झारखंड गठन के 17 साल हुए पूरे, पर क्या राज्य के भविष्य की नींव हुई मजबूत ?

रांची : झारखंड गठन के 17 साल पूरे हो गए हैं. इस राज्य के गठन के पहले अलग राज्य के लिए लंबा आंदोलन किया गया. राज्य गठन के उद्देश्यों पर लगातार चर्चा होती रही है. लेकिन 17 साल के इस झारखंड ने अपने स्थापना के बाद क्या खोया क्या पाया यह बड़ा सवाल है. कहा जाता है कि 17 साल का उम्र युवा होने के ठीक पहले का है. इस उम्र में भविष्य की नींव खड़ी हो जाती है. झारखंड के 17 साल में राज्य के भविष्य का नींव खड़ा है या नहीं यह एक सवाल है.

राज्य गठन के उदेश्य की जब बात आती है तो माना जाता है कि बिहार से भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से अगल होने के कारण कई चीजें साथ नहीं चल पाती थी. साथ ही यहां के विकास और संरक्षण के लिए अलग से विचार करने की जरुरत थी. जल जंगल और जमीन को बचाने को लेकर लगातार लड़ाई लड़ी जाती रही. इन्हीं सारे सवालों को लेकर राज्य का गठन किया गया.

राज्य के गठन का उद्देश्य पूरी तरह से सफल नहीं

जानकारों का मानना है कि राज्य के गठन का उद्देश्य पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण रहा है तो वह है राजनीतिक अस्थिरता. इसके कारण ना तो विकास हो पाया और ना ही राज्य में उन चीजों को संरक्षित किया जा सका, जिसपर विवाद है. चाहे जल, जंगल और जमीन की लड़ाई की बात की जाए या फिर यहां परंपरा और संस्किति को बचाने की. चाहे सीएनटी एसपीटी एक्ट की बात हो या फिर स्थानीय नीति की. तमाम चीजें अस्थिर सरकार के जाल में उलझकर और पेचींदी होती चली गई

राजनीतिक अस्थिरता ने झारखंड को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है.   राज्य गठन के बाद की चर्चा की जाए तो राज्य में 13 सरकार 17 साल में बनी है. छह सीएम रहे हैं. वर्तमान सीएम रघुवर दास की सरकार है जो बहुमत में है. उन्होंने कई मंच से इस बात की चर्चा की है कि राज्य में अस्थिर सरकार होने के कारण विकास नहीं हो पाई है. लेकिन तीन साल की रघुवर सरकार के पास भी बहुत कुछ नहीं बोलने को है कि विकास कितनी हुई है. हालांकि कई मामलों में काम तेजी से शुरू होता नजर जरुर आया है, लेकिन विवाद भी कई सामने आए हैं, जो विकास में बाधक है. माना जा रहा है कि राज्य और केंद्र दोनों जगहों पर भाजपा की सरकार है और इसका फायदा राज्य को मिलेगा.

आर्थिक दृष्टिकोण के अगर बात की जाए तो राज्य में देश का 40 प्रतिशत खनिज मौजूद है. सरकार की तरफ से मोमेंटम झारखंड या फिर खनन मेला लगाकर निवेश की संभावनाओं को आगे जरुर बढ़ाया जा रहा है, लेकिन दशा बदलती नजर नहीं आ रही है. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने देश की कई बड़े शहरों के साथ साथ विदेशों में भी जाकर रोड शो किया और निवेशकों को आमंत्रित किया है. जापान के साथ साथ कई देशों के उद्यमियों ने इस राज्य में निवेश करने पर सहमति भी जताई है. अगर इसी रणनीति पर सरकार कायम रही तो शायद राज्य की आर्थिक स्थिति को बदला जा सकेगा. लेकिन सरकार को राज्य में पहले से मौजूद जमीन की समस्या की तरफ ज्यादा संजीदगी से ध्यान देना पड़ेगा.

विकास की गाड़ी को रोका भ्रष्टाचार और घाटाले ने 

झारखंड के विकास में बाधक कारणों पर चर्चा की जाए तो भ्रष्टाचार और घाटाले ने विकास की गाड़ी को रोक दिया है. एकीकृत बिहार के समय जहां पशुपालन घोटाले ने झारखंड के इलाके को बदनाम किया वहीं राज्य बनने के बाद खनन घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की गिरफ्तारी तक हुई है. इसके कारण राज्य की छवि खराब हुई है. भ्रष्टाचार के कारण राज्य में मूलभूत सुविधाओं के विकास पर ही असर नहीं पड़ा है, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार सभी मामलों में झारखंड काफी पीछे है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यहां की आर्थिक स्थिति को बेहतर करने की संभीवनाएं काफी हैं, लेकिन सरकार और सरकारी मशीनरी इस दिशा में सही कार्य नहीं कर पाई है.

