शहर के विकास को बयां करती नगर की गढ्ढेनुमा सड़के, मरम्मतीकरण के नाम पर हो रही फिजूलखर्ची, गढ्ढे बन रहे शहर की पहचान

बालाघाट. बालाघाट शहर, जो परायो को भी अपना बनाने वाले पानी की पहचान है, उस बालाघाट शहर में जहां बडे़ उद्योगपतियों से लेकर प्रशासन का हर बड़े अधिकारी से लेकर आम नागरिक रहता हो, उस बालाघाट शहर की पहचान अब गढ्ढो में होने लगी है, अंग्रेजी में एक कहावत है ‘‘फर्स्ट इंम्प्रेशन इज द लास्ट इंम्प्रेशन’’ जब बाहर से आने वाले नागरिकों को ही सड़क में सड़क कम और गढ्ढे ज्यादा दिखाई देने लगेंगे तो सोचा जा सकता था कि बालाघाट का इंम्प्रेशन बाहरी व्यक्ति पर क्या पड़ेगा, अब तो शहर के लोग भी यह कहने से नहीं हिचकते कि यह गढ्ढो वाली सड़क है. नगर की गढ्ढेनुमा सड़के शहर के विकास को बयां करती है कि बालाघाट शहर का विकास आखिर कितने गढढ्े में चला गया है. जिन गढ्ढो को भरने के लिए मरम्मतीकरण के नाम पर फिजूलखर्ची की जा रही है, जिसमें काम कम, दाम ज्यादा की तर्ज पर आर्थिक स्वार्थपूर्ति करने का काम किया रहा है.

शहर के कई मार्ग गढ्ढो में तब्दील

शहरी क्षेत्र में ऐसा कोई मार्ग नहीं है, जिस मार्गाे की सड़को पर लोगों को आवागमन के दौरान गढ्ढो का अनुभव नहीं होता है. फिर वह चाहे हनुमान चौक से रेलवे स्टेशन मार्ग हो, आंबेडकर चौक से पॉलीटेक्निक से होकर मोक्षधाम जाता मार्ग हो, मोतीनगर नगर के सरस्वती नगर तक मार्ग हो, आंबेडकर चौक से जयस्तंभ चौक तक मार्ग हो, बुढ़ी रेलवे क्रार्सिंग से आईटीआई मार्ग हो, और भी कई ऐसे मार्ग है, जहां चलने पर लोगों का सामना सड़के पर बन आये गढ्ढो से होता है, जहां से गुजरना, जान का जोखिम उठाने जैसा है, किन्तु जिम्मेदारों की आंख और कान, इसलिए बंद है, क्योंकि कभी इन मार्गो से पैदल या दुपहिया वाहनों से इनका गुजरना नहीं होता है और महंगे चौपहिया वाहनों में गढ्ढा महसुस नहीं होता है.  

खासकर हनुमान चौक से रेलवे स्टेशन तक मार्ग पूरा का पूरा गढ्ढे में तब्दील हो गया है, जबकि इस मार्ग पर न केवल अस्पताल है बल्कि लोगों का रहवासी क्षेत्र भी, जहां से रहवासी लोग रोजाना आवागमन करते है, मार्ग में निवासरत लोगों की मानें तो आयकर कार्यालय के सामने बने गहरे गढ्ढे में एक बुजुर्ग और महिला गिरकर घायल हो चुके है, जिन्हें लोगों की मदद से अस्पताल भिजवाया गया. बावजूद इस सड़क के निर्माण को लेकर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है.  

