भारी भरकम अमला, लाखो खर्च फिर नतीजा सिफर,स्वच्छता सर्वेक्षण में ग्रेडिंग सुधरी पर हालत नहीं

बालाघाट. बालाघाट नगरपालिका के पास सफाई व्यवस्था के सौ, दो सौ नहीं बल्कि 400 से ऊपर कर्मचारी है, जिनकी प्रतिमाह का वेतन लाखो में जाता है, घर-घर से कचरा उठाने करोड़ो रूपये के वाहन है, फिर भी शहर में स्वच्छता को लेकर नतीजा सिफर है, स्वच्छता सर्वेक्षण में ग्रेडिंग तो सुधरी लेकिन हालत नहीं सुधर सके है. आज भी बालाघाट का शहर स्वच्छता के मामले में गांवो से पिछड़ा नजर आता है, जिसका प्रमुख कारण स्वच्छता सर्वेक्षण के दौरान लोगों को जागरूक करने आये लाखों रूपये की राशि का समुचित उपयोग न कर उस राशि से फाग खेल ली गई. सफाई को लेकर जागरूकता आम लोगो में पोस्टर, बैनर और स्वच्छता के मानकों के साथ फैलाई जानी थी, उसमें खानापूर्ति कर राशि को ऐसे खर्च कर दिया गया, जैसे गधे के सिर से सिंग. भले ही नगरपालिका सुखा और गीला कचरा, डोर-टू-डोर कचरा और कचरे की निष्पादन को बेहतर बताकर मिले 35 वें पायदान पर प्रफुल्लित हो रहा हो, लेकिन यह भी उतना ही कटु सत्य है कि अमले और लाखो के खर्च से वह शहर के स्वच्छता की तकदीर और तस्वीर बदल सकता था, लेकिन नपा कर्मियों की इच्छाशक्ति के आभाव और कार्यो के प्रति लापरवाही शहर को स्वच्छ होने नहीं दे रही है. सालों से शहर को सुंदर, स्वच्छ और ग्रीन शहर बनाने के नेताओं के वादों को सुनकर पक चुकी जनता अब चाहती है कि स्वच्छता को लेकर ठोस काम हो, ना कि स्वच्छता के नाम केवल औपचारिकता निभाई जायें. यह तो जब और चिंतनीय हो जाता है, जब कलेक्टर नगरपालिका के प्रशास हैं.

स्वच्छता सर्वेक्षण में जहां बालाघाट की वर्ष 2020 में 75 वीं रैकिंग थी, वही वर्ष 2021 में बालाघाट को 35 वीं रैकिंग मिली है. रैकिंग जरूर प्रसन्न करने वाली है लेकिन हालत वैसे नहीं है, जैसे सही मायनो में स्वच्छता को लेकर होने चाहिये थे. गौरतलब हो कि स्वच्छता के नाम पर नगरपालिका के पास सड़क सफाई, ट्रेक्टर-ट्राली, वाहन चालक, नाली सफाई और ट्रेचिंग ग्राउंड में सौ, दो सौ नहीं बल्कि नियमित, मस्टररोल और विनियमित कर्मचारियों की 400 से ज्यादा फौज है. यही नहीं बल्कि नगरीय क्षेत्र के सभी 33 वार्डो में 33 सुपरवाईजर, उन पर पर्यवेक्षक, नोडल अधिकारी, स्वास्थ्य प्रभारी और स्वास्थ्य अधिकारी की पूरी एक बड़ी टीम है. बावजूद इसके बेपरवाही का आलम यह है कि शहर के बाजारों से लेकर बस स्टैंड, प्रमुख सड़को और वार्डो में कचरा ऐसा नजर आता है, जैसे सफाई के लिए अब भगवान ही मालिक है. जिससे स्वच्छता के नाम पर खर्च होने वाली राशि की उपयोगिता साबित होते नहीं दिखाई दे रही है. नागरिकों का कहना है कि जब नगरपालिका में प्रशासक कलेक्टर है, तब शहर की स्वच्छता को लेकर यह आलम है तो जवाबदेरी तय होनी चाहिये.  

जिले में स्वच्छता को लेकर आलम यह है कि घर-घर कचरा उठाने के लिए शहरी क्षेत्र में नपा के पास भारी वाहनों की फौज होने के बावजूद हाथ ठेले वार्डो से कचरा लिया जा रहा है. जिसके टायर ही गवाही देते है कि उस हाथठेले की हालत कैसी है, स्वच्छता की रैकिंग जारी होने के बावजूद शहर में अस्वच्छता कहीं भी नजर आ जाती है.


Web Title : HEAVY AMLA, LAKHS SPENT AGAIN RESULT CIPHER, GRADING IMPROVED IN SANITATION SURVEY BUT NOT IN A SITUATION