धर्मसंकट की स्थिति में भारत, मालदीव के विपक्षी खेमे ने लगाईं मदद की गुहार

मालदीव में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुए वहां के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने आपातकाल लागू कर दिया है. वह तानाशाही के रास्ते पर बढ़ रहे हैं. इस सियासी संकट के बीच राष्ट्रपति यामीन की तानाशाही के खिलाफ मालदीव के विपक्षी खेमों और सुप्रीम कोर्ट ने भारत से मदद की गुहार लगाई है. पहले भी ऐसे संकट में मालदीव की मदद भारत कर चुका है, लेकिन ऐसा लगता है इस बार भारत के लिए यह आसान नहीं है. भारत के सामने धर्मसंकट है

मालदीव के घटनाक्रम की भारत सहित दुनिया के कई देशों ने आलोचना की है. वहां के विपक्षी दलों का साफ कहना है कि राष्ट्रपति यामीन चीन के दबाव में काम कर रहे हैं और ऐसे कठिन मौके पर भारत को सैन्य हस्तक्षेप करना चाहिए.

एक बड़े भाई जैसे देश होने के नाते भारत हमेशा मालदीव की मदद करता रहा है. भारत का दशकों से मालदीव से बहुत करीबी रिश्ता रहा है, इसलिए किसी भी संकट के दौर में मालदीव के लोग भारत को याद करते हैं. मालदीव की लोकतांत्रिक ताकतों की गुहार को भारत अनसुना भी नहीं कर सकता. लेकिन इस बार भारत के सामने धर्मसंकट है. इस बार मुश्किल यह है कि मालदीव में चीनी हस्तक्षेप काफी बढ़ चुका है. कहा जा रहा है कि वहां के मौजूदा राष्ट्रपति चीन के इशारे पर काम कर रहे हैं.

ऐसे में भारत के सैन्य हस्तक्षेप के बाद अगर कहीं चीन ने कार्रवाई की तो हिंद महासागर में महाशक्तियों का टकराव शुरू हो सकता है. भारत यह नहीं चाहेगा कि दूसरे देश को बचाने की कोशि‍श में अपने हितों को ज्यादा नुकसान न हो जाए. ऐसे में भारत के पास विकल्प बहुत कम बचे हैं. मोदी सरकार इस संवेदनशील मसले पर जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहती. इसके पहले 1980 के दशक में राजीव गांधी सरकार द्वारा श्रीलंका में किए गए हस्तक्षेप का भारत को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. खुद इसी वजह से राजीव गांधी की जान ले गई थी.

1988 में मालदीव में जब तख्ता पलट की कोशि‍श की गई थी तो भारत सरकार का हस्तक्षेप सफल रहा था. लेकिन यह खतरा बड़ा नहीं था. एक छोटे से समूह द्वारा तख्ता पलट की कोशिश की गई थी और तत्कालीन राष्ट्रपति गयूम राजधानी माले में एक इमारत में सुरक्ष‍ित छिपे थे.

इस बार मामला तख्तापलट का नहीं, बल्कि वहां की आंतरिक राजनीति की वजह से पैदा हुई समस्या है. किसी पड़ोसी देश की आंतरिक राजनीति में दखल देना जोखिम भरा साबित हो सकता है. विदेशी हस्तक्षेप के बाद कई बार जनता में माहौल उसके खिलाफ बन जाता है. इसलिए भारत इंतजार कर रहा है और अमेरिका, ब्रिटेन से इस बारे में परामर्श भी कर रहा है. भारत इसीलिए इस बार मालदीव में सेना भेजना नहीं चाहता और राजनयिक संपर्कों के द्वारा यामीन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है.

यामीन चीन के बेहद करीबी हैं. इसके पहले राष्ट्रपति रहे नशीद भारत के करीबी थे, लेकिन 2012 में उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया गया. साल 2015 में नशीद को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर आतंकवाद जैसे मामले दर्ज किए गए. इससे नाराज पीएम मोदी ने माले की अपनी यात्रा रद्द कर दी थी. इससे यामीन और भड़क गए.

मालदीव हिंद महासागर में भारत के बिल्कुल करीब है. इसलिए यह सामरिक लिहाज से भारत और चीन दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण भी है. यामीन के सत्ता में आने के बाद से ही इस द्वीप देश पर चीन का दखल बढ़ता जा रहा है. एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट को अपग्रेड करने का भारतीय कंपनी जीएमआर को मिला आकर्षक सौदा यामीन ने रद्द कर एक चीनी कंपनी को दे दिया. पिछले साल दिसंबर में यामीन ने चीन के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता किया है. इसके लिए बहुमत सांसदों की मंजूरी भी नहीं ली गई और संविधान के खिलाफ जाकर यह समझौता हुआ.

अब चूंकि राष्ट्रपति यामीन चीन के करीबी हैं, इसलिए काफी कुछ इस पर भी निर्भर करता है कि वह अपना कार्ड किस तरह से खेलते हैं. इस संकट का सबसे अच्छा समाधान तो यह है कि घोषणा के मुताबिक वहां नवंबर में चुनाव हो और सभी राजनीतिज्ञों को चुनाव लड़ने दिया जाए. भारत और पश्चिमी देश यही चाहेंगे कि नशीद फिर से सत्ता में आएं. मालदीव एक सुन्नी बहुल परंपरावादी देश है और मौजूदा राष्ट्रपति कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रहे हैं. मालदीव से बड़ी संख्या में युवा आईएसआईएस में शामिल हुए हैं.

भारत का हित इसी में है कि नशीद सत्ता में आएं, लेकिन फिलहाल तो भारत के पास इंतजार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं दिख रहा.




Web Title : IN THE EVENT OF DHARMASANKAT, INDIA, THE MALDIVESS OPPOSITION CAMP LAGAIN HELPED THE CAVITY