नवरात्र के समापन के बाद मातारानी को दी जा रही विदाई,प्रतिमाओ के विसर्जन का सिलसिला प्रारंभ, बहती धारा में हो माता की प्रतिमा का विसर्जन-अग्रवाल

बालाघाट. नवरात्र की नवमी के समापन के बाद विजयादशमी से नगर के सार्वजनिक स्थानो में विराजित प्रतिमाआंे के विसर्जन का सिलसिला भी प्रारंभ हो गया है. विजयादशमी पर नगर के कुछ स्थानों से दुर्गा प्रतिमाओं को विसर्जित करने धूमधाम से ले जाया गया. वहीं यह सिलसिला कल भी जारी रहेगा. अधिकांश स्थानो में विराजित मां दुर्गा की प्रतिमा को मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद मांगने के साथ पुण्य सलीला में विसर्जित किया जायेगा. हालांकि दशहरा के दिन कम ही प्रतिमायें विसर्जित की गई. जबकि कल शनिवार को प्रतिमाओं का विसर्जन चल समारोह निकालते हुए भक्तगण मां को विदाई देगी.  

विसर्जन को लेकर जहां प्रशासन ने एनजीटी का हवाला देते हुए वैनगंगा नदी के किनारे पानी भरकर विसर्जन कुंड तैयार किया है, वहीं हिन्दुवादी संगठन, सनातन परंपरा का हवाला देते हुए बहती जलधारा में विसर्जन की बात कर रहे है. चूंकि पूर्व में आयोजित गणेशोत्सव में विसर्जन के दौरान भी ऐसे ही हालत पैदा हुए थे. जिसमें विसर्जन के दौरान मामुली कहासुनी में कथित पुलिस अधिकारी के कहने पर भाजपा मीडिया प्रभारी पर हमले की बात भी कही थी. जिससे सबक लेते हुए विसर्जन को लेकर शांति समिति की बैठक में वैनगंगा नदी और देवी तालाब में विसर्जन को लेकर प्रशासन ने व्यवस्था करवाने का भरोसा दिलाया था. जिसमें विसर्जन कुंड का जिक्र नहीं किया गया था लेकिन प्रतिमा विसर्जन को लेकर प्रशासन द्वारा बनाये गये कुंड में विसर्जन की बात सामने आने से एक बार फिर सनातन परंपरा का हवाला देते हुए हिन्दुवादी संगठनो ने बहती जलधारा में ही प्रतिमा के विसर्जन की बात कही है. अब देखना है कि नवदुर्गा उत्सव के शांतिपूर्वक आयोजित होने के बाद विसर्जन को लेकर हिन्दुवादी संगठनों की सनातन परंपरा और एनजीटी के नियमों को साथ लेकर प्रशासन कैसे समन्वय स्थापित कर पाता है.

विहिप जिलाध्यक्ष संजीव अग्रवाल ने कहा कि प्रशासन ने प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए विसर्जन कुंड तैयार किया है तो यह प्रशासन का विषय है, यह अपनी-अपनी आस्था पर निर्भर है, यदि कोई समिति मां दुर्गा की प्रतिमाओं को विसर्जन कुंड में करने तैयार है, तो वह कर सकती है, इसके लिए वह स्वतंत्र है, लेकिन सनातन परंपरा के अनुसार प्रतिमाओं का विसर्जन प्रवाहित जल में ही किया जाता है. जिसको लेकर नवरात्र के पूर्व ही नगर की सभी समितियों की बैठक लेकर प्रशासन को अवगत करा दिया गया था और शांति समिति की बैठक में यह बात रखी गई थी कि नगर में प्रतिमाओं के प्रवाहित जल में विजर्सन को लेकर रोशनी और क्रेन की व्यवस्था की जायें. ताकि क्रेन के माध्यम से प्रवाहित जल में प्रतिमाओं का विसर्जन हो सके. उन्होंने कहा कि बालाघाट नगर में बनने वाली प्रतिमायें शुद्ध मिट्टी से निर्मित होती है, जिससे नदी में जल प्रदूषण भी नहीं होगा. हमारी मांग है कि प्रतिमाओं के ससम्मान विसर्जन की व्यवस्था प्रशासन करें. हमने पूर्व में गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान देखा है कि विसर्जन कुंड में विसर्जित की गई प्रतिमाओं बाद में कैसी हालत में दिखी है, जिससे हमारी आस्था को ठेस पहुंची है. यह भगवान का आशीर्वाद है कि बालाघाट को नदी का उपहार मिला है, जहां नदियां नहीं है, वहां के लिए विसर्जन कुंड उपयुक्त है. प्रशासन से हमारी मांग है कि 15 अक्टूबर से लेकर 17 अक्टूबर तक नगर की विराजित होने वाली प्रतिमाओ के विसर्जन के लिए नदी और सरोवरो पर क्रेन और रोशनी की व्यवस्था की जाये, ताकि सभी समिति के भक्त सुरक्षात्मक रूप से मां को विदाई दे सके.


Web Title : AFTER THE CONCLUSION OF NAVRATRI, THE FAREWELL TO MATARANI, IMMERSION OF IDOLS BEGINS, IMMERSION OF MOTHERS STATUE IN FLOWING STREAM AGARWAL