बालाघाट. वनाच्छित जिले में टायगर की बाहुलता से अनायास ही लोगों को वनाच्छित क्षेत्र से गुजरते समय टायगर के दर्शन हो जाते है, आज नगर के मोती उद्यान में भी टायगर देखा गया. हालांकि घबराने की बात नहीं है, कान्हा के प्रसिद्ध मुन्ना टायगर की याद में नगरपालिका द्वारा मुन्ना टायगर के हमशक्ल के रूप में टायगर की प्रतिकृति को बनाया गया है, ताकि लोग, मुन्ना टायगर को याद कर सकेंगे. खास बात यह है कि स्वच्छता सर्वेक्षण के तहत नगरपालिका द्वारा इस प्रतिकृति का निर्माण वेस्ट पॉलिथिन और प्लास्टिक की बॉटलो से करवाया गया है. एक जानकारी के अनुसार द फेमस मुन्ना टायगर की प्रतिकृति के निर्माण में 5 क्विंटल पॉलिथिन और 4 हजार प्लास्टिक बॉटलो का उपयोग किया गया है. जिसे आकार दिया है जिले के टेडवा मानेगांव निवासी कलाकार रानी मंडामे और उसके साथी छत्तीसगढ़ के कोरबा निवासी युवक नीलकंठ मिश्रा ने.
मोती उद्यान में मुन्ना टायगर की यादो को संजोये रखने के लिए मुन्ना टायगर उसकी प्रतिकृति को उद्यान में लगाया गया है, जो लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना है. वेस्ट पॉलिथिन और वेस्ट प्लास्टिक की बॉटलो से बनी टायगर की आकृति भले ही लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनी हो लेकिन यह आकृति, यह भी संदेश देती है कि यदि हमने सिंगल यूज प्लास्टिक, प्लास्टिक बॉटलो, थर्मोप्लास्टर का उपयोग, बंद नहीं किया तो हमारी आने वाली पीढ़ी, आगामी समय में जंगलो में निवास करने वाले वन्यप्राणियों को इसी रूप में देखेगी, क्योंकि मनुष्य द्वारा तैयार किये गये प्लास्टिक के आवरण से न केवल मनुष्य, प्रकृति बल्कि मवेशी और वन्यजीव भी प्रभावित हो रहे है. सालों-साल तक नष्ट नहीं होने वाले प्लास्टिक के दुष्परिणाम, हमें आज नहीं तो कल भोगने जरूर पड़ेंगे.
नगरपालिका सीएमओ सतीश मटसेनिया ने बताया कि सिर पर केट निशान के साथ मुन्ना टायगर, कान्हा उद्यान आने वाले हर वन्यजीव प्रेमियो के लिए आकर्षण का केन्द्र था, लोग कई-कई दिनों तक उद्यान में मुन्ना टायगर को देखने लोग इंतजार किया करते थे, जो टायगर की औसतन आयु से ज्यादा जीने वाला एकमात्र टायगर था. कान्हा उद्यान से वन विहार भोपाल में शिफ्ट किये जाने के बाद औसतन आयु से अधिक, जी-कर टायगर ने अंततः दुनिया को अलविदा कह दिया. जो आज भी वन्यजीव प्रेमियों के यादो की स्मृति में है, जिसकी यादो को संजोने और मोती उद्यान को और अधिक, आकर्षक बनाने की सोच से यहां कलाकारों द्वारा वेस्ट प्लास्टिक और प्लास्टिक बोतलो से मुन्ना टायगर की प्रतिकृति को स्थापित किया गया है. स्वच्छता सर्वेक्षण के तहत बनाई गई इस प्रकृति के माध्यम से भी लोगों को यह संदेश देना है कि यदि हमने प्लास्टिक और उससे बनने वाली वस्तुओं का उपयोग करना बंद नहीं किया तो आगामी समय में हमारी पीढ़ी, इसी तरह उद्यानों में वन्यजीवों को देखेगी. क्योंकि आज प्लास्टिक का असर मानव जीवन से लेकर धरती, प्रकृति, मवेशी और वन्यजीवों पर पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि चूंकि प्रदेश, टायगर स्टेट के रूप में पहचाना जाता है, जिला भी टायगर की बाहुलता से भरा पड़ा है, इसलिए टायगर के माध्यम से लोगों को प्लास्टिक मुक्त शहर बनाने का संदेश देने का प्रयास किया गया है.
पॉलिथिन के नुकसान और पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण को लेकर काम कर रहे कलाकार
टायगर में प्रसिद्ध मुन्ना टायगर की प्रतिकृति बनाने वाले खैरागढ़ विश्वविद्यालय से शिक्षित जिले के टेडवा मानेगांव निवासी युवती रानी मंडामे और छत्तीसगढ़ के कोरबा निवासी युवक नीलकंठ मिश्रा, पॉलिथिन के नुकसान और पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण को लेकर काम कर रहे है. जिनके द्वारा इससे पूर्व उद्यान में वेस्ट पॉलिथिन और प्लास्टिक की बोतलों से मशरूम की आकृति बनाई गई थी. जिसके बाद मुन्ना टायगर की प्रतिकृति का निर्माण किया गया. जिसके माध्यम से कलाकार संदेश देना चाहते है कि पॉलिथिन हमारे जीवन और प्रकृति के लिए कितनी खतरनाक है. बताया जाता है कि कलाकृति बनाने लगने वाली खाली बोतलों की व्यवस्था उन्होंने शहर के रेस्टारेंट और नगरपालिका के सहयोग से की है. मोती उद्यान में लगे मुन्ना टायगर की प्रतिकृति न केवल लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी है, बल्कि देखने वाले, कलाकारों की कलाकारी को भी सराहा रहे है.