गाजे बाजे के साथ दी गई होपना को अंतिम विदाई, धमाकों से गूंजा गंगापुर

राजगंज : रविवार को होपना मांझी को दी गई अंतिम विदाई. निरसा विधायक अरुप चटर्जी ने गंगापुर पहुंचकर नम आंखों से दी भावभीनी श्रद्धांजलि.होपना के शव को स्थानीय आंगनबाड़ी के पीछे कब्रगाह में दफनाया गया. होपना का शव यात्रा घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में बसे गांव में मिशाल बन कर रह गया है.शहीदों की मौत की परंपरा के अनुसार ढोल, नगाड़ा, गाजा वाजा, माइक, चोंगा, अबीर, गुलाल, के साथ शव की यात्रा निकाली गई.

पूरे गांव का भ्रमण करते हुए कब्र तक उसे ले जाया गया. इस दौरण ध्वनि विस्तारक यंत्र से उसके नाम के अमर रहने व जब तक सूरज चांद रहेगा होपना मांझी तेरा नाम रहेगा के नारे गंगापुर में गूंजता रहा. शव यात्रा में पत्नी संजोती के साथ पूरा गाँव, परिजन व उसके साथी भी शामिल थे.साथियों ने शव दफ़नाने के बाद लाल सलाम दिया.विधायक अरुप चटर्जी पूरे शव यात्रा में ग्रामीणों के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे थे.ग्रामीणों का आवाज बुलंद व आंखें नम दिखी.

होपना की मौत से गंगापुर में अपूरणीय क्षति है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है. शव यात्रा के दौरान डकैया पहाड़ के तलहटी में बसे पूरे इलाके के महिला, पुरुष व बच्चे नम आंखों से भाव भीनी श्रद्धांजलि दिए.

धमाकों से गूंजा गंगापुर

होपना की श्रद्धांजलि में पटाखों के दर्जनों धमाके किये गए.इस दौरान पूरा गंगापुर धमाकों से गूंज उठा.

 बनेगा समाधि लगेगी प्रतिमा

होपना को दफनाए गए स्थान पर उसका समाधि बनाया जाएगा.इसके साथ ही विधायक अरूप चटर्जी ने घोषणा किया कि ग्रामीण स्थल का चुनाव करें होपना के प्रतिमा लगाने की पूरी खर्च वे वहन करेंगे.

बनेगा होपना चौक

गंगापुर मोड़ व माय थान चौक अब होपना मांझी चौक के नाम से जाना जाएगा.होपना की आदम कद प्रतिमा लगाने की पहल विधायक अरूप चटर्जी ने की.

ईलाज तबियत को देखकर होना चाहिए न की पॉकेट को देख कर : अरूप

होपना मांझी की अंतिम विदाई में शामिल होने पहुंचे निरसा विधायक ने बताया की होपना काफी दिनों से विमार चल रहा था.उसने कही से मदद न होता देख उनसे मदद की गुहार लगाई थी.उन्होंने मामले में संज्ञान लेते हुए जेल सुप्रिटेंडेंट से बात की तब जाकर जेल प्रशासन हरकत में आया और इन्हें इलाज के लिए रिम्स में भर्ती कराया.

उन्होंने कहा की जेल में वैसे लोगों का ईलाज किया जाता या जो विधायक हो, सांसद हो या हजारों करोड़ो का घोटाला कर ले जेल पहुँचे हो.उन्हें जेल पहुँचे मिनट भी नहीं होती है की उन्हें पहले रिम्स उसके बाद एम्स रेफर कर दिया जाता है.जहाँ से वे वीवीआईपी घुमने के लिए हिल स्टेशन चले जाते है.

इसलिए इस मामले में उचित जाँच की भी मांग उन्होंने की.विधायक ने कहा इस मामले को शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे को उठाने की बात कही ताकि दूसरा होपना मांझी इसके शिकार न हो.

मौत नहीं हत्या है : संजोती

होपना मांझी की पत्नी संजोती ने कहा कि उसके पति की जानबूझ कर हत्या की गई है.इसका जिम्मेवार उसने जेल प्रशासन, अस्पताल प्रबंधन व सरकार को ठहराया है.उसने आरोप लगाया कि मेरे पति की मौत को आकस्मिक नहीं कहा जा सकता. क्योंकि ढाई से तीन महीने से होपना मांझी की तबीयत खराब चल रही थी.इसे खराब करने वाला भी और कोई नहीं जेल प्रशासन ही है.जेल प्रशासन ने इतने दिनों तक उसकी कोई सुध नहीं ली.यहाँ तक की उसे उससे मिलने भी नहीं दिया जाता था.

कैदियों के दबाव से भेजा गया अस्पताल : होपना की पत्नी ने बताया कि जेल में बंद कैदियों के दबाव के कारण इतने दिन बाद उसे हजारीबाग जेल से सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया.जहां हालत नाजुक देखकर स्थानीय चिकित्सकों ने उसे रांची रिम्स रेफर कर दिया.अंततः शुक्रवार की रात उसकी मौत हो गई.संजोती ने कहा कि खासकर जेल चिकित्सक मौत का सीधा जिम्मेवार है.इसलिए वो जेल चिकित्सक सहित जेल प्रबंधन इत्यादि पर हत्या का मामला दर्ज करवाएगी.

खुद के साथ साथ सैकड़ो को किया साक्षर

प्रशासनिक रिकॉर्ड के अनुसार हार्डकोर नक्सली होपना मांझी अपने बाल्य अवस्था में घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र स्थित गंगापुर के पहाड़ की तलहटी से निकल कर जीटी रोड स्थित बोका थान स्कूल में आकार अपनी आठवी तक की पढाई पूरी किया था. उसके बाद उसने मैट्रिक की पढाई जेल में रहकर ही पूरी की थी.

साक्षर होने के बाद उसने हजारीबाग जेल में सैकड़ों कैदियों को साक्षर बनाया. जेल में शिक्षक पद विटी का कमान उसे दिया गया था.जिसे उसने भली भांति निभाया था उसे इस उत्कृष्ट कार्य के लिए जेल प्रबंधन ने उसे पुरस्कृत भी किया था.

जेल में लिखी किताब

जेल में मैट्रिक पास करने के बाद अपनी शिक्षा राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने की भरपूर कोशिश भी उसने की थी. नवसाक्षर इस कैदी ने "जेल हाजत" नाम से एक किताब भी लिखी थी. जो संथाली भाषा में था. इसमें लोगेंन सोरेन, दिवाकर के अलावे कई लोगों का फोटो भी उसने सम्मिलित किया था.होपना द्वारा अपनी कलम से लिखी गई किताब के रजिस्ट्रेशन नहीं होने के कारण वह प्रकाशन तक नहीं पहुंच पाया.

होपना के एक साथी ने नाम नहीं छापे जाने की शर्त ने बताया कि होपना दा अपनी जीवनी के साथ साथ जेल काल में कैदियों को किस-किस मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.जेल प्रशासन की घोषणा व वस्तु स्थिति में क्या अंतर है.इन सभी बातों का उल्लेख उस किताब में किया गया था.

नक्सली संगठन ने जेल से निकलने में नहीं की थी मदद

सूत्रों की माने तो इसका कारण बताया जा रहा है कि होपना ने संजोती से प्रेम विवाह किया था.वह इसके बाद मुख्य धारा से जुड़ना चाह रहा था. इस प्रसंग के बाद पार्टी ने संगठन से निकाल दिया था.उम्र कैद की सजा 14 वर्ष की होती है लेकिन होपना 21वां वर्ष अपने कारावास का काट रहा था.

फिर भी वह नहीं निकल पाया था इसके रिहाई को लेकर परिजन अपने पुस्तैनी खेत जमीन बेचकर हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अपील किए थे. लेकिन प्रशासन के जवाब में अंतिम पंक्ति में लिखे इस शब्द ने "कुछ भी हो सकता है" के कारण उसकी रिहाई नहीं हो सकी व सभी प्रयास असफल साबित हुआ.अंततः मृत शरीर ही जेल से बाहर निकल पाया.

होपना के साथ 11 साल तक रहे एक कैदी (फिलहाल बेल में) ने गंगापुर पहुंचकर होपना को भावभीनी श्रद्धांजलि दी.नाम न छापे जाने के शर्त पर उसने कहा कि बड़े भाई समान यह व्यक्ति कैदियों का मसीहा रहा था.धनबाद जेल में अपने कारावास के कार्यकाल के दौरान इसे कैंटीन का प्रभार मिला था.

यह वैसे कैदियों की मदद करता था व उसे खाना खिलाता था जिसके पास पैसे नहीं होते थे.यहां तक कि उसके साबुन और कपड़े की व्यवस्था भी यह कर देता था.जेल में कमाया गया पैसा यह निस्वार्थ भाव से कैदियों पर खर्च कर देता था.होपना के साथी ने कहा कि न्याय पर से विश्वास उठ गया है.

यह मामला कोई छोटा मोटा मामला नहीं यह मानवाधिकार का उलंघन है जो उम्र कैद की सजा पूरी करने के 7 साल बाद भी जेल से बाहर जीवित नहीं निकल पाया.

जेल में बनवाया था मंदिर


होपना धनबाद जेल में कारावास के दौरान तत्कालीन जेल सुपरिटेंडेंट हमीद अख्तर के कार्यकाल में अपने अथक प्रयासों से जेल कैंपस में ही आदिवासियों के मंदिर बूढ़ा बूढ़ी थान की स्थापना किया था.इसके लिए वर्तमान निरसा विधायक अरूप चटर्जी ने उसकी भरपूर मदद की थी.होपना का अपना एक सांस्कृतिक मंडली भी था.जिसमें आदिवासी परंपरा के 12 सेट पोशाक थे.जो जेल पदाधिकारियों के स्वागत एवं विधाई के कार्यक्रम कार्य में लाया जाता था.

कैदियों ने किया था भूख हड़ताल

हजारीबाग जेल में सजायाफ्ता कैदियों ने भूख हड़ताल कर प्रशासन पर दबाव बनाया था की प्रशासन होपना मांझी की बेहतर ईलाज की व्यवस्था करें. भूख हड़ताल कर दबाव बनाने वाले कैदियों में सुरेश साव, हनी मियां, मोहम्मद अय्यूब, विधान सिंह, बाबूराम, मुख्तार अंसारी, बालेश्वर महतो, किशोर हंसदा, कुंदन सिंह, विक्की शर्मा, संतोष दास सहित कई कैदी शामिल थे. इसी दबाव के बाद जेल प्रबंधन ने बेहतर इलाज के लिए जेल की चिकित्सा व्यवस्था से बाहर निकाला था.

होपना की मौत से कैदियों में शोक की लहर

होपना की मौत की खबर रविवार को सुबह हजारीबाग जेल को दी गई. जैसे ही यह ख़बर कैदियों तक पहुँची जेल में शोक की लहर फैल गई.कैदियों ने उच्च स्तरीय जांच की मांग की व मामले में लिखित शिकायत करने की प्रक्रिया में जुट गए हैं. कैदियों ने दोषी चिकित्सक पर कानूनी कार्रवाई की मांग की है. हजारीबाग जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी सूत्रों के अनुसार होपना पिछले 3 माह से बीमार चल रहा था.

 

 

 

 

 

Web Title : LAST FAREWELL TO HOPANA MANJHI WITH MUSICAL INSTRUMENTS