गरीबी ने विकास की गति को रोका 

शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ साथ गरीबी ने यहां के विकास की गति को रोक दिया है. बेरोजगारी के साथ साथ पलायन यहां की बड़ी समस्या है, जिसपर 17 साल के बाद भी ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है. कुपोषण राज्य की सबसे बड़ी समस्या उभरकर सामने आ रही है, जो सरकार ही नहीं पूरे समाज के लिए बड़ी चुनौती है. नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4) 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के 47. 8 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं.

सर्वे से यह पता चला है कि इनमें से करीब चार लाख बच्चे अति कुपोषित हैं. हाल ही में झारखंड के सिमडेगा जिले में आधार कार्ड नहीं होने के चलते राशन न मिलने से भूख से एक बच्ची की दिल दहला देने वाली मौत की खबर सामने आई थी. ऐसे में कोई राज्य कैसे विकास कर सकता है. सूबे के मुखिया रघुवर दास ने भी माना है कि कुपोषण झारखंड की बड़ी समस्या है. उन्होंने अपील की है कि सभी जिम्मेदार लोग और संगठन सरकार की मदद करें, ताकि वर्ष 2022 तक झारखंड को गरीबी और कुपोषण से हमेशा के लिए मुक्त किया जा सके.

सरकार और समाजिक की नीतियों के बीच नक्सलवाद तेजी से पनपा

झारखंड में  विकास की गति को रोकने के कारकों में एक बड़ा कारण नक्सलवाद रहा है. सरकार और समाजिक की नीतियों के बीच नक्सलवाद तेजी से पनपा जो विकास की गति को रोक दिया है. हालांकि सरकार और पुलिस प्रशासन इस बात का दावा कर रही है कि राज्य में नक्सलवाद का खात्मा हो रहा है और इस वर्ष के अंत तक इसपर पूरी तरह से काबू पाया जा सकता है. झारखंड को सबसे ज्यादा नुकसान नक्सलवाद से झेलना पड़ा है. सरकार का कहना है कि नक्सलियों के कब्जे और हमलों की वजह से आम आदमी को लाभ पहुंचाने वाली अधिकतर सरकारी योजनाएं कारगर ढंग से लागू नहीं हो सकीं.

नक्सलवाद की वजह से बिगड़े औद्योगिक माहौल के अलावा कई बड़े प्रोजेक्ट सालों से पीछे चल रहे हैं या फिर लटके हुए हैं. वहीं आंकड़ों के अनुसार झारखंड जब बना तब राज्य के 14 जिले नक्सल प्रभावित थे. ऐसे जिलों की संख्या अब बढ़कर 18 हो गई है.   हालांकि बीच के कुछ सालों में यह 21 तक पहुंच गई थी, लेकिन केंद्र सरकार के दबाव और सुरक्षा बलों की कार्रवाई के बाद कुछ जगहों से नक्सलियों का सफाया हुआ है.

कृषि को नहीं मिला बढ़ावा

झारखंड के ग्रामीण इलाके में 80 प्रतिशत से अधिक की आबादी कृषि के सहारे ही अपनी जाविका चलाती है. लेकिन 17 साल के बाद भी परिस्थितियां नहीं बदली. झारखंड में अधिकांश आदिवासी समुदाय कृषि के माध्यम से अपनी आजीविका कमाता है एक दावे के अनुसार झारखंड में गरीबी दर भले ही 45 प्रतिशत से घटकर 37 प्रतिशत के करीब पहुंच गया है, लेकिन झारखंड के लोगों की सामाजिक-आर्थिक हालत अभी भी दयनीय है.

सरकार को तय करनी होगी प्राथमिकताएं 

इसी साल जुलाई महीने में कर्ज और फसल में हुए नुकसान से परेशान हो एक महीने के अंदर राज्य के सात किसानों के आत्महत्या करने की खबर सामने आई. जानकारों के मुताबिक झारखंड के किसान परंपरागत तरीकों से खेती करके पहले खुश थे, लेकिन बदले समय के अनुसार सिंचाई सुविधा का अभाव और खाद, बीज के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है. फसल खराब होने से किसान इस कर्ज को चुका नहीं पा रहे हैं और सरकार की तरफ से किसानों को मदद नहीं मिल पा रही है. ऐसे में अगर विकास करना है तो सरकार को प्राथमिकताएं तय करनी होगी.



Web Title : OVER 17 YEARS OF JHARKHAND FORMATION, WHAT STRENGTHENED THE FUTURE FOUNDATIONS OF THE STATE?