दिव्यांग बच्चों के संस्थान जीवन में मना वर्ल्ड शिजोफ्रेनिया डे

झरिया के बस्ताकोला स्थित दिव्यांग बच्चों के संस्थान जीवन में बुधवार को वर्ल्ड शिजोफ्रेनिया डे मनाया गया. इस अवसर पर व्याख्याता विशेष शिक्षा अनिल कुमार सिंह ने बताया कि शिजोफ्रेनिया एक सोच विकृति है. दूसरे शब्दों में इसे विखंडित मानसिकता भी कहा जाता है. मुख्य रूप से इसमें मस्तिष्क डैमेज होता है. महिलाओं से ज्यादा पुरुष इसके शिकार होते हैं. ज्यादातर 20 वर्ष 30 वर्ष बीच में यह रोग पाया जाता है. वैसे बच्चों में भी होता है, पर बहुत कम. इसे आसानी से पहचाना जा सकता है. जैसे -सोच में बदलाव, समझने के तरीके में बदलाव, व्यवहार में बदलाव, वास्तविक दुनिया से अलग होना, अकेले रहना पसंद करना,  अपनी दुनिया में खोए रहना, थोड़ी -थोड़ी देर में मूड का बदलाव होना, बिना किसी वजह पर दूसरे पर शक करना, उसे आवाज सुनाई देती है पर वैसा होता नहीं होना, पढ़ाई में मन नहीं लगना, एकाएक पढ़ाई छोड़ देना, चिड़चिड़ापन, नींद नहीं आना, कुछ भी ईकट्ठा करते रहना, उल्टा पुल्टा शब्द बोलना व अन्य. इसके कारण अनुवांशिक, पर्यावरणीय, न्यूरोलॉजिकल,शारीरिक, मादक द्रव्य, अति दुखी जीवन व अन्य हो सकता है. प्रारंभिक हस्तक्षेप, दवा बिहेवियर मोडिफिकेशन, मेडिटेशन, परिवार की अच्छी सहायता, रेगुलर इलाज के द्वारा सुधार किया जा सकता है. ठीक नहीं हो सकता प्रथम स्टेज में इलाज करवाने पर ठीक हो सकता है ऐसे मरीज को अकेले छोड़ने पर आत्महत्या भी कर सकता हैं.

पॉजिटिव शिजोफ्रेनिया, नेगेटिव शिजोफ्रेनिया, इमोशनल शिजोफ्रेनिया होते है. पॉजिटिव शिजोफ्रेनिया में काल्पनिक चीजों के होने का भ्रम रहता है. नेगेटिव शिजोफ्रेनिया में मरीज बेहद हताश  और निराश रहता है. इमोशनल सिजोफ्रेनिया में  अति लगाव होने के कारण किसी चीजों को छोड़ नहीं सकता.

Web Title : WORLD SCHIZOPHRENIA DAY CELEBRATED IN THE LIFE OF CHILDREN WITH DISABILITIES

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