इच्छा का अंत नहीं, मानव तन का उपयोग आत्मा का उत्थान करने में, संयम पथ पर मुमुक्षु राकेश सुराना, मुमुक्षु लीना सुराना और अमय सुराना 22 मई को जयपुर में लेंगे दीक्षा

बालाघाट. एक संभ्रांत परिवार और उच्च शिक्षित पत्नी के साथ ही एक अच्छे पुत्र के साथ सांसरिक जीवन को त्यागकर सुराणा परिवार के युवा 40 वर्षीय मुमुक्षु राकेश सुराना, 36 वर्षीय पत्नी मुमुक्षु लीना सुराना और 11 वर्षीय पुत्र मुमुक्ष अमय सुराना के साथ, संयम और अध्यात्म के पथ पर चलकर आगामी 22 मई को अध्यात्म योगी प. पू. महेन्द्र सागरजी म. सा. से प्रेरित होकर दीक्षा ग्रहण करने जा रहे है.

वैनगंगा की पावन धरा से जैन परिवार के कई सदस्यों ने भौतिक सुख वैभव से आत्मिक वैभव की ओर गये है, आत्मिक वैभव की ओर पहली बार पूरा परिवार संयम और अध्यात्म के पथ पर अग्रसर होकर प्रभु महावीर की वीर परंपरा में कदम बढ़ाकर अपने आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्ज्ञत करने जा रहा है, जो केवल और केवल शूरवीर ही कर सकते है.  

ऐसे शूरवीर दीक्षार्थियोें अभिनंदन समारोह सुराना परिवार द्वारा वैध लॉन में किया गया. जहां बड़ी संख्या में सामाजिक लोगो ने पहुंचकर उनका अभिनंदन किया.  

इससे पूर्व आयोजित प्रेसवार्ता में मुमुक्षु राकेश सुराना, मुमुक्षु पत्नी लीना सुराना और मुमुक्ष अमय सुराना ने प्रेस से चर्चा कर संयम और अध्यात्म के मार्ग पर चलने के भाव और प्रेरणा को लेकर पत्रकारों से चर्चा की.

इच्छाओें का अंत नहीं, मानव तन का उपयोग आत्मा का उत्थान करने में 

बीकॉम शिक्षित स्व. इंदरचंद सुराना के सुपुत्र राकेश सुराना का विवाह महाराष्ट्र निवासी लीना के साथ हुआ था. सांसरिक जीवन के दौरान वे पिता बने. इसी दौरान उन्हें बालाघाट में एक ज्वेलरी शो-रूम खोला और उस व्यवसाय में लीन हो गये. बकौल, राकेश सुराना ने महसुस किया कि सबकुछ प्राप्त करेन के बाद वह आत्मिक सुख नहीं है. जब मानव तन पाया है कि उसकी कीमत, धन दौलत कमाने या भोगने में नहीं है, जब उन्होेंने अपना आंतरिक अवलोकन किया तो उन्हें लगा कि इच्छायें तो पेट्रोल के समान है, यह भड़कती जाती है और इच्छाओें का अंत नहीं है और मानव जीवन का उपयोग आत्मा के उत्थान में है, जिसमें जीवन को आगे बढ़ाना चाहिये. यह पूर्वजन्म का जुड़ाव या संयोग ही है कि वर्ष 2015 में बालाघाट में अध्यात्म योगी प. पू. महेन्द्र सागरजी म. सा. से प्रेरित दीक्षा लेने जा रही पत्नी को उन्होंने रोका था, उन्होंने भी उनके साथ संयम और अध्यात्म के पथ पर चलने का भाव प्रगट किया. यही नहीं बल्कि 11 वर्षीय पुत्र अमय के मन में भी गुरूदेव और संस्कारोें के बीजोें का ऐसा रोपण हो गया था कि उसमें भी संयम और अध्यात्म पथ पर चलने में अपनी स्वीकृति दी. जिसके बाद पूरे परिवार ने तय किया कि वह सांसरिक जीवन को त्यागकर आत्मिक शांति के लिए दीक्षा लंेगे. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण जीवन सांसरिक जीवन है, जिसमें भागदौड़, रोज कमाना, खाना सहित अन्य कई उलझने है, जिसमें शारीरिक और मानसिक कष्ट होता है अर्थात व्यक्ति आत्मिक सुख से वंचित हो जाता है. तपस्या में भले ही कुछ शारीरिक कष्ट हो लेकिन मानसिक शांति भरपूर है और व्यक्ति को मानसिक शांति के लिए जीवन का उपयोग करना चाहिये.

सुख पैसो में नहीं, आत्मिक उत्थान के लिए धर्म का मार्ग ही सही

बैंगलोर यूनिवर्सिटी के साथ ही यूके और केम्ब्रिज में उच्च शिक्षा अध्ययन करने के साथ ही स्कूल का संचालन और सामाजिक सेवा कर रही मुमुक्ष

लीना सुराना ने कहा कि सुख पैसो में नहीं है, यदि सुख पैसो में होता, आलीशन मकान और बड़े गद्दो में सोने में होेता तो नींद की गोलियां लेकर नहीं सोते, वह साइकाट्रिस्ट के पास नहीं जाते. हमेशा मेरा यह प्रयास रहा कि समाज के लिए कुछ अच्छा करू, फिर आत्मा का कल्याण भी करना था और आत्मिक उत्थान, जैन दर्शन के अनुसार मोक्ष मार्ग, धर्म का मार्ग से ही संभव है, जिसे हम अपनाने जा रहे है. उन्होेंने बताया कि वर्ष 2015 में अध्यात्म योगी प. पू. महेन्द्र सागरजी म. सा. निश्रा मेें आत्मा को समझा, आत्मा को उत्थान को समझा. जिसमें समझा कि आत्मा और शरीर अलग है, आत्मा 84 लाख योनियोें में भटकती रहती है और उसका अंत नहीं है, जिसके लिए मोक्ष और धर्म के मार्ग पर आगे चलकर ही उसका कल्याण संभव है और फिर परिवार के साथ तपस्या के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया. उन्होंने कहा कि यह सब अचानक नहीं हो सका है प्रक्रिया निरंतर चालु थी. गुरू भगवंतो से मिले ज्ञान, जैन दर्शन को पढ़ा है. जिसके बाद यह निर्णय लिया है. पुत्र को लेकर उन्हांने कहा कि यह संस्कारों का परिणाम है, कुल भव के संस्कार है. यह निर्णय भी अमय का है, और वह बचपन से ही गुरू भगवंतो की निश्रा में रहा और उन्हीं के प्रेरणा से आज उसने भी यह निर्णय लिया है. उन्होंने कहा कि हमें मॉडर्न शिक्षा के साथ ही धर्म और नैतिक शिक्षा भी देने की आज आवश्यकता है.

चातुर्मास से संयम और अध्यात्म के पथ पर चलने का आया भाव

मुमुक्षु राकेश सुराना और मुमुक्षु लीना सुराने के पुत्र अमय सुराना भी आगामी 22 मई को माता-पिता के साथ जैन दीक्षा ले रहे है. 11 वर्ष की उम्र में किसी बालक के जैन दीक्षा लेने का पूरे महाकौशल क्षेत्र में पहला मामला है, जब इतनी कम उम्र और माता-पिता के साथ कोई बालक जैन दीक्षा ले रहा हो, जो उसके अध्यात्म के भाव को दर्शाता है. बकौल, अमय सुराना का कहना है कि वर्ष 2015 में 

परमपूज्य अध्यात्म योगी अध्यात्म योगी महेन्द्र सागर, परमपूज्य युवा मनीष सागर महाराज के चतुर्मास के दौरान जब वह उनके पास जाता था, तब से उसके मन में संयम और अध्यात्म के मार्ग पर चलने के लिए दीक्षा के भाव आये थे. मुमुक्षु अमन सुराना, बचपन से ही धर्म के प्रति आस्थावान था और वह रात्रि का भोजन नहीं करता था.  

आज निकलेगा वर्षीदान वरघोड़ा

आज 17 मई को दशो दिशाओ में गुंजाता विरती धर्म का जयनाद कराने वाला वर्षीदान वरघोड़ा प्रातः 8. 15 बजे काली पुतली चौक स्थित अहिंसा द्वार से निकलेगा. जिसके बाद प्रातः 11. 30 बजे से दोपहर 2 बजे तक कृषि उपज मंडी इतवारी गंज में साधर्मी वात्सल्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. सायंकाल 6. 15 बजे कुमारपाल महाराजा की आरती होगी और सकल संघ के साथ दीक्षार्थी परिवार पार्श्वनाथ भवन से जिनकुशलसूरि दादाबाड़ी मंदिर की ओर प्रस्थान करेगा. रात्रि 8 बजे कृषि उपज मंडी ईतवारी गंज में अभिनंदन समारोह का आयोजन श्री महाकौशल जैन श्वेतांबर मूर्ति पूजक संघ अध्यक्ष अभय सेठिया, श्री नमिऊण तीर्थ सिवनी के सचिव राहुल बरड़िया, ट्रस्टी संकल्प कोचर और आशीष कोठारी के आतिथ्य में आयोजित किया गया है.  

मां और बहन भी ले चुकी हैं दीक्षा

श्री सुराना ने बताया कि वर्ष 2017 में उनकी माता चंदा देवी सुराना (सांसारिक नाम) ने प्रज्ञा श्रीजी मसा के सानिध्य में दीक्षा ली थी. तब उनका नाम परमपूज्य चौतन्य निधि श्रीजी था, लेकिन दीक्षा लेने के महज सात दिन उनका देवलोक हो गया. वह कैंसर से पीड़ित थीं. इनके अलावा राकेश सुराना की बहन नेहा सुराना (सांसारिक नाम) ने मणिप्रभा श्रीजी के सानिध्य में वर्ष 2008 में दीक्षा ली थी, जिसके बाद से उनका नाम साध्वी सौम्यनिधि श्रीजी हो गया.


Web Title : NOT THE END OF DESIRE, THE USE OF HUMAN BODY TO UPLIFT THE SOUL, ON THE PATH OF MODERATION, MUMUKHHU RAKESH SURANA, MUMUKHSU LEENA SURANA AND AMAY SURANA WILL TAKE DIKSHA ON MAY 22 IN JAIPUR