आंठवी कक्षा में पिता का साया सर से उठ गया, परिस्थितियों से बिना हारे संघर्ष कर बेटी बनी जज

धनबादः मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है. इसी सूत्रवाक्य को आधार मानकर धनबाद की बेटी मेघा प्रियंका ने अपनी सफलता का झंडा गाड़ दिया है. धनबाद के बेकारबांध की रहने वाली मेघा ने झारखंड सिविल जज की परीक्षा पास कर ली है. ऐसा कमाल उन्होंने अपने प्रथम प्रयास में ही कर दिखाया है.      

2004 में पिता की दुर्घटना में हो गई थी मौत

मेघा जब कक्षा आठ में पढ़ रही थी, तो पिता मंटू दीपक लकड़ा (जो रेलवे में गार्ड के पद पर तैनात थे) की मौत एक दुर्घटना में हो गई थी. नन्हीं उम्र में पिता को खो देने के बाद मेघा टूट गई थी, लेकिन मां मधुमेरी लकड़ा के संबल और खुद के आत्मविश्वास से मेघा संभली और सारी पारिवारिक जिम्मेवारियां निभाते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया.  

धनबाद लाॅ काॅलेज से किया था विधि शास्त्र में स्नातक   

सिविल जज बनने वाली मेघा की अधिकांश पढ़ाई धनबाद से ही हुई. उन्होंने दसवीं 2009 में, बारहवीं की पढ़ाई 2012 में माउंट कार्मेल से पूरी की. ग्रेजुएशन कोलकाता विश्वविद्यालय से और लाॅ की उपाधि धनबाद के लाॅ काॅलेज से ग्रहण की.

भाई-बहन में सबसे बड़ी हैं मेघा

मेघा के परिवार में उनकी मां, छोटी बहन मिंशू लकड़ा और छोटा भाई साहिल लकड़ा है. मां रेलवे में कार्यरत हैं. मिंशू इंडिगो एयरलाइन्स में जाॅब करती है. वहीं, साहिल अभी स्नातक की पढ़ाई कर रहा है.  

जेपीएससी चैयरमैन के बोर्ड में हुआ था साक्षात्कार, चकराने वाले सवालों से हुआ था सामना 

सिविल जज नियुक्ति परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा 2019 के मई में, मुख्य परीक्षा सितंबर में और इंटरव्यू जनवरी 2020 में हुआ था. मेघा का साक्षात्कार सात जनवरी को जेपीएससी चेयरमैन सुधीर त्रिपाठी के बोर्ड में हुआ था. मेघा ने बताया कि इंटरव्यू में कई सवाल भ्रमित करने वाले थे, जिसमें आमतौर पर गलतियां हो जाती हैं. लेकिन, उन्होंने सारे सवालों का सही और बेहिचक जवाब दिया और परिणाम सबके सामने है.  

न पड़े तारीख पर तारीख, लोगो को जल्दी मिले न्याय, इसका करूंगी प्रयास  

मेघा ने सिटी लाइव से बातचीत में बताया कि ज्वाइन करने के बाद मेरा पहला प्रयास रहेगा कि लंबित मामलों में जल्द से जल्द कार्रवाई कर उनका निष्पादन करूं. लोगों को न्याय मिलने में बेवजह देर न हो. समय पर न्याय मिले, ताकि न्यायिक व्यवस्था लोगों का भरोसा अखंड रहे.