गैर अधिमान्य पत्रकारों की क्या हैसियत है?,अधिमान्य पत्रकारों को कोरोना योद्धा योजना में फ्रंट लाईन वर्कर की घोषणा से झलका गैर अधिमान्य पत्रकारों का दर्द

बालाघाट. आखिर हमारी हैसियत क्या है मुख्यमंत्री जी, यह बात जिले के वरिष्ठ पत्रकार आनंद वर्मा ने सरकार के विश्व प्रेस दिवस पर अधिमान्य पत्रकारों को कोरोना योद्धा योजना में फ्रंटलाईन वर्कर माने जाने की घोषणा पर सोशल मीडिया में अपना दर्द बयां करते हुए पोस्ट किया है.

उन्होंने लिखा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों को कोरोना योद्धा मानकर उन्हें हरसंभव मदद देने की बात कही है. प्रदेश में अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों की तुलना में गैर अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों की संख्या कई गुनी है गैर अधिमान्यता प्राप्त पत्रकार चौबीसों घंटे व्यस्त रहकर प्रशासन के क्रियाकलापों को अपने पत्र के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने में लगा रहता है. इस भागदौड़ में वह अपना पारिवारिक दायित्व दरकिनार रख देता है तो क्या गैर अधिमान्य पत्रकारों की कोई भूमिका नहीं है. तो फिर शासन और प्रशासनिक पत्रकार वार्ता में क्यों बुलाया जाता है? शासन, प्रशासन के कवरेज के लिए पत्रकारों को क्यों ले जाया जाता है? आखिरकार गैर अधिमान्य पत्रकार की भूमिका महज बेगारी बनकर रह गई है. मैंने 50 साल की लंबी पत्रकारिता के दौरान अनेक उतार-चढ़ाव देखे लेकिन आज विचार आता है कि गैर अधिमान्य पत्रकारों की प्रशासन की नजरों में क्या हैसियत है.

यह केवल एक दर्द नहीं बल्कि कई गैर अधिमान्य पत्रकारों का दर्द है. विश्व प्रेस दिवस पर जब मुख्यमंत्री ने घोषणा की तो उन्हें लगा होगा कि एक बड़ा असर होगा लेकिन उनकी इस घोषणा के विपरित पत्रकारों में प्रतिक्रिया दिखाई दी. कई अधिमान्य पत्रकारों ने तो ट्वीट और सोशल मीडिया पर संदेश जाहिर कर सरकार से इस निर्णय पर पुर्नविचार करने की बात कही. सरकार के मुख्यमंत्री जब पूरी जनता को भगवान और उसे अपना सेवक बताते है तो अधिमान्य और गैर अधिमान्य पत्रकारों के बीच जो लाईन उन्होंने खिंची है, वह क्या है? 

सर्वविदित है कि अधिमान्यता कैसे और किसे मिलती है और यह भी पता है कि कई ऐसे अधिमान्य पत्रकार भी है, जिनका पत्रकारिता से कोई सरोकार नहीं है. जबकि गैर अधिमान्य पत्रकारों की तुलना में अधिमान्य पत्रकार मुट्ठी भर है, जो केवल ऑफिस के एसी कमरे में बैठकर गैर अधिमान्य पत्रकारों की खबरों को संपादित करने का काम करते है, जबकि उसी खबर को जान जोखिम में डालकर गैर अधिमान्य पत्रकार अखबार और टीव्ही एवं सोशल मीडिया तक पहुंचाता है.  

हालांकि सरकार के इस निर्णय के खिलाफ युवा नेताओं ने भी सरकार के इस निर्णय की खिलाफत कर सर्वधर्म समभाव की तरह सभी पत्रकारों को कोरोना योद्धा योजना में फ्रंटलाईन वर्कर का लाभ दिये जाने की बात कही है. युवा नेता अनुराग चतुरमोहता ने कहा कि सभी पत्रकार एक समान है, सर्वधर्म समभाव की तरह सभी पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर घोषित करे. सरकार का केवल अधिमान्य पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर का निर्णय गलत और फील्ड पत्रकारिता करने वालो के साथ अन्याय है.

खनिज निगम अध्यक्ष और विधायक प्रदीप जायसवाल ने भी सरकार से प्रदेश के सभी पत्रकारों को इस योजना का लाभ दिये जाने की बात कही है. उन्होंने कहा कि समय मिला तो इस मामले में वह मुख्यमंत्री से चर्चा करेंगे. जबकि भाजप नगर अध्यक्ष सुरजीतसिह ठाकुर ने सरकार के पत्रकारों को कोरोना योद्धा योजना में शामिल किये जाने की सराहना करते हुए कहा कि सभी रिपोर्टर और कैमरामेन काके इसके अंतर्गत लाना चाहिये, जो ग्राउंड जीरो से रिपोर्टिंग करते है, चूंकि इस कोरोना महामारी के दौर में सबसे अधिक खतरा उन्हें ही होता. आपसे आग्रह है कि सभी उन रिपोर्टर एवं कैमरामेन को भी फ्रंटलाईन वर्कर घोषित किया जायें. वहीं जिले के अधिमान्य पत्रकार सोहन वैद्य और अतुल वैध ने भी ट्वीट और सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार को सभी पत्रकारों को इसका लाभ दिये जाने की बात कही है.


Web Title : WHAT IS THE STATUS OF NON PREFERENTIAL JOURNALISTS?, THE PAIN OF NON PREFERENTIAL JOURNALISTS REFLECTED THE ANNOUNCEMENT OF FRONT LINE WORKERS IN THE CORONA WARRIOR SCHEME TO PREFERENTIAL JOURNALISTS