सोनेवानी को वन्य अभ्यारण बनाने फिर उठी आवाज, विधायक श्रीमती मुंजारे ने मंत्री से की वन्य अभ्यारण को लेकर मुलाकात

बालाघाट. जिले के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और सिवनी का पेंच आपस में एक कॉरीडोर के रूप में जुड़ा है. यह एक बड़ा वनक्षेत्र है. चूंकि जिले के जंगल में कई ऐसे क्षेत्र है जहां बहुतायत में वन्यप्राणी रहते है. ऐसे ही जिल का एक क्षेत्र है, जहां अभ्यारण बनाए जाने के निर्धारित संख्या से ज्यादा बाघ मौजूद है और वह है, बालाघाट विधानसभा में लालबर्रा क्षेत्र का सोनेवानी. जिसे लंबे समय से वन अभ्यारण बनाए जाने की मांग उठती रही है और सोनेवानी अभ्यारण को लेकर वन्यजीव प्रेमी यह मांग हमेशा से उठाते रहे है. तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की सरकार में इस बाबत विधायकों और सांसद ने प्रस्ताव भी सरकार को भेजा था.  

जिसको लेकर भी बालाघाट जिले की राजनीति बीते समय में काफी गर्म रही. लालबर्रा के सोनेवानी वन अभ्यारण को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के कार्यकाल में दो मंत्रियो में इसको लेकर सार्वजनिक मंचो में काफी विरोध भी दिखाई दिया. तत्कालीन पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने तो इसे स्वाभिमान का मुद्दा बना लिया था और उन्होंने सरकार तक अपनी पहुंच का उपयोग कर इस प्रस्ताव को खारिज भी करा दिया. यह और बात है कि इसको लेकर उन्होंने, उन्हें भी मनाया, जिन्हें वह पसंद नहीं करते थे.  

जिसको लेकर यह बात भी उठती रही है कि माईंन लॉबी के दबाव में यह निर्णय लिया गया था. जबकि एक अभ्यारण के लिए सोनेवानी, अपनी पूरी अर्हता पूर्ण करता है, यही नहीं यह कान्हा से पेंच को जोड़ने वाला सीधा कॉरीडोर भी है लेकिन सोनेवानी अभ्यारण को लेकर, तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की सरकार में प्रस्ताव को स्थगित कर दिए जाने से यह ठंडे बस्ते में चला गया था लेकिन एक बार फिर सोनेवानी को वन अभ्यारण बनाए जाने की आवाज उठी है और इस बार क्षेत्रीय विधायक श्रीमती अनुभा मुंजारे ने इस मामले को लेकर भोपाल मंे वन पर्यावरण एवं अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री नागरसिंह चौहान से सौजन्य मुलाकात कर लालबर्रा विकासखंड के  अंतर्गत सोनवानी, चिखलाबड्डी, नवेगांव वनग्रामों को वन अभ्यारण्य और संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने के लिए विस्तार पूर्व चर्चा कर पत्र प्रेषित किया है.

गौरतलब हो कि कालांतर में सोनेवानी अभ्यारण्य को लेकर खिंची राजनीतिक तलवारों के बीच तत्कालीन पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन, सोनेवानी को वन अभ्यारण बनाए जाने के खिलाफ थे. जिनके पीछे उनका तर्क था कि सोनेवानी के वन अभ्यारण बन जाने से गांवों के विस्थापन के साथ ही सिंचित क्षेत्र बर्बाद हो जाएगा. जिसको लेकर वे लगातार इसका विरोध कर रहे थे. श्री बिसेन कहते थे कि सोनेवानी अभ्यारण बनता है तो पूरा बालाघाट जन आंदोलन करेगा जिसका नेतृत्व भी वे स्वयं करेंगे.

उनका मानना है कि बालाघाट विधानसभा के लालबर्रा के सोनेवानी जंगल का क्षेत्र इतना बढ़ा भी नहीं है कि उसे अभ्यारण बनाया जा सकें. उन्होंने बताया कि मुख्य सेंटर पाइंट नवेगांव से लालबर्रा की दूरी महज आठ किलोमीटर है. वहीं सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार कोर जोन में एक किलोमीटर दूरी पर पूर्ण प्रतिबंध के साथ ही दस किलोमीटर का क्षेत्र प्रतिबंधित होता है. ऐसे में सोनेवानी को अभ्यारण बना दिया गया तो वनग्राम चिखलाबड्डी, सिलेझरी, सोनेवानी, नवेगांव समेत अन्य के साथ ही अन्य क्षेत्र रमरमा, चिलगोंदी, बघोली, कानासुरी, नैतरा, नगझर, नांदगांव, पिपरिया, खुड़सोड़ी, साल्हे, खैरगोंदी, बघोली के साथ ही सिवनी क्षेत्र के भी बहुत सारे गांवों को विस्थापित करना पड़ेगा. जिसके बाद वहां न तो सिंचित भूमि रहेगी और न ही मानव निवास कर सकेंगा जो कि न तो तर्क संगत और न ही व्यवहारिक है. जिसके लिए उन्हांेने रीवा में सफेद टाइगर को बचाने के लिए अभ्यारण बनाया जाने का हवाला देते हुए कहा था कि ये अभ्यारण महज दो किलोमीटर का है. जिसमें फेंसिग की गई है. जिससे वन्यप्राणी एक निश्चित सीमा में ही विचरण करते है. यदि ऐसा ही भारत सरकार फेंसिग कर बाड़ा बनाकर सोनेवानी को अभ्यारण क्षेत्र घोषित करती है तो उन्हें और गांवों के ग्रामीणों को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन खुला अभ्यारण बनाती है तो उन्हें परेशानी है क्योंकि इन क्षेत्रों में लगातार बढ़ रहे हिंसक वन्यप्राणी ग्रामीणों को नुकसान भी पहुंचा रहे हैं.


Web Title : VOICE RAISED AGAIN TO MAKE SONEWANI A FOREST SANCTUARY, MLA SMT. MUNJARE MEETS MINISTER REGARDING FOREST SANCTUARY