कुंभ मेले में दिखती है भारतीय परंपराओं की झलक

कुंभ में आने वाले लोग एक धार्मिक कर्मकांड से कहीं बड़ा उद्देश्य लेकर यहां आते हैं. यहां वे अपने भीतर की दिव्य सत्ता को जागृत करते हैं. हिमालय से कन्याकुमारी तक और गुजरात से पश्चिम बंगाल तक पूरे भारत से लोग कुंभ में हिस्सा लेने के लिए प्रयागराज पहुंच रहे हैं. कुंभ ऐसा आयोजन होता है, जहां देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी काफी संख्या में लोग आते हैं. और भारतीय परंपरा को समझने का प्रयास करते हैं.  

देश का शायद ही कोई तीर्थ और पर्व इतना संपन्न और सबको समेटने वाला हो जितना कुंभ होता है. यहां देश की एकता का सहज ही दर्शन होता है.   आप जान सकते हैं कि हमारे धार्मिक आचरण की ये व्यवस्थाएं आज भी कितने व्यापक रूप से बनी हुई हैं. क्या किसी और जगह या किसी और उद्देश्य के लिए बीस लाख लोग एक-डेढ़ महीने इतने सुव्यवस्थित तरीके से एकजुट होते हैं?

कुंभ में सिर्फ साधु संन्यासी ही नहीं हैं. इसमें गृहस्थों की भी बहुत बड़ी संख्या है. कुंभ में आये हुए साधु संन्यासियों के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि उनका तानाबाना पूरे देश में फैला हुआ है. इन साधु-संन्यासियों का तानाबाना जितना बड़ा है उतना बडा शायद हमारी सरकार का भी नहीं है. गंगा और यमुना के संगम के इस पुण्य क्षेत्र में न किसी का कोई जातीय विशेषाधिकार हो सकता है न कोई राजनैतिक विशेषाधिकार.  

यहां सिर्फ एक ही मान्यता रही है कि संगम पर साधु संन्यासी पहले स्नान करें और दूसरे बाद में. कुंभ में आने वाले लोग एक धार्मिक कर्मकांड से कहीं बड़ा उद्देश्य लेकर यहां आते हैं. यहां वे अपने भीतर की दिव्य सत्ता को जागृत करते हैं.

बनवारी 

हिमालय से कन्याकुमारी तक और गुजरात से पश्चिम बंगाल तक पूरे भारत से लोग कुंभ में हिस्सा लेने के लिए प्रयागराज पहुंच रहे हैं. कुंभ ऐसा आयोजन होता है, जहां देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी काफी संख्या में लोग आते हैं. और भारतीय परंपरा को समझने का प्रयास करते हैं. देश का शायद ही कोई तीर्थ और पर्व इतना संपन्न और सबको समेटने वाला हो जितना कुंभ होता है.  

यहां देश की एकता का सहज ही दर्शन होता है

 आप जान सकते हैं कि हमारे धार्मिक आचरण की ये व्यवस्थाएं आज भी कितने व्यापक रूप से बनी हुई हैं. क्या किसी और जगह या किसी और उद्देश्य के लिए बीस लाख लोग एक-डेढ़ महीने इतने सुव्यवस्थित तरीके से एकजुट होते हैं? कुंभ में सिर्फ साधु संन्यासी ही नहीं हैं. इसमें गृहस्थों की भी बहुत बड़ी संख्या है.  

कुंभ में आये हुए साधु संन्यासियों के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि उनका तानाबाना पूरे देश में फैला हुआ है. इन साधु-संन्यासियों का तानाबाना जितना बड़ा है उतना बडा शायद हमारी सरकार का भी नहीं है. गंगा और यमुना के संगम के इस पुण्य क्षेत्र में न किसी का कोई जातीय विशेषाधिकार हो सकता है न कोई राजनैतिक विशेषाधिकार.  

यहां सिर्फ एक ही मान्यता रही है कि संगम पर साधु संन्यासी पहले स्नान करें और दूसरे बाद में.   इसके अलावा संगम के विशाल तट पर रहने और स्नान करने वालों की कोई विशेषाधिकारी कोटियां नहीं है. आज जरूर व्यवस्था के नाम पर बहुत सारे विशेषाधिकार वाले लोगों की कोटियां बना दी गई हैं और वे कुंभ क्षेत्र के बड़े हिस्से में तीर्थयात्रियों के हिस्से पर कब्जा किये रहती हैं.

कुंभ आने का मतलब है एक दिव्य व्यवस्था में विश्वास करना. यह दिव्य व्यवस्था संसार से अलग और परे की कोई चीज नहीं है. ऐसा नहीं है कि आपका इस दिव्य व्यवस्था से संबंध जुड़ जाये मगर उसका असर आपके आचरण पर न पड़े, उससे हमारे कर्तव्यों के ढांचे में कोई परिवर्तन न दिखाई दे.

कुंभ में आने वाले लोग एक धार्मिक कर्मकांड से कहीं बड़ा उद्देश्य लेकर यहां आते हैं. यहां वे अपने भीतर की दिव्य सत्ता को जागृत करते हैं. अपनी विवेक दृष्टि को पुष्ट करते हैं. उसके आधार पर एक बेहतर समाज के रूप में ढलने की शक्ति और सामर्थ्य लेकर यहां से जाते हैं.

हमारा समाज सुसंगठित हो जाये तो कुंभ उसके उस संगठन को और मजबूत बनाने में भूमिका निभाने लगेगा. समाज की व्यवस्था कुंभ में भी दिखाई देगी. यह व्यवस्था लोगों की प्रतिभा और कला कौशल से जुड़कर चारों तरफ फैलती रह सकेगी. कुंभ जैसे पर्व ही वास्तव में सच्ची सभ्यता के सच्चे वाहक हो सकते हैं.        


                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        (साभार- नवोत्थान)




                                                                                                                                 

Web Title : UNDERSTAND INDIAN TRADITION CAME KUMBH MELA

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