सकट चौथ आज, संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए स्त्रियाँ रखती हैं ये व्रत

सकट चौथ, संकष्टी चतुर्थी या तिलकुटा नाम से पर्व माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. यह व्रत स्त्रियां अपने संतान की दीर्घायु और सफलता के लिये करती है. इस व्रत के प्रभाव से संतान को ऋद्धि व सिद्धि की प्राप्ति होती है, और उनके जीवन की सभी विघ्न बाधायें गणेश जी दूर कर देते हैं. इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती है और शाम को गणेश पूजन तथा चंद्रमा को अर्घ्य देने बाद ही जल ग्रहण करती है.  

पूजा के दौरान इस श्‍लोक से गणेश जी की वंदना करने से वे अत्‍यंत प्रसन्‍न होते हैं.  

गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्,

उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्

व्रत में पूरे दिन मन में श्री गणेश जी के नाम का जप करें और सूर्यास्त के बाद स्नान कर के साफ वस्‍त्र पहन कर विधिपूर्वक गणेश जी का पूजन करें. इसके लिए एक कलश में जल भर कर रखें, धूप-दीप अर्पित करें, नैवेद्य के रूप में तिल और गुड़ के बने हुए लड्डू, ईख, शकरकंद, अमरूद, गुड़ और घी अर्पित करें. इसके बाद चंद्रमा को कलश से अर्घ्य अर्पित करके, धूप-दीप दिखायें और एकाग्रचित होकर सकट की कथा सुनें और सुनायें.

कहते हैं की सकट के व्रत में तिल का प्रयोग अवश्‍य करें अलग अलग राज्यों मे विभिन्‍न प्रकार के तिल और गुड़ के लड्डू बनाये जाते हैं. तिल के लड्डू बनाने के लिए तिल को भूनकर, गुड़ की चाशनी में मिलाया जाता है और गुड़ के साथ कूट कर तिलकूट बनाया जाता है. कुछ स्‍थानों पर तिलकूट का बकरा भी बनाते हैं उसकी गर्दन घर का कोई बच्चा काटता है.

सकट चौथ व्रत की कथा 

किसी नगर में एक कुम्भार रहता था. एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया तो आंवा पक ही नहीं रहा था. हारकर वह राजा के पास जाकर प्रार्थना करने लगा. राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा तो राजपंडित ने कहा की हर बार आंवा लगते समय बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा. राजा का आदेश हो गया. बलि आरम्भ हुई. जिस परिवार की बारी होती वह परिवार अपने बच्चो में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता. इसी तरह कुछ दिनों बाद सकट के दिन एक बुडिया के लड़के की बारी आयी. बुडिया के लिए वही जीवन का सहारा था. लेकिन राजा की आज्ञा आगे कुछ नहीं हो सकता था. दुखी बुडिया सोच रही थी की मेरा तो एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझसे जुदा हो जाएगा. बुडिया ने लड़के को सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा देकर कहा “भगवान का नाम लेकर आंवा में बैठ जाना. सकट माता रक्षा करेंगी. ” बालक आंवा में बिठा दिया गया और बुडिया सकट माता के सामने बैठकर पूजा करने लगी. पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे,पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया था. सवेरे कुम्भार ने देखा तो हैरान रह गया. आंवा पक गया था. बुडिया का बेटा एवं अन्य बालक भी जीवित एंव सुरक्षित थे. नगर वासियों ने सकट की महिमा स्वीकार की तथा लड़के को भी धन्य माना. सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे.



Web Title : SAKAT CHAUTH TODAY, CHILDRENS LONGEVITY AND SUCCESSES