कम मतदान ने बढ़ाई भाजपा और कांग्रेस की चिंता, जीत और हार का अंतर हो सकता है कम, विधानसभा के किसानों और महिलाओं के वादे पूरा नहीं होने का दिखा असर

बालाघाट. लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में 19 अप्रैल को मतदान कराया गया. बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र में 73. 18 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया. जो संसदीय क्षेत्र में बीते 2019 को हुए लगभग 79 प्रतिशत मतदान से काफी कम है. प्रशासन की स्वीप गतिविधियां भी मतदान प्रतिशत को नहीं बढ़ा सकी. लोकसभा चुनाव में कम मतदान ने भाजपा और कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है. वही राजनीतिक जानकार मानते है कि कम मतदान से प्रत्याशियो के बीच जीत और हार का अंतर कम हो सकता है.  

जिले में मतदान कम होने के एक नहीं बल्कि कई कारण बताए जा रहे है. जिसमें बीते 2019 चुनाव की तरह राजनीतिक दलों के प्रचार-प्रसार में कमी को भी मतदान कम होने के रूप में देखा जा रहा है. इसके अलावा 19 अप्रैल को मौसम के तीखे तेवर ने भी मतदान मंे काफी असर डाला. शुक्रवार को अपेक्षाकृत तापमान ज्यादा रहा. जिसके कारण लोग सुबह और धूप कम होने के बाद ही घरों से निकले. वहीं मतदाताओं में मतदान को लेकर उत्साह नहीं होने को भी एक प्रमुख कारण बताय जा रहा है.  

गौरतलब हो कि 18 लाख से ज्यादा मतदाता वाले बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र में 13 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे. जिनके भाग्य को 73. 18 प्रतिशत मतदाताओं ने ईव्हीएम में कैद कर दिया है. जिसका खुलासा आगामी 04 जून को ही होगा. हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. भरी दोपहरी में भी घर का काम पूरा करने के बाद महिलाएं, मतदान केन्द्रो तक पहुंची और मतदान किया. इसके अलावा युवा और ग्रामीण मतदाताओं ने मतदान केन्द्र पहुंचकर अपने मताधिकार का उपयोग कर अपने पसंदीदा प्रत्याशी के चुनाव चिन्ह पर ईव्हीएम का बटन दबाया.  

जिले में राजनीति को समीप से देख रहे राजनीतिक विश्लेषक रहीम खान की मानें तो इस चुनाव में मतदान प्रतिशत का कम होना, मतदाताओं के चुनाव को लेकर उत्साह में कमी एक प्रमुख कारण है. इसके अलावा जिस तरह से बीते चुनावो में प्रत्याशी, प्रचार-प्रसार करते थे, वह इस चुनाव में कम नजर आया है. वहीं गर्मी का असर भी मतदान प्रतिशत पर पड़ा है. उन्होंने कहा कि संसदीय क्षेत्र में मतदान प्रतिशत का काम होना, भाजपा और कांग्रेस के लिए चिंता बढ़ाने वाला है. खासकर भाजपा के लिए यह एक बड़ी चिंता है. चूंकि कांग्रेस कई दशकों से यहां हारते आ रही है, जिसके कारण कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है. उन्होंने कहा कि मतदान प्रतिशत कम होने से प्रत्याशियों की जीत और हार का भी अंतर कम होगा.  

उन्होंने कहा कि संसदीय क्षेत्र में विश्व के बड़े नेता कहे जाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आगमन के बावजूद तीन-तीन बार मुख्यमंत्री का आकर जिले में प्रचार करना, कहीं ना कहीं भाजपा प्रत्याशी के कमजोर होने का संदेश भी जिले में गया है. वहीं इस बार संगठनात्मक कहे या फिर राजनीतिक प्रतिनिधियों के प्रचार में भी कमी देखी गई. भाजपा में जिस तरह से 2014, 2019 में पार्टी और नेता फ्रंट फुट पर आकर चुनