धनबाद स्पेशल - खुले आसमान के नीचे रहती हैं मां वन काली, कई ने कि कोशिश नही बना पाए छत

धनबाद. गोविंदपुर प्रखंड के खुदिया नदी के तट पर जंगलों के बीच स्थित मां वन काली की महिमा अपरंपार है. गोविंदपुर बाजार से करीब दो किलोमीटर दूर दक्षिण में वनकाली मंदिर स्थापित है. घने वन के बीच मंदिर होने के कारण इसका नाम वन काली मंदिर पड़ गया. यहां बगैर छत वाले मंदिर में ही माता की पूजा होती है.

कहा जाता है मां काली एक भक्त को चिड़िया के रूप में उनके सामने प्रकट हुई और मंदिर नहीं बनाने का आदेश दिया. इसके बाद से ही मां का मंदिर बिना छत का है. बीच में कई लोगों ने प्रयास किया, पर मंदिर नहीं बना सके. विशाल बरगद से अच्छादित इस मंदिर की दिव्यता देखते ही बनती है.

100 साल पुराना है इतिहास

इस मंदिर का इतिहास दो सौ साल पुराना है. मां के भक्तों की माने तो गांव भीतर गोविंदपुर के रूज परिवार ने इस मंदिर को स्थापित किया था. दुमका जिले के तिरल नामक स्थान से प्रतिमा लाई गई थी. जब इसकी स्थापना की गई थी. तब यह इलाका जंगल झाड़ से घिरा हुआ था.

काली पूजा में होता है उत्सव

वनकाली का सबसे बड़ा उत्सव काली पूजा होता है. हर साल काली पूजा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु वन काली की पूजा करने पहुंचते है. इस मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की बड़ी आस्था है. श्रद्धालुओं की माने तो सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना मां वन काली पूरी करती है. दीपावली के दिन ही रात में मां काली की पूजा होती है.