जिनकी जयंती से राष्ट्रीय त्यौहार की शुरूआत उनकी ही कैद में प्रतिमा!, सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा की धूलधूसरित-छतरी में चिड़ियों ने बनाया घोंसला, शहीदो की प्रतिमा को लेकर जिम्मेदारों की अनदेखी

बालाघाट. पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, इस महोत्सव में आजादी के शहीदों को याद करने और उनकी स्मृतियों को संजोये रखने की बात कही जा रही है. केन्द्र सरकार के साथ ही प्रदेश सरकार भी आजादी के अमृत महोत्सव के तहत 23 जनवरी को सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती से राष्ट्रीय त्यौहार की शुरूआत करने जा रही है. जो पहले 24 जनवरी से होता है अब वह शहीद सुभाषचंद्र बोस की जयंती से मनाया जायेगा. जिसका उद्देश्य देश एवं समाज के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम के सही इतिहास से रूबरू कराना है. तारकि आज सही इतिहास की जानकारी समाज को नहीं दी जाएगी तो आने वाली पीढ़ी इससे अनभिज्ञ रहेगी. जिसके तहत प्रत्येक गांव में कार्यक्रम आयोजित कर नेताजी को श्रद्धांजलि दी जायेगी.

भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती हर साल 23 जनवरी को मनाई जाती है. इस साल भारत सरकार ने गणतंत्र दिवस का पर्व 24 जनवरी के बजाये 23 जनवरी से मनाने का फैसला लिया है. अब से हर साल सुभाष चंद्र बोस की जयंती से गणतंत्र दिवस पर्व का आगाज होगा. भारत सरकार का यह निर्णय नेताजी के सम्मान और देश की स्वतंत्रता में उनके संघर्षों को याद रखने के लिए लिया गया है. इस साल भारत सुभाष चंद्र बोस की 124 वीं जयंती मना रहा है. सुभाष चंद्र बोस एक वीर सैनिक, योद्धा, महान सेनापति और कुशल राजनीतिज्ञ थे. उन्होंने देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए आजाद हिंद फौज के गठन से लेकर हर भारतीय को आजादी का महत्व समझाने तक हर काम को किया. वह केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लिए प्रेरणा हैं. ‘‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’’ ये वह नारा है जिसने हर भारतवासी के खून को गरम कर दिया था. अंग्रेजों से लड़ने के लिए एक ऐसी ताकत दी, जिसे हम देशभक्ति का नाम दे सकते हैं.  

लेकिन देशभक्ति की अलख जगाकर देश की आजादी में अपना सर्वस्व बलिदान करने नेताजी सुभाषचंद्र बोस, आजादी के अमृत महोत्सव में कम से कम अपनी प्रतिमा को सम्मान नहीं दिला पा रहे है, जो देश के शहीदों को याद करने वालों के गालों पर तमाचा है, बालाघाट में तत्कालीन सरकार में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की यादों को उनकी प्रतिमा में संजोने के लिए शहर के एक चौक में उनकी मार्बल से बनी आदमकद प्रतिमा लगाई थी. जिसके नाम से मुख्यालय का यह चौक, सुभाष चौक के नाम से आज पहचाना जाता है, लेकिन यहां लगी उनकी प्रतिमा को सम्मान नहीं मिल सका. कभी उनकी जयंती या पुण्यतिथि पर उन्हें याद करने वाले उनके गले में हार डालने के भुल जाते है, जिसके बाद वह पुरानी हार, तभी उनके गले से निकलती है, जब उनकी पुण्यतिथि या जयंती आती है. अन्यथा पूरे साल उन्हें कोई याद नहीं करता. बालाघाट में महापुरूषों को याद करने वाली राजनीतिक पार्टियां भी समय-समय पर उनका उपयोग करती है. हालत यह है कि सुभाष चौक पर लगी, उनकी प्रतिमा कैद में रखे जाने जैसी नजर आती है, वहीं पूरी प्रतिमा धूल-धूसरित हो गई है. उनकी सिर के ऊपर लगी छतरी में चिड़ियो ने अपना घोंसला बना दिया है, तो उनके गले में हार पहनाने पहुंचने के  लिए बनाई गई सीढ़ियों के रेलिंग टूटकर क्षतिग्रस्त हो गई है. बिजली विभाग की जुर्रत तो देखो, प्रतिमा के पास ही उसने ट्रांसफर से मूर्ति को ढक दिया है तो यातायात विभाग ने प्रतिमा स्थल को बेरिकेटिंग से कैद कर दिया है.  

कभी तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष रमेश रंगलानी के कार्यकाल में प्रति शुक्रवार, महापुरूषों की प्रतिमा को साफ रखने की स्थानीय योजना भी बंद हो गई है, जिसके बाद जब कभी राष्ट्रीय त्यौहार आते है, तब कहीं जाकर महापुरूषांे की प्रतिमा पर लगी धूल को हटाने का काम किया जाता है, लेकिन जिनकी जन्मजयंती से इस वर्ष राष्ट्रीय पर्व की शुरूआत, सरकार करने जा रही है, उनकी शहर में लगी प्रतिमा, जिम्मेदारों की अनदेखी की कहानी बयां करती है.

सबसे ज्यादा शर्मनाक यह है कि जहां राष्ट्रीय त्यौहार 26 जनवरी को लेकर नपा ने नगर में लगे लगभग सभी महापुरूषों की प्रतिमा स्थल पर रोशनी करने के लिए रंगबिरंगी लाईटों को लगाया है, वहीं नपा यहां रोशनी करना भुल गई. नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नाम पर आयोजन और मार्गदर्शक बताने वालो की आंखो पर भी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की गंदी पड़ी प्रतिमा को देखकर आंखे बंद होना, उनके नेताजी के नाम पर दिखावे को प्रदर्शित करता है.  

गौरतलब हो कि भारत के बहादुर स्वतंत्रता सेनानी और महान नेताओं में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हर साल 23 जनवरी को जन्म जयंती मनाई जाती है. भारत में स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और ‘जय हिंद’ का नारा देने वाले सुभाष चंद्र बोस को उनके जन्मदिन पर याद किया जाता है. साथ ही उन्हें श्रद्धांजलि भी दी जाती है. आपको बता दें कि सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था. उनके अविस्मरणीय योगदान का देश आज भी कर्जदार है. इस साल उनकी 125 वीं जयंती मनायी जायेगी. उनकी जन्म जयंती को देशभर में पराक्रम दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. जिन्होंने अंग्रेजों को धूल चटाने के लिए, अपनी आजाद हिंद फौज के नाम से अलग सेना तैयार कर ली थी.   उनके जोशीले विचार और भाषण आज भी युवाओं के लिए प्रेरणादायक हैं. ‘‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा.. ’’ का नारा बुलंद करने वाले सुभाष चंद्र बोस आज भी लोगों के दिलों में बसते हैं. सुभाष चंद्र बोस 24 साल की उम्र में इंडियन नेशनल कांग्रेस से जुड़ गए थे. राजनीति में कुछ वर्ष सक्रिय रहने के बाद उन्होंने महात्मा गांधी से अलग अपना एक दल बनाया. उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया. सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित होकर कई युवा आजाद हिंद फौज में शामिल हुए और देश की आजादी में अपना योगदान दिया. नेता जी के विचार आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं.

देश के अमर शहीदों में इतने बड़े महापुरूष की धूल धूसरित और गंदी होने के साथ ही कैद में नजर आ रही प्रतिमा को लेकर प्रशासन और कथित रूप से शहीदों को लेकर बड़ी-बड़ी बातों करने वालों पर यदि थोड़ा बहुत भी नेताजी के प्रति सम्मान होगा, तो निश्चित ही अपनी आंखो में पड़ी पट्टी को हटाकर न केवल प्रतिमा बल्कि उसके स्थान को स्वच्छ और कैदमुक्त बनाने का प्रयास करेंगे, वरना तो जनता देख ही रही है और यह पब्लिक है, सब जानती है.  


Web Title : ON WHOSE BIRTH ANNIVERSARY THE NATIONAL FESTIVAL BEGINS IN HIS OWN CAPTIVITY! BIRDS NEST IN DUSTY UMBRELLA OF SUBHASCHANDRA BOSE STATUE, IGNORE RESPONSIBILITIES FOR MARTYRS STATUE