धनबाद- कलश स्थापना के साथ देवी का आगमन, भक्तों पर बरसा आशीष

धनबाद- कलश स्थापना के साथ देवी का आगमन, भक्तों पर बरसा आशीष

कलश स्थापना के साथ सोमवार को दुर्गोत्सव प्रारंभ हो गया. सभी देवी मंदिरों और पूजा पंडालों में कलश स्थापित की गई. विभिन्न शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित कर मां दुर्गे का आवाहन किया गया. नवरात्रि के पहले दिन पूरा कोयलांचल माता के जयकारों से गूंज उठा. पूजा पंडाल हो या फिर देवी मंडप या देवी मंदिर हर जगह प्रातःकाल से ही देवी के मंत्रोच्चार के साथ कलश स्थापना की गई. कलश स्थापना के बाद प्रथम दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की. प्रथम दिन शहर के खड़ेश्वरी मंदिर, भुईंफोड़ मंदिर सहित सभी देवी मंदिरों में माता के दर्शन को भक्त पहुंचे.

बांग्ला परंपरा में कलश स्थापन

बांग्ला परंपरा के अनुसार कलश स्थापना के दिन प्रथम दिवस पर सामान्य पूजा होती है. दरअसल षष्ठी तिथि को देवी का बोधन, आमंत्रण और अधिवास होता है. जबकि सप्तमी तिथि को नवपत्रिका प्रवेश और स्थापन होता है. हरि मंदिर कमेटी के सदस्यों ने बताया कि महासप्तमी को देवी का गज पर आगमन होगा.

आज होगी मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन मंगलवार को मां दुर्गा के द्वितीय स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाएगी. वेदाचार्य पंडित रमेशचंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि इस दिन मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए. मान्यता है कि यह भोग लगाने से चिरायु का वरदान प्राप्त होता है. मां के इस स्वरूप की व्याख्या करते हुए रमेशचंद्र त्रिपाठी ने बताया कि मां ब्रह्मचारिणी ने राजा हिमालय के घर जन्म लिया था. नारद जी की सलाह पर उन्होंने कठोर तप किया ताकि वे भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर सकें. कठोर तप के कारण ही उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पण करें. उन्हें दूध, दही, घृत, मधु वह शर्करा से स्नान कराएं. देवी को पान, सुपारी, लांग अर्पित करें. कहा जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने वाले भक्त जीवन में सदा शांत चित्त और प्रसन्न रहते हैं. उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं सताता.