन्होंने देखा कि उनका कोई भी परिजन उनसे प्रेमपूर्वक बात नहीं कर रहा है. अपने परिजनों के इस व्यवहार को देखकर देवी सती को बहुत दुःख हुआ और तब उन्हें इस बात का आभास हुआ कि भगवान शिव की बात न मानकर उनसे बहुत बड़ी गलती हुई है.

वह अपने पति भगवान शिव के इस अपमान को सहन न कर सकीं और उन्होंने तत्काल उसी यज्ञ की योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर दिया. इसके बाद देवी सती ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में पुन: जन्म लिया और देवी शैलपुत्री के नाम से जानी गयीं.


पूजा विधि

सर्वप्रथम शुद्ध होकर चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर देवी शैलपुत्री की प्रतिमा स्थापित करें. तत्पश्चात कलश स्थापना करें. प्रथम पूजन के दिन “शैलपुत्री” के रूप में भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा लाल फूल, अक्षत, रोली, चंदन से होती है. उसके बाद उनकी वंदना मंत्र का एक माला जाप करे तत्पश्चात उनके स्त्रोत पाठ करें. यह पूर्ण होने के बाद माता शैलपुत्री को सफेद चीजों का भोग लगाएं और यह शुद्ध गाय के घी में बना होना चाहिए. माता को लगाए गए इस भोग से रोगों का नाश होता है.


मंत्रों से मनाएं माता को

ध्यान

वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्. वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्॥

पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा. पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥

प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्. कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥

 

स्तोत्र

प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्. धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्. सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन. भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन. भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

 

कवच

ओमकार: में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी. हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥

श्रीकार: पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी. हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥

फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा. मां दुर्गा का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी॥

ज्योतिष के अनुसार मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व


मां शैलपुत्री के मस्तिष्क पर अर्धचन्द्र्मा विराजित है. इसलिए यदि जातक की कुंडली में चन्द्रमा निर्बल है, तो उसे बलिष्ठ करने के लिए मां शैलपुत्री की आराधना अति-उत्तम है. देवी शैलपुत्री के हाथ में सुशोभित त्रिशूल जातक की कुंडली के छठे भाव जो कि शत्रुओं का भाव है, उसे निर्बल करता है, अत : शत्रुओं को परास्त करने के लिए भी मां शैलपुत्री की आराधना करनी चाहिए. मां के हाथ में उपस्थित कमल पुष्प, जातक की कुंडली के द्वादश भाव, जो की कुंडली का अंतिम भाव है का प्रतीक है, द्वादश भाव को भी बलिष्ठ करती हैं माँ शैलपुत्री.


इस राशि पर बरसती है मां की विशेष कृपा

मां शैलपुत्री की सवारी नन्दी है और वृषभ राशि का संकेत भी नन्दी है, तो वृषभ राशि वाले जातकों को भी मां शैलपुत्री की पूजा-आराधना का अच्छा लाभ मिलता है. मां शैलपुत्री का निवास मूलाधार चक्र है जो कि जागरूकता का प्रतीक है. जातक यदि अपनी इंद्रियों को वश में करना चाहता है, तो मां शैलपुत्री का पूजन एक अच्छा उपाय है, क्योंकि उनकी पूजा करने से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है. मां शैल पुत्री की विधि-विधान से पूजा करने पर मन स्थिर रहता है, एकाग्रता में वृद्धि होती है.


पहले दिन पूजा में रखें इन बातों का ध्यान

मां शैल पुत्री स्थिरता का प्रतीक है. यदि जातक का मन अस्थिर हो तो उसे आज के दिन अपने शयन कक्ष को अधिक से अधिक मात्रा में सफेद करें, तथा पूजा स्थल के आस-पास भी अधिक से अधिक सफेदी युक्त वस्तुएं होनी चाहिए. आज के दिन मां को अंतिम भोग कच्चे नारियल का होना चाहिए. इससे जातक के मन को स्थिरता प्राप्त होती है और मां शैल पुत्री उसे अपने मार्ग से विचलित नहीं होने देतीं.

Web Title : DURGOTSAV 2018: WITH PUJA OF MAA SHAILAPUTARI YOUR WISHES WILL BE FULFILLED

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