शिव सूत्र एवम् शुभमंगल के चिन्ह - गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

शिव सूत्र - सूत्र का अर्थ है,धागा और शिव का अर्थ है, शुभमंगलकारी. प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ शुभ मंगलकारी होता है. आसपास हो रही बहुत सारी नकारात्मक बातों के बीच एक सकारात्मक बात को लीजिए और उसे पकड़ लीजिए. यदि कोई व्यक्ति गहरे कुंए में गिर जाता है,तब आप क्या करते हैं?आप एक रस्सी नीचे फेंकते हैं. वे रस्सी को पकड़ते हैं और ऊपर आ जाते हैं. आप उन्हें ऊपर खींच लेते हैं.

शिव सूत्र का यही अर्थ है. ये एक लाइन के सरल सूत्र हैं,जो आपको इस बात के लिए सजग करते हैं कि आपका वास्तविक स्वभाव स्वात्मानंद प्रकाश वपुशे है. आपका वास्तविक स्वभाव परमानंद है,आपका वास्तविक स्वभाव आनंद है. आपका वास्तविक स्वभाव प्रकाश है.

इसीलिए,कहा गया है, नम: श्री शंभवे स्वात्मानंद प्रकाश वपुशे .  

मैं उस संपत्ति को प्रणाम करता हूं,जो जीवन में शांति लाती है और शरीर को आनंद से भर देती है.

शुभ मंगल की शुरुआत कैसे होती है?यह तब होती है,जब मन भीतर की ओर मुड़ जाता है. जब मन बाहरी संसार में भटकता रहता है,तब यह समस्याओं और भ्रांति में फंस जाता है. क्या आप जानते हैं कि दुख क्या है?दुख तब होता है,जब मन बाहरी संसार में फंस जाता है और स्वयं को भूल जाता है. प्रसन्नता को स्वयं को याद रखने के रूप में व्यक्त किया जा सकता है.

मान लीजिए कि आपका कोई निकट का रिश्तेदार या मित्र एक लंबे समय के बाद आपसे मिलने के लिए आता है. आप मिठाईयां बनाते हैं,उनका स्वागत करने के लिए आप बहुत अच्छी व्यवस्था करते हैं और रेलवे स्टेशन पर उन्हें लेने के लिए जाते हैं. आप बेसब्री से उनकी प्रतीक्षा कर रहे होते हैं,आप समय देखते रहते हैं कि ट्रेन सही समय पर आ रही है या नहीं और क्या वे आ गए हैं. जब अंततः आप उनसे मिलते हैं,तो आपको कैसा महसूस होता है?रोमांचित!!मन तुरंत ही खिल जाता है. जहां कोई व्यग्रता एवम् प्रत्याशा नहीं होती है,वहां प्रेम कम होता है.

जिसे आप प्रेम करते हैं,मन उसकी और स्वाभाविक रूप से प्रवाहित होता है. जब आप एक प्रिय मित्र के साथ होते हैं,तब आपका मन आपमें ठहर जाता है और इधर - उधर नहीं भटकता है. इस बात पर ध्यान दीजिए कि जब आप आनंदित होते हैं,तब आप स्वयं के साथ एक हो जाते हैं. आपका स्वभाव आनंद है और यही कारण है कि आप आनंद का अनुभव करते हैं. जब आप मन शब्द, जिसका अर्थ मन है,को विपरीत दिशा में पढ़ते हैं,तो यह नम बन जाता है. इसका क्या अर्थ है?जब मन भीतर की ओर मुड़ जाता है,तो यह नम: है और जब यह बाहरी संसार में होता है,तो यह मन होता है. जब आप एक मंदिर में प्रवेश करते हैं और आप नम : कहते हैं,तो आपका मन स्वतः ही भीतर की ओर मुड़ जाता है.

बाहरी संसार में मन को क्या आकर्षित करता है?वह है, समृद्धि, सम्पत्ति,सफलता और सौंदर्य. कोई भी सुंदर दृश्य आपके मन को अपनी ओर खींचता है. समस्त संसार केवल एक ही के चारों ओर घूमता है और वह है श्री ,जिसका अर्थ है,समृद्धि. आप ज्ञान के लिए खिन्न हो जाते हैं,प्रसन्नता के लिए खिन्न हो जाते हैं, सौंदर्य, संपत्ति,सफलता और उन्नति के लिए खिन्न हो जाते हैं.

आप किस को पाने के लिए तड़पते हैं,वह केवल एक ही इच्छा है और वह है श्री . लोग इसे पाने के लिए जितनी गहनता से तड़पते हैं,इसे प्राप्त करना उतना ही कठिन हो जाता है और वे बहुत दुखी हो जाते हैं. इसीलिए,बुद्ध ने संक्षेप में कहा, इच्छा दुख की जड़ है. कहीं भी जाइए और देखिए कि लोग किस बारे में बात कर रहे हैं और आप देखेंगे कि वे श्री के बारे में ही बात कर रहे हैं.

समस्त संसार श्री के चारों ओर घूम रहा है,लेकिन हम इसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं?यदि हम इसे प्राप्त कर भी लें,तो कौन ये कहेगा कि यह संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त है?यदि कोई व्यक्ति श्री को पाना चाहता है,तो मन को भीतर की ओर मोड़ना आवश्यक है. जब हम नमः की स्थिति में होते हैं,जब हम आत्म विश्लेषक होते हैं,तब हमें श्री की प्राप्ति होती है और सच्ची संपत्ति का जन्म होता है. सच्ची संपत्ति स्वयं के साथ रहना है. जब हमारा मन भीतर की ओर मुड़ जाता है,तब हमें सच्ची प्रसन्नता और सुख की प्राप्ति होती है.

यद्यपि अमीर से भी अमीर लोग केवल बाहरी तौर पर ही मुस्कुराते हैं,जरा उनके मन में झांक कर देखिए,आपको वहां कोई उत्साह या संतोष नहीं मिलेगा. बिना संतोष के ऐसे जीवन और ऐसी संपत्ति का क्या उपयोग है?यदि चिंताओं से भरे होने के अलावा और कुछ नहीं है और एक व्यक्ति चिंता करते - करते ही मर जाता है, तो यह श्री किस प्रकार की है?

शंभवे - संपत्ति और समृद्धि से शांति आनी चाहिए.

प्रायः लोग संपत्ति को तो पा लेते हैं,लेकिन साथ में समस्याएं भी आने लगती हैं. माता - पिता,बच्चों और पति - पत्नी के बीच झगड़े शुरू हो जाते हैं. यदि आप विचाराधीन कोर्ट के मामलों को देखें,तब आप पाएंगे कि अधिकतर मामले पैसे को लेकर हुए झगड़े के कारण उत्पन्न हुए हैं!  यदि आपको बहुत सारी संपत्ति मिल भी जाए,तो उसका कोई अर्थ नहीं है. हांलाकि हमें पैसों के साथ संपत्ति भी चाहिए,लेकिन इसके साथ हमें बहुत सारी बीमारियां, जैसे - पेट दर्द,अल्सर,डायबिटीज,हृदय घात आदि,भी हो जाती हैं.

स्वात्मानंद - परमानंद से भर जाना,उत्साहपूर्ण 

मन :  स्थिति का होना. कुछ लोग ऐसे होते हैं,जो अच्छे कार्य करते हैं,लेकिन उनमें शांति और आनंद नहीं होता है. लेकिन,आप बच्चों की ओर देखिए. वे गंभीर नहीं होते हैं. वे प्रसन्न होते हैं. उन्हें किस प्रकार की प्रसन्नता है? स्वात्मानंद प्रकाश वपुशे - उनमें बहुत अधिक प्रसन्नता बहती है. उनमें से आनंदपूर्ण तरंगें निकलती हैं.

एक बच्चे का मन भोला और शांत होता है,जिसमें सजगता होती है. यही जीवन का लक्ष्य है. जीवन का एक लक्षण है कि जहां से वह आरंभ हुआ था,वहीं उसका अंत होना चाहिए और जीवन एक चक्र है,जो प्रसन्नता से आरंभ होता है.

आनंदेन जातानि जीवन्ति - ऐसा उपनिषदों में कहा गया है. आनंद में ही जीवन है और आनंद में ही पूर्णता को ढूंढो. आत्मा में प्रसन्नता भरी होनी चाहिए - यही शिव सूत्रों का लक्ष्य है: स्वात्मानंद प्रकाश वपुशे .