City Live Special : आधी रात को अंधेरे में खो गयी रोशनी

धनबाद : नेताजी को लेकर उनके एक दोस्त दिल्ली जानेवाली कालका मेल में चढ़ाने गोमोह यानी गोमो आए थे.

हालांकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक पठान के वेश में थे और उन्हें पहचान पाना कठिन था.

ट्रेन के एक कंपार्टमेंट में सवार हुए. उनके सवार होने के तुरंत बाद ही ट्रेन खुल गयी. पठान ने परिचित से हाथ हिला कर विदा लिया.

नेताजी काफी देर तक हाथ हिलाते रहे थे. तब परिचित जान नहीं पाया था कि नेताजी से उनकी फिर कभी मुलाकात होगी कि नहीं.

परिचित देर तक ट्रेन की तरफ ताकते रहे थे.

ट्रेन के सामने से गुजर जाने के बाद पीछे प्रकाश का दो पुंज काफी दूर तक दिखा और फिर वह अंधेरे में विलीन हो गए.

इसके बाद नेताजी कहीं नहीं मिले.

उनके बारे में फिर किंविदंतियां ही शेष रह गयी.

अभी हाल ही भाजपा के नेता सुब्रह्मण्य स्वामी ने चैंकानेवाली जानकारी दी है.

उनका दावा है कि स्टालिन ने नेताजी को जेल में यातनाएं देकर मरवा दिया.

उन्होंने सरकारी दस्तावेजों के हवाले से यह कहा है.

नेताजी का धनबाद से एक तरह से पारिवारिक रिश्ता था. यहां उनके भतीजे अशोक बोस केमिकल इंजीनियर थे.

नेताजी तब यहां आते-जाते थे. नेताजी ने यहां देश की पहली रजिस्टर्ड मजदूर यूनियन की शुरुआत की. इसके खुद अध्यक्ष थे.

उन्होंने यहां मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ी.

अपने 18 जनवरी को गोमो से ऐतिहासिक महाभिनिष्क्रमण से दो दिन पहले ही भतीजे शिशिर बोस ने एक पठान के रूप में उन्हें बरारी कोक वक्र्स में लाया था.

यहां से शिशिर बोस ही उन्हें छोड़ने गोमो अपने भाई की कार से गए थे.

आज गोमो में उनके महाभिनिष्क्रम की याद दिलाता भव्य स्मारक है.

इसकी स्थापना में उनके भतीजे शिशिर बोस ने ही अहम भूमिका निभायी है.

धनबाद में सन 1930 में देश की पहली रजिस्टर्ड मजदूर यूनियन कोल माइनर्स टाटा कोलियरी मजदूर संगठन की स्थापना नेताजी ने की.

जब अंग्रेजों ने नेता जी को अपने आवास में नजरबन्द किया था, उस दौरान वह वहां से जियाउद्दीन नामक पठान का वेशधर कर वंडर कार से 14 जनवरी 1941 को यहां पहुंचे थे.

तब भतीजे ने उन्हें अपने घर में शरण दी थी. नेता जी दिनभर यही रहे, यहीं भारत में उनका आखिरी पड़ाव था.

नेता जी की याद में बीसीसीएल ने ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए यहां पार्क बनवाया.

लेकिन वह देखरेख के अभाव में वर्षों खंडहर बना रहा. अब इस पार्क की सुधि बीसीसीएल ने ली है.

गोपाल प्रसाद इस पार्क की निर्माण से लेकर आज तक देख रेख कर रहे है.

धनबाद से जुड़ी नेताजी की और भी स्मृतियां हैं. यहां का चप्पा-चप्पा उनकी यादों से जुड़ा है.

बावजूद इसके आज तक यहां की उनकी निशानियां सहेजने की सरकार ने कोशिश नहीं की.

 

क्यों नाम पड़ा नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन

17 जनवरी 1941, रात के वक्त अपने वंडर कार से नेताजी डॉ शिशिर बोस के साथ धनबाद के गोमो स्टेशन पहुंचे.

अंग्रेजी फौजों और जासूसों से नजर बचा कर गोमो हटियाटांड के आजाद हिन्द स्कूल के पीछे घने जंगल में छिपे रहे.

यहीं स्वतंत्रता सेनानी अलीजान और वकील चिरंजीव बाबू के साथ एक गुप्त बैठक की.

बैठक के बाद स्वतंत्रता सेनानियों के कहने पर गोमो के ही लोको बाजार में कबिलायी लोगों ने अपने घर में उन्हें छुपने का आश्रय दिया.

रात भर नेताजी वहीं रहे. 18 जनवरी 1941 की रात साथियों ने उन्हें इसी गोमो स्टेशन से कालका मेल से पठान कोट के लिए रवाना किया.

वहां से वे काबुल गए और उसके बाद जापान. इसके बाद अगस्त 1945 से वह  लापता हो गए.

अंतिम बार भारत में इसी गोमो रेल जंक्शन से रेल यात्रा करने की वजह से रेल मंत्रालय ने वर्ष 2009 में इस स्टेशन का नाम नेताजी सुभास चन्द्र बोस गोमोह कर दिया.

23 जनवरी 2009 को तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद ने नामाकरण समारोह में उनके स्मारक का यहां लोकार्पण किया.

Web Title : SEPCIAL REPORT ON NETAJI SUBHASH CHANDRA BOSE AND GOMOH