बोकारो : बोकारो डीसी मृत्युंजय कुमार बर्णवाल के पीए मुकेश कुमार को एसीबी ने 70,000 नकद घूस लेते गिरफ्तार किया है. एसीबी ने डीसी आवास के सामने से ही मुकेश को गिरफ्तार किया. शिकायतकर्ता डीसी आवास के सामने ही मुकेश के हाथों में 70 हजार रुपये थमाया, जिसके बाद आरोपी पीए को कुछ शक हुआ, वो भागने लगा. लेकिन एसीबी की टीम ने उन्हें दौड़ कर दबोच लिया.
क्या है मामला
स्नेहलता साहू के पति कमल प्रसाद की शिकायत पर धनबाद एसीबी की टीम ने गुरुवार अहले सुबह बोकारो डीसी के आवास के पास आपूर्ति विभाग के नाजिर मुकेश कुमार को 70 हजार रुपए रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा. मुकेश को पैसा पकड़ने के बाद कुछ शक हुआ तो वो उसने वहां से भागना शुरू कर दिया. लेकिन एसीबी के टीम ने उसे दौड़ा कर पकड़ा. दूसरी तरफ रिश्वत की राशि ज्यादा होने की वजह से कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं.
शिकायतकर्ता ने एसीबी से कहा कि वो आपूर्ति विभाग में ट्रांसपोर्टिंग का काम करते हैं. उनका करीब 12 लाख का बिल बकाया था. मुकेश कुमार उस बिल के भुगतान के एवज में छह फीसदी की राशि रिश्वत के तौर पर मांग रहा था. पुख्ता सूत्रों का कहना है कि मुकेश कुमार के इस विभाग में आने से पहले दो फीसदी के कमीशन पर ही काम हो जाया करता था. लेकिन मुकेश ने रिश्वत की राशि को दो फीसदी से बढ़ा कर छह फीसदी कर दी. इसी बात से आपूर्ति विभाग में काम करने वाले संवेदक मुकेश से नाराज चल रहे थे. इसी बीच मुकेश के खिलाफ एसीबी में शिकायत हुई और मुकेश डीसी आवास के ठीक सामने से उसकी गिरफ्तारी हुई.
स्वास्थ्य विभाग के कम्प्यूटर ऑपरेटर का गोपनीय में क्या काम
2010 में मुकेश की नौकरी अनुकंपा के आधार पर बोकारो के स्वास्थ्य विभाग में लगी. कुछ दिनों में वो स्वास्थ्य विभाग से सीधा डीसी के गोपनीय कार्यालय पहुंच गए. बोकारो स्टील सिटी अपने स्टील के साथ क्वाटरों के लिए भी मशहूर है. कहा जा रहा है कि बोकारो डीसी पुल के सभी फाइलों को निबटारा धीरे-धीरे मुकेश के जिम्मे आ गया. क्वाटरों के हेर-फेर को लेकर कई बार मुकेश पर आरोप लगे. मुकेश की पकड़ बोकारो प्रशासन पर कितनी है उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक कर्ल्क रहने के बावजूद उसे प्रशासन की तरफ से बोकारो के सेक्टर वन जहां सिर्फ अधिकारियों के लिए आवास आवंटित होते हैं, वहां उसका आवास है. गिरफ्तारी के बाद एसीबी की टीम उसके सेक्टर वन के आवास पर भी गयी और जांच की.
इधर, जब पुराने डीसी को मुकेश के काम करने के तरीके से बारे में मालूम चला तो उन्होंने मुकेश को गोपनीय में रहने दिया, लेकिन महत्वपूर्ण सारी जिम्मेदारियां छीन ली. लेकिन दूसरी तरफ मुकेश डीसी आवास में रहते-रहते अपनी पैठ मजबूत करता रहा और 2018 में वो आपूर्ति विभाग के नाजिर की भूमिका में भी आ गया.
बकाया बिल पास कौन करता है
एसीबी की कार्रवाई से यह साफ हो गया कि संवेदकों के बिल पास कराने के एवज में मुकेश रिश्वत लिया करता था. लेकिन सवाल यह कि क्या मुकेश के पास बिल पास करने का पावर था? जिला में बिल पास करने का अधिकार वरीय अधिकारी के पास ही होता है. ऐसे में क्या रिश्वत लेने में मुकेश अकेला ही शामिल है? क्या उसकी अधिकारियों के बीच इतनी पैठ थी कि सिर्फ उसके कहने पर ही बिल पास हो जाया करता है. दूसरी तरफ बात ये हो रही है कि एक स्वास्थ्य विभाग का कम्प्यूटर ऑपरेटर आखिर डीसी के गोपनीय में करता क्या था ?