मरम्मत के नाम पर हो रही रस्म अदायगी

पीडब्ल्युडी के इस मार्ग को वर्तमान में पीडब्ल्युडी मरम्मतीकरण के नाम पर रस्म अदायगी करता नजर आ रहा है क्योंकि मार्ग में निवासरत लोगों की माने तो पूर्व में दो बार इस मार्ग का मरम्मतीकरण किया गया लेकिन कुछ ही समय में स्थिति जस की तस हो जाती है, जिससे पता चलता है कि मरम्मतीकरण के नाम पर केवल फिजूलखर्ची की जा रही है, मार्ग के निर्माण को लेकर बात करने पर पीडब्ल्युडी इसे नगरपालिका के बनाये जाने की बात करता है, जिससे यह मार्ग, दो विभागों के बीच में झूलता जा रहा है और खामियाजा आम लोगों को उठाना पड़ रहा है. 22 जनवरी को इस मार्ग में पीडब्ल्युडी के कर्मी मरम्मतीकरण कार्य दिखाई दिये. जो प्रयासरत रहे कि उपलब्ध मटेरियल के आधार पर सड़को पर बन आये गढ्ढों को भरा जा सके लेकिन उनका ध्यान मामुली गढ्ढों को ही भरने पर ज्यादा रहा, जबकि बड़े गढ्ढो की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया.  

रेलवे स्टेशन मार्ग पर लोग हो रहे चोटिल

रेलवे स्टेशन मार्ग निवासी और बड़े व्यवसायी हरिओम अग्रवाल ने बताया कि हनुमान चौक से रेलवे स्टेशन मार्ग में सड़क ही नहीं बची है, यह सड़क गढ्ढो में तब्दील हो गई है. जिसके कारण आये दिन लोगों को दुर्घटना का शिकार होना पड़ रहा है. यह मार्ग पीडब्ल्युडी के अंतर्गत आता है लेकिन पीडब्ल्युडी, इसे नगरपालिका पर डाल रही है. अभी सड़क पर छोटे मामुली गढ्ढों की मरम्मतीकरण कार्य किया जा रहा है, जबकि बड़े गढ्ढो को नहीं भरा जा रहा है. रेलवे स्टेशन मार्ग पर रहवासी लोगों के साथ ही स्थित अस्पतालों में आने वाले लोगो के अलावा रेलवे स्टेशन से बालाघाट आने वाले यात्रियों का आवागमन होता है, लेकिन गढ्ढो को देखकर यात्रियों को भी लगता होता कि शहर में विकास नाम की कोई चिज नहीं है.

टेंडर के बाद भी काम क्यो नहीं

एक जानकारी के अनुसार हनुमान चौक से रेलवे स्टेशन तक मार्ग के नवीनीकरण का काम नपा द्वारा करवाया जाना है, अस्पुष्ट सूत्रों की मानें तो इसका टेंडर भी हो गया है लेकिन काम प्रारंभ नहीं हो सका है, जिसको लेकर अब सवाल खड़े हो रहे है, मार्ग में निवासरत लोगों का कहना है कि बार-बार मरम्मतीकरण कार्य की अपेक्षा इसका निर्माण क्यों नहीं किया जा रहा है, वहीं इस मामले में जिम्मेदार कुछ बोलने तैयार नहीं है. जिससे लगता है कि नगरीय क्षेत्र में सब भगवान भरोसे है. चिंतनीय और सोचनीय तब है, जब कलेक्टर, नपा के प्रशासक है.

चलने लायक नहीं बची सड़क

युवा आशीष और हाथ ठेले से इस मार्ग पर सामान लाने का काम करने वाले बुजुर्ग लक्ष्मण टेकाम की मानें तो सेन चौक से लेकर मृत्युंजय घाट तक सड़क चलने लायक नहीं बची है, जबकि इस मार्ग से निवासरत लोगांे के साथ ही व्यवसायिक गाड़ियों का आना-आना जाना होता है, कभी इस मार्ग को बड़े वाहनांे के आवागमन के लिए वैकल्पिक मार्ग के रूप में उपयोग किया गया था. जहां से बड़े वाहनो के गुजरने के बाद बने गढ्ढे जस के तस बने है, उस दौरान भी सड़क पर वाहनों के गुजरने से होने वाले गढ्ढों को लेकर रहवासियों ने तीखा विरोध दर्ज किया था, जिसके बाद बड़ी संख्या में बड़े वाहनों का आवागमन तो बंद हो गया, लेकिन पूर्व में वाहनों के गुजरने से बने गढ्ढो को भरा नहीं जा सका, जो आज भी जस के तस है. जिससे वर्तमान में लोगों को आवागमन में खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिसे बनाये जाने की जरूरत है.


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