वैदिक गणित के प्रकांड विद्वान भी हैं श्रीमदगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज

धनबाद. चिटाही धाम रामराज मंदिर में 145 वें श्रीमदगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज का बाघमारा चिटाही धाम में आगमन हुआ. यंहा वह ज्ञान की धारा बहाएंगे. आइए जानते है उनके जीवन की गाथा एक झलक में -

30 जून 1943 को बिहार के दरभंगा में हुआ था जगतगुरु का जन्म हुआ था.  

शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती वैदिक गणित के प्रकांड विद्वान हैं. उन्होंने वैदिक गणित पर 11 किताबें भी लिखी हैं. इसके अलावा वो बार्क, आईआईटी और इसरो जैसे संस्थानों में वैदिक गणित के महत्व पर लेक्चर देने भी जाते हैं.

इसरो वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 के लॉन्च में हो रही दिक्कतों को दूर करने के लिए शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती से सलाह ली. शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती की सलाह पर वैज्ञानिकों ने वैदिक गणित से अपनी समस्या का समाधान किये जाने की बात कही जा रही है.

जगतगुरु का श्री ऋगवैदिय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठ के वर्तमान 145 वें श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज भारत के एक ऐसे सन्त हैं जिनसे आधुनिक युग में विश्व के सर्वोच्च वैधानिक संगठनों संयुक्त राष्टसंघ तथा विश्व बैंक तक ने मार्गदर्शन प्राप्त किया है.

संयुक्त राष्टसंघ ने दिनांक 28 से 31 अगस्त 2000 को न्यूयार्क में आयोजित विश्वशांति शिखर सम्मेलन तथा विश्व बैंक ने वर्ल्ड फेथ्स डेवलपमेन्ट डाइलॉग- 2000 के वाशिंगटन सम्मेलन के अवसर पर उनसे लिखित मार्गदर्शन प्राप्त किया था.  

श्री गोवर्धन मठ से संबंधित स्वस्ति प्रकाशन संस्थान द्वारा इसे क्रमश: विश्व शांति का सनातन सिद्धांत तथा सुखमय जीवन सनातन सिद्धांत शीर्षक से सन् 2000 में पुस्तक रूप में प्रकाशित किया है. वैज्ञानिकों ने कम्प्यूटर व मोबाईल फोन से लेकर अंतरिक्ष तक के क्षेत्र में किये गये आधुनिक आविष्कारों में वैदिक गणितीय सिद्धांतों का उपयोग किया है जो पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य श्री स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा रचित स्वस्तिक गणित नामक पुस्तक में दिये गये हैं.

गणित के ही क्षेत्र में पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य जी महाराज की अंक पदीयम् तथा गणित दर्शन नाम से दो और पुस्तकों का लोकार्पण हुआ है, जो निश्चित ही विश्व मंच पर वैज्ञानिकों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में नए आविष्कारों के लिए नए परिष्कृत मानदंडों की स्थापना करेंगे. अपनी भूमिका से भारत वर्ष को पुन: विश्वगुरू के रूप में उभारने वाले पूज्यपाद जगद्गुरू श्री शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज का जन्म बिहार प्रान्त के मिथिलाच्जल में दरभंगा (वर्तमान में मधुबनी) जिले के हरिपुर बख्शीटोलमानक गांव में आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी, बुधवार रोहिणी नक्षत्र, विक्रम संवत् 2000 तदानुसार दिनांक 30 जून ई. 1943 को हुआ. देश-विदेश में उनके अनुयायी उनका प्राकट्य दिवस उमंग व उत्साहपूर्वक मनाते हैं.

पिता पं श्री लालवंशी झा क्षेत्रीय कुलभूषण दरभंगा नरेश के राज पंडित थे. आपकी माताजी का नाम गीता देवी था. आपके बचपन का नाम नीलाम्बर था. आपकी प्रारंभिक शिक्षा बिहार और दिल्ली में सम्पन्न हुई है. दसवीं तक आप बिहार में विज्ञान के विद्यार्थी रहे. दो वर्षों तक तिब्बिया कॉलेज दिल्ली में अपने अग्रज डॉ. श्री शुक्रदेव झा जी की छत्रछाया में शिक्षा ग्रहण की पढ़ाई के साथ-साथ कुश्ती, कबड्डी और तैरने में अभिरूचि के अलावा आप फुटबाल के भी अच्छे खिलाड़ी थे.

बिहार और दिल्ली में आप छात्रसंघ विद्यार्थी परिषद के उपाध्यक्ष और महामंत्री भी रहे. अपने अग्रज पं श्रीदेव झा जी के प्रेरणा से अपने दिल्ली में सर्व वेद शाखा सम्मेलन के अवसर पर पूज्यपाद धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज एवं श्री ज्योतिर्मठ बदरिकाश्रम के पीठाधीश्वर पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री कृष्णबोधाश्रम जी महाराज का दर्शन प्राप्त किया.

इस अवसर पर उन्होंने पूज्य करपात्री जी महाराज को हृदय से अपना गुरूदेव मान लिया. तिब्बिया कालेज में जब आपकी सन्यास की भावना अत्यंत तीव्र होने लगी तब वे बिना किसी को बताये काशी के लिए पैदल ही चल पड़े. इसके उपरांत आपने काशी, वृन्दावन, नैमिषारण्य, बदरिकाआश्रम, ऋषिकेश, हरिद्वार, पुरी, श्रृंगेरी आदि प्रमुख धर्म स्थानों में रहकर वेद-वेदांग आदि का गहन अध्ययन किया.  

नैमिषाराण्य के पू्ज्य स्वामी श्री नारदानन्द सरस्वती जी ने आपका नाम ‘ध्रुवचैतन्य’ रखा. आपने 7 नवम्बर 1966 को दिल्ली में देश के अनेक वरिष्ठ संत-महात्माओं एवं गौभक्तों के साथ गौरक्षा आन्दोलन में भाग लिया. इस पर उन्हें 9 नवम्बर को बन्दी बनाकर 52 दिनों तक तिहाड़ जेल में रखा गया.

बैशाख कृष्ण एकादशी गुरूवार विक्रम संवत् 2031, दिनांक 18 अप्रैल 1974 को हरिद्वार में आपका लगभग 31 वर्ष की आयु में पूज्यपाद धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के करकमलों से सन्यास सम्पन्न हुआ और उन्होंने आपका नाम ‘निश्चलानन्द सरस्वती’ रखा.  

श्री गोवर्धन मठ पुरी के तत्कालीन 144 वें शंकराचार्य पूज्यपाद जगद्गुरू स्वामी निरन्जनदेव तीर्थ जी महाराज ने स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती को अपना उपयुक्त उत्तराधिकारी मानकर माघ शुक्ल षष्ठी रविवार विसंवत् 2048, दिनांक 9 फरवरी 1992 को उन्हें अपने करकमलों से गोवर्धनमठ पुरी के 145 वें शंकराचार्य पद पर पदासीन किया. शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने के तुरन्त बाद आपने ‘अन्यों के हित का ध्यान रखते हुए हिन्दुओं के अस्तित्व और आदर्श की रक्षा, देश की सुरक्षा और अखण्डता’ के उद्देश्य से प्रामाणिक और समस्त आचार्यों को एक मंच पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए राष्ट रक्षा के इस अभियान को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान कराने की दिशा में अपना प्रयास आरंभ कर दिए.