इंडियन मेडिकल काउंसिल बिल पारित, क्या भ्रष्टाचार पर कसेगी नकेल!

संसद में इंडियन मेडिकल काउंसिल (संशोधन) विधेयक 2019 पिछले सप्ताह पास हो गया. यह विधेयक केंद्र सरकार को अनुमति देता है कि वह मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) को अपने हाथ में ले ले. एमसीआई डॉक्टरों की चुनी हुई नियामक संस्था है जो मेडिकल शिक्षा और पेशेवर गतिविधियों को नियंत्रित करती है. यह विधेयक उस आर्डिनेंस की जगह आया है जो इस साल जनवरी में लाया गया था.

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को साफ सुथरा और पारदर्शी बनाने की कोशिश 2010 से ही चल रही थी. जनवरी में लाया गया आर्डिनेंस इसी की अगली कड़ी थी. सरकार ने दो बार एमसीआई की जगह एक नई नियामक संस्था लाने की कोशिश की. पहली बार 2011 में नेशनल काउंसिल ऑफ ह्यूमन रिसोर्सेज इन हेल्थ (NCHRH) के रूप में और दूसरी बार 2017 में नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) के रूप में. लेकिन यह दोनों ही कोशिशें फेल हो गई थीं.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि एमसीआई अपने काम को सही तरीके से पूरा करने में विफल और भ्रष्टाचार में लिप्त रही है. एमसीआई को पहली बार 2010 में नियंत्रण में लिया गया था जब इसके अध्यक्ष केतन देसाई को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. उन पर पंजाब के एक मेडिकल कॉलेज को मान्यता देने के लिए 2 करोड़ रुपये रिश्वत लेने का आरोप लगा था.

2016 में एक संसदीय पैनल ने एमसीआई की कार्य पद्धति की जांच की और पाया कि इसके खिलाफ शिकायतों की लंभी फेहरिस्त है. जांच में जवाबदेही और पारदर्शिता की कमी, अनिवार्य जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पाना, भ्रष्टाचार, स्नातक और परास्नातक शिक्षा में खराब नियमन और कमजोर नियंत्रण जैसी कमियां उजगर हुई.

क्या कहता है विधेयक

यह विधेयक दो साल के लिए चुनी जाने वाली एमसीआई को निष्प्रभावी करते हुए इसकी शक्तियां सरकार की ओर से नियुक्त बोर्ड आफ गवर्नर्स को देता है. इस बोर्ड में 12 सदस्य होंगे, जबकि एमसीआई में 7 सदस्य होते थे. विधेयक में सदस्यों की योग्यता को लेकर भी नए प्रावधान किए गए हैं. अब बोर्ड आफ गवर्नर्स में मेडिकल डॉक्टरों के अलावाप्रशासनिक क्षमता और अनुभव´ वाले एक्सपर्ट भी शामिल होंगे. बोर्ड की सहायता के लिए एक सेक्रेटरी जनरल होगा जिसे केंद्र सरकार नियुक्त करेगी. वह काउंसिल के सचिवालय का प्रमुख होगा.

बिल पास होने तक लंबा संघर्ष

एमसीआई को जवाबदेह बनाने की प्रक्रिया 2009 में शुरू हो गई थी. जब राष्ट्रपति ने पूरे मेडिकल क्षेत्र के लिए एक नियामक संस्था नेशनल काउंसिल ऑफ ह्यूमन रिसोर्सेज इन हेल्थ (NCHRH) की स्थापना की घोषणा की थी. यह कुशल पेशेवरों की आपूर्ति के लिए नियामक संस्था में सुधार की एक पहल थी. इसके तहत उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए अलग से काउंसिल बनाई जानी थी.

2010 में इस प्रक्रिया ने रफ्तार पकड़ ली जब एमसीआई के अध्यक्ष को गिरफ्तार किया गया और सरकार ने इसके संचालन को अपने नियंत्रण में लेते हुए एक आर्डिनेंस के जरिए सात सदस्यीय बोर्ड आफ गवर्नर्स की नियुक्ति कर दी. शुरू में यह यह व्यवस्था एक साल के लिए थी लेकिन आगे चलकर इसे 2013 तक बढ़ा दिया गया.

इसी बीच 2011 में एक नई नियामक संस्था की स्थापना के लिए NCHRH बिल पेश किया गया लेकिन एक संसदीय पैनल ने सुझाव दिया कि इसे वापस ले लिया जाना चाहिए और पर्याप्त रायशुमारी और शंकाओं के समाधान के साथ इसे फिर से ड्राफ्ट किया जाना चाहिए. हालांकि, 2013 में सरकार पर्याप्त कानूनी प्रक्रिया के जरिये एमसीआई की पुनर्स्थापना करने में नाकाम रही और एमसीआई 2018 तक अपने पुराने स्वरूप में ही मौजूद रहा.

इस दौरान संस्था के खिलाफ नए भ्रष्टाचार के मामले सामने आए, जो सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया और इसकी निगरानी के लिए दो बार निरीक्षण समितियां बनीं. 2018 में दूसरी निरीक्षण समिति ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि एमसीआई उसके निर्देशों का पालन नहीं करती है. इसके चलते 2018 में फिर से सरकार ने एक आर्डिनेंस के जरिए इसे अपने नियंत्रण में ले लिया.

एमसीआई के विकल्प के रूप में सरकार ने लोकसभा में नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) विधेयक 2017 पेश किया लेकिन कई वजहों से इस विधेयक पर भी संकट के बादल छा गए. इसमें से प्रतिनिधित्व नदारद था. जैसे चुने हुए मेडिकल पेशेवर और राज्यों के प्रतिनिधियों को जगह नहीं दी गई थी. प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में फीस की व्यवस्था में समस्या थी और साथ ही यह भी सिफारिश थी कि डॉक्टरों को आयुष-आयुर्वेद, योग, यूनानी, होम्योपैथी आदि के ´ब्रिज कोर्स´ कराएं जाएं और डॉक्टर्स उन्हें भी अपने सुझावों में शामिल करें.

संसदीय पैनल ने NMC विधेयक का निरीक्षण किया और इसके कई ​बदलावों का सुझाव दिया. पैनल ने विधेयक में प्रतिनिधित्व बढ़ाने के साथ यह भी सुझाव दिया कि आयुष के ´ब्रिज कोर्स´ को अनिवार्य न किया जाए. इसे बाद में सरकार ने स्वीकार कर लिया. हालांकि, NMC विधेयक दोबारा नहीं लाया गया और पिछली लोकसभा में स्वत: ही रद्द हो गया.

विधेयक का विरोध क्यों?

भारत में डॉक्टरों की प्रतिनिधि संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने एमसीआई को सरकारी नियंत्रण में लेने का कड़ा विरोध किया है. IMA के पूर्व अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल का कहना है कि किसी भी नियामक संस्था की स्वायत्तता छीन लेना समाज और लोकतंत्र के हित में नहीं है.

उन्होंने कहा, जैसे आप संसद को सिर्फ कैबिनेट के निर्णयों से नहीं चला सकते या बिना दोनों सदनों से पास किए बगैर नहीं चला सकते, ठीक उसी तरह एमसीआई को चलाने के लिए आपको एक एक्जीक्यूटिव बॉडी और काउंसिल चाहिए. एमसीआई पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर उनका कहना है कि सरकार अगर चाहे तो बिना इसकी स्वायत्तता छीने, समुचित कार्रवाई के जरिये इसका उपाय कर सकती है.

IMA के एक और पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय अग्रवाल भी इसी तरह के विचार व्यक्त करते हैं. उन्होंने NMC का ​भी विरोध किया था. वे कहते हैं कि ऐसी संस्थाओं को अनिवार्य रूप से लोकतांत्रिक, प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने वाली और स्वायत्त होना चाहिए.

किसी नियामक संस्था को मजबूत करने के लिए 10 साल का समय किसी भी सरकार के लिए बहुत होता है. सरकार को सतर्क और सावधान होना चाहिए. जैसा कि पिछले 10 साल से होता रहा, आर्डिनेंस और एक विधेयक के बदले दूसरे विधेयक लाने की जगह सरकार को सलाह और योजना के ​जरिए दीर्घकालिक समाधान खोजना चाहिए.

Web Title : INDIAN MEDICAL COUNCIL BILL PASS PARLIAMENT CONTROL ON CORRUPTION

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