रूस ने अफगानिस्तान को ग्राहक बनाया, पर तालिबान को मान्यता देने को तैयार नहीं
तालिबान सरकार ईरान, कजाखस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ भी व्यापार समझौता करने के लिए बातचीत कर रही है. इस वर्ष जुलाई में तुर्कमेनिस्तान के साथ उसका एक करार हुआ भी, जिसके तहत तुर्कमेनिस्तान उसे रियायती दर पर कच्चा तेल देने को सहमत हुआ है
दुनिया में बन रहीं भू-राजनीतिक स्थितियों के बीच अफगानिस्तान में रूस की दिलचस्पी तेजी से बढ़ी है. इन दोनों देशों पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगा रखे हैं. इस कारण भी दोनों देश आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए प्रेरित हुए हैं. इस घटनाक्रम ने सबका ध्यान बीते सितंबर में खींचा, तब रूस और अफगानिस्तान के बीच एक व्यापारिक करार हुआ.
अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद यह उसका पहला अंतरराष्ट्रीय करार है. इसके तहत रूस अफगानिस्तान को प्राकृतिक गैस, कच्चा तेल और गेहूं देने पर राजी हुआ है. विश्लेषकों का कहना है कि भले इस समझौते का आर्थिक महत्त्व अधिक ना हो, लेकिन यह रूस और अफगानिस्तान दोनों के लिए एक महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक उपलब्धि है.
सिंगापुर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज में रिसर्च एनालिस्ट क्लाउडिया चिया यी ने एक विश्लेषण में लिखा है- ‘तालिबान अपने व्यापार संबंधों को बढ़ाने की कोशिश में है. वह क्षेत्रीय पड़ोसी देशों के साथ ऐसे संबंध बनाना चाहता है. अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और अमेरिका के उसके स्वर्ण भंडार को जब्त कर लेने के कारण अफगानिस्तान का कारोबार प्रभावित हुआ है. अगस्त 2021 के बाद से अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था 20 से 30 फीसदी तक सिकुड़ चुकी है. ’ अगस्त 2021 में ही तालिबान ने काबुल पर कब्जा जमा लिया था.
वेबसाइट एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान गहरे मानवीय संकट में फंसा हुआ है. इसके अलावा विभिन्न आतंकवादी गुट वहां लगातार हिंसा कर रहे हैं. इसका भी लोगों के जीवन स्तर पर असर पड़ा है. इन्हीं हालात के बीच रूस से हुआ करार अफगानिस्तान के लोगों के लिए राहत बन कर आया है.
तालिबान सरकार ईरान, कजाखस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ भी व्यापार समझौता करने के लिए बातचीत कर रही है. इस वर्ष जुलाई में तुर्कमेनिस्तान के साथ उसका एक करार हुआ भी, जिसके तहत तुर्कमेनिस्तान उसे रियायती दर पर कच्चा तेल देने को सहमत हुआ है. ईरान से भी कच्चे तेल की खरीद का एक करार तालिबान ने किया है. पर्यवेक्षकों ने कहा है कि तालिबान सरकार सर्दियां शुरू होने के पहले ऊर्जा सप्लाई को सुनिश्चित करने की कोशिश में जुटी रही.
अफगानिस्तान चैंबर ऑफ कॉमर्स के उपाध्यक्ष खान जान अलोकोजाय ने वेबसाइट एशिया टाइम्स को बताया कि तमाम घोषणाएं करने के बावजूद चीन ने अब तक अफगानिस्तान में एक पैसे का भी निवेश नहीं किया है. ऐसे में अफगानिस्तान के लिए रूस का सहारा लेना ही एकमात्र विकल्प बचा है. उन्होंने ध्यान दिलाया कि इसीलिए यूक्रेन विवाद में अफगानिस्तान ने तटस्थ रुख अपनाया है.
विश्लेषकों के मुताबिक उधर रूस भी अपनी ऊर्जा के लिए नए ग्राहकों की तलाश में रहा है. भारत, तुर्किये, चीन और श्रीलंका ने यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस से तेल और गैस की खरीद में काफी इजाफा किया है. इसी सिलसिले में रूस के लिए एक ग्राहक के रूप में अफगानिस्तान भी अहम हो गया है.
लेकिन क्लाउडिया चिया यी ने ध्यान दिलाया है कि व्यापार समझौता करने के बावजूद रूस तालिबान सरकार को मान्यता देने की जल्दी में नहीं दिखता. इसकी बड़ी वजह अफगानिस्तान में इस्लामिक आतंकवादियों की मौजूदगी है, जिसो लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन हमेशा चिंतित रहे हैं.