रैन बसेरे में अधिकारी तो रह सकते है लेकिन गरीब नहीं, कड़कड़ाती ठंड में रैनबसेरा के बाद भी बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और सड़को के किनारे रात बिता रहे गरीब

बालाघाट. नगरपालिका क्षेत्र में ऐसे गरीब, बेसहारों या फिर बाहर से आने वाले ऐसे लोग, जो कुछ किराया देकर रह सके, उसके लिए नगरपालिका द्वारा लाखों रूपये की लागत से मेहरा तालाब के एक छोर पर रैन बसेरा का निर्माण किया गया है. जिसके ऊपरी कमरे को सर्वसुविधायुक्त बनाया गया है, जबकि नीचे ठंड या बरसात में गरीब और बेसहारों को अस्थायी निवास स्थान में ठहरने की व्यवस्था है, ताकि उनका बचाव हो सके.  

रैन बसेरे के सर्वसुविधा युक्त माले पर वर्तमान में सीएमओ सतीश मटसेनिया अपने आवास बनाये हुए है, जबकि नीचे में ठहरने बनाये गये हॉल में बाहर से कोई कभी-कभार कोई आ जायें कम किराये में या फिर किसी ठेका कंपनी के बाहर से आने वाले लोगों को रहने दिया जाता है, लेकिन शहर में बारिश और ठंड से कंपकंपाने वाले गरीबों के लिए सुख से रात बिताने बनाये गये रैन बसेरा में कोई स्थान नहीं है.

जिनका कोई घरबार नहीं होता है और जो बेसहारा होते है, उनके ठहरने की मंशा से यह रैन बसेरा बनाया गया था लेकिन तत्कालीन कार्यकाल के आराम पसंद जनप्रतिनिधि के चलते रैन बसेरा के ऊपरी माले को सर्वसुविधायुक्त अर्थात सोफासेट से लेकर हर सुविधा वहां उपलब्ध कराई थी. जिसमें वर्तमान में नपा सीएमओ निवासरत है. वहीं नीचे के हाल में गरीबों और बेसहारों को ठहराना था, जिनके लिए यह बनाया गया था, लेकिन यहां गरीब और बेसहारों कभी रहे हो, ऐसा नजर नहीं आया.

वर्तमान में शीत लहर और ठंड से जनमानस बेहाल है. ठंड से बचाव के इंतजाम नहीं होने से जिला अस्पताल एवं अन्य स्थानों ठहरने की कोई कम किराये या निःशुल्क ठहरने के इंतजाम नहीं होने से जिला अस्पताल आने वाले मरीजों के परिजन कहे या फिर शहर में बेसहारा गरीब, जो रात में इस शीत लहर वाली ठंड में किसी तरह उपलब्ध कपड़ो से रात गुजारने मजबूर है, लेकिन उन्हें रात बिताने स्थान नसीब नहीं है. शहर में ऐसे गरीब रात में बस स्टैंड के यात्री प्रतिक्षालय, रेलवे स्टेशन, काली पुतली चौक, हनुमान चौक में दुकानों के सामने रात गुजारते मिल जायेंगे.  

यही नहीं इस बार ठंड से बचाव को लेकर शहर में अलाव के इंतजाम भी नाकाफी रहे. ठंड और गलन से लोग कांपते नजर आ रहे हैं, लेकिन उनके ठहरने के लिए न तो गरीबों और बेसहारों को रैन बसेरा में ठहराया गया है और ना ही उनके लिए अलाव की व्यवस्था की गई.  

जिला अस्पताल एवं महिला अस्पताल में आने वाले मरीजों के तीमारदारों के लिए ठहरने के लिए स्थायी रैन बसेरा न होने से वह अस्पताल के बाहर ठंड में ठिठुरते रात बिताने मजबूर है तो कोई गरीब, बेसहारा, शहर की दुकानों के सामने बनी फर्शी में सोकर रात काटने मजबूर है.  

जबकि रैन बसेरा में सन्नाटा पसरा है. यह भी साफ नहीं है कि नगरपालिका में लाखों रूपये की लागत से बनाये गये रैन बसेरा में आखिर कितने लोगों के ठहरने के इंतजाम है, और यदि वहां लोगों को ठहराया जा रहा है तो उससे नपा को कितनी आय हो रही है और आय नहीं हो रही है तो आखिर कितने गरीब और बेसहारों को उसमें रखा गया.  

नगर पालिका परिषद की ओर से बनाये गया रैन बसेरा वर्तमान में केवल और केवल अधिकारी का निवास स्थान बनकर रह गया है, जबकि शहर में कई शासकीय क्वार्टर खाली है, जहां नगरपालिका सीएमओ ठहर सकते थे, लेकिन नपा द्वारा बनाये गये ऊपरी माले के रैनबसेरा में उपलब्ध सुविधायें उन्हें शासकीय क्वार्टर में संभव नहीं थी. जिसके चलते उन्होंने शासन से शासकीय क्वार्टर नहीं लिया.  

दूर-दराज से आने वाले लोगों को ठंड में रात बिताने के लिए रैन बसेरा बनाया गया था, लेकिन ठंड से बचाव को गरीबों, बेसहारों के लिए किया गया यह इंतजाम का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है, जिसको इनकी ज्यादा जरूरत है. आलम यह है कि कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए जांच तो दूर सैनिटाइजर तक की व्यवस्था रैन बसेरा में नहीं है. ठंड से ठिठुरने वाले लोगों को राहत देने के लिए अलाव भी बुझ गये है और यह हाल तब है, जब नपा के प्रशासक, कलेक्टर है.

शीतलहर की रात में सड़को और यात्री प्रतिक्षालय में रात गुजारने मजबूर गरीबों का दर्द यह है कि रात में खुले में सो रहे हम गरीबों को पूछने वाला कोई नहीं है. खारी निवासी केवटराम उईके की मानें तो वह हनुमान चौक के मंदिर से जो कुछ खाने को मिल जाता है वह खा लेता है और वही सहकारी सोसायटी के गोदाम के सामने फर्श पर रात में सो जाता है, अब तक न तो कोई उनसे खाना पूछने आया और न ही इस ठंड में कहीं ले जाने. महाराष्ट्र के भंडारा निवासी चंदाबाई का हाल भी कुछ ऐसा ही है, कहीं से कुछ मिला तो खा लिया अन्यथा समाससेवियों की इस नगरी में उसे कोई पूछना वाला नहीं है. नगरपालिका ने भी उन्हें ठंड हो या बरसात, यहां से कहीं लेकर नहीं गई न ही उन्हंे कभी खाने के लिए पूछा. ऐसा दर्द और भी लोगो का है, लेकिन दर्द की दास्तां से मन पिघलें तो दर्द सुनाये, जो जानकार भी अनजान है, उन्हें दर्द और बेसहारों की तकलीफ नजर नहीं आती है.  


Web Title : OFFICIALS CAN LIVE IN THE NIGHT SHELTER, BUT NOT THE POOR, THE POOR ARE SPENDING THE NIGHT ON THE SIDE OF THE BUS STAND, RAILWAY STATION AND ROADS EVEN AFTER THE NIGHT SHELTER IN THE BITING COLD.