झारखंड की सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षण की आवश्यक्ता, जानिए; क्या कहते हैं विशेषज्ञ

झारखंड: प्रत्येक वर्ष 19 नवंबर से 25 नवंबर तक पूरी दुनिया में धरोहर सप्ताह मनाया जाता है. धरोहर सप्ताह में विश्व की विरासत को कैसे संरक्षित कर रखा जाए तथा धरोहरों के महत्व पर चर्चा करते हुए नौनिहालों को, विद्यार्थियों को और समाज के लोगों को धरोहर के महत्व से अवगत कराया जाता है. बता दें कि विश्व में अब तक 1154 स्थलों को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है, जिनमें 897 सांस्कृतिक विरासत के रूप में है. भारत में 40 यूनेस्को धरोहर स्थल हैं, जिनमें 32 सांस्कृतिक स्थल, 7 प्राकृतिक स्थल और एक मिश्रित स्थल के रूप में चिन्हित कर इन्हें मान्यता प्रदान की गई है.

सभी स्थलों को यूनेस्को के द्वारा भले ही मान्यता प्राप्त ना हो, लेकिन हमारे समाज में कई ऐसी धरोहर हैं, जो हमें अपने पूर्वजों के संबंध में और हमें अपने इतिहास के संबंध में जानकारी प्रदान करती है.

सांस्कृतिक धरोहर स्थलों का पर्यटन केंद्र के रूप में विकास

सतकरिया शैल चित्र के ऊपर सर्वप्रथम शोध करने वाले युवा मानव शास्त्री डॉ गंगानाथ झा, जिन्होंने झारखंड की मुंडा जनजाति के ऊपर एथनोग्राफिक फिल्म-जंगल के दावेदार मुंडा जनजाति, बनायी है. उनके अनुसार झारखंड की विभिन्न सांस्कृतिक धरोहरों एवं शैल चित्रों से जुड़े क्षेत्रों का एथ्नो आर्कलॉजिकल शोध अध्ययन के द्वारा पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर ग्रामीण क्षेत्र में विशेषकर जनजाति क्षेत्र में रोजगार के अवसर का सृजन किया जा सकता है.

संरक्षण के अभाव में सांस्कृतिक धरोहरों का क्षय हो रहा

झारखंड में कई ऐसी सांस्कृतिक धरोहर हैं, जिन्हें संरक्षण की आवश्यकता है. संरक्षण के अभाव में कुछ स्थलों का प्राकृतिक प्रकोप से क्षरण हो रहा है, जिसे बचाने की आवश्यकता है. कुछ स्थलों पर मानवीय छेड़छाड़ धरोहरों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर रहा है. झारखंड के कई मंदिरों में बौद्ध कालीन प्रतिमाएं हैं. इसके साथ ही हाल ही में हजारीबाग सदर के बहोरनपुर में की गई खुदाई से कई बौद्ध कालीन प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं, जिसके संरक्षण की भी आवश्यकता है. झारखंड की धरोहर से जुड़े स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर यहां की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत किया जा सकता है. विशेषकर इस पर्यटन में स्थानीय रोजगार की अपार संभावनाएं हैं.

हजारीबाग के डाड़ी प्रखंड अंतर्गत सतकरिया गांव का लिखनी शैल चित्र प्राकृतिक और मानवीय प्रकोप से अपना अस्तित्व खो रहा है, इसे भी बचाने की आवश्यकता है. ठीक इसी प्रकार हजारीबाग के बड़कागांव अंतर्गत जनजाति ग्राम की पहाड़ियों के शैल आश्रय में आदिकालीन शैल चित्र हमें पूर्वजों की अभिव्यक्ति से परिचय करवाता है. इस शैल चित्र स्थल को पर्यटन स्थल बनाकर राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित किया जा सकता है.

झारखंड में कुल 32 प्रकार की जनजातियां निवास करती है

मुंडा जनजाति से सीखने की जरूरत जनजाति बहुल राज्य झारखंड में जहां कुल 32 प्रकार की जनजातियां निवास करती हैं, इनमें मुंडा जनजाति बहुसंख्यक जनजाति के रूप में है. इनकी समृद्ध संस्कृति और परंपरा ज्ञान से समाज को बहुत कुछ सीखने को मिलता है. मुंडा संस्कृति के संरक्षण के लिए इनके पूर्वज मदरा मुंडा के ऐतिहासिक वास स्थल से जुड़े सुतियांबे पहाड़ी के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता है. कांके स्थित मदरा मुंडा के सुतियाअंबे पहाड़ी के संरक्षण से पर्यटन के माध्यम से लोगों को इतिहास की जानकारी मिलेगी.

Web Title : JHARKHANDS CULTURAL HERITAGE NEEDS TO BE PRESERVED, KNOW; WHAT EXPERTS SAY

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