Birsa Munda Death Anniversary: ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज नहीं डूबने जैसी बातें अंग्रेजी शासन के समय खूब होती थीं. लेकिन वीर मुंडा योद्धाओं ने इन सभी चर्चाओं पर विराम लगाते हुए ऐसा कर दिखाया और दुनिया के मानचित्र पर अपनी छाप छोड़ दी. हालांकि 19वीं शताब्दी में भगवान बिरसा मुंडा के नेतृत्व में चले उलगुलान में बिरसा मुंडा समेत कई देशभक्तों को अपनी शहादत देनी पड़ी थी. भगवान बिरसा मुंडा की जीवनी व उनकी शहादत तो लोगों को पता होगी, पर कुछ ऐसे चेहरे थे, जो इतिहास के पन्नों से खो गए. ऐसे ही नायकों पर कल्याण विभाग द्वारा संचालित डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान (टीआरआई) ने अध्ययन कराया है. इसमें ऐसे योद्धाओं का पता चला, जो उलगुलान में बिरसा मुंडा के साथ चले थे. लेकिन ऐसे कर्मवीरों के बारे में कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है. इनमें बिरसा के ऐसे साथी भी थे, जिन्हें ब्रिटिश हुकमरानों ने जमीन में जिंदा ही दफना दिया था.
टीआरआई के अध्ययन में अलग-अलग प्रमंडल में 2-2 शोधार्थियों को जिम्मेवारी दी गई थी. दक्षिणी छोटानागपुर के लिए शोधार्थी विवेक आर्यन और माग्रेट तिग्गा को काम सौंपा गया था. शोध कार्य डेढ़ से 2 वर्ष तक चला. इसमें बिरसा मुंडा के उलगुलान से जुड़े कई रोचक तथ्य व प्रमाण पहली बार सामने आए. ये तथ्य कोलकाता के आरकाईव, शहीदों के वंशजों से मौखिक इतिहास, गीतों व पत्थलगड़ी से मिले.
पता चला कि बिरसा मुंडा के साथी हाथीराम मुंडा को अंग्रेजों ने जिंदा गुटुहाथू गांव में दफना दिया था. इसके अलावा अंग्रेजों की फायरिंग में हाड़ी मुंडा, सिंगराय मुंडा, तीन महिलाएं भी मारी गईं थीं. महिलाओं की पहचान उनके पति के नाम से हुई. इसके अलावा एक बच्चे की मौत भी हुई थी. टीआरआई के निदेशक रणेंद्र कुमार ने बताया कि टीआरआई ने पहली बार ऐसे नायकों पर काम किया है. इससे झारखंड के इतिहास में और योगदान मिलेगा. अध्ययन में बिरसा मुंडा समेत अन्य जनजातीय आंदोलनों से जुड़े गुमनाम शहीदों का पता चला है.
शोध के अनुसार नौ जनवरी 1900 को जब बिरसा मुंडा खूंटी के सइलरकब पहाड़ी डोंबारी बुरु में बैठक कर रहे थे. तब ब्रिटिश हुकूमत के कैप्टन ग्रोसे, एसपी स्ट्रीट फील्ड, कमिश्नर ए फोर्ब्स अपने दो-तीन सौ सैनिकों के साथ पहुंचे. आधा घंटे तक वार्ता हुई. लेकिन जब बिरसा सहित उनके समर्थकों ने आत्मसमर्पण नहीं किया तो दोनों ओर से मुठभेड़ शुरू हो गई. एक ओर अंग्रेज गोलियां दाग रहे थे तो दूसरी ओर से मुंडा तीर, फरसा, कुल्हाड़ी से वार कर रहे थे. अंग्रेजों की रिपोर्ट के अनुसार 12 लोग इसमें शहीद हुए थे. बताया जाता है कि लाशों को दफनाते समय हाथीराम को भी जिंदा दफना दिया गया था. मुठभेड़ में बिरसा बच निकले थे. लेकिन 9 जून 1900 को उनकी मृत्यु हो गई थी. शोध में अन्य जनजातीय विद्रोह-आंदोलन में शहीद हुए नायकों की भी खोज की गई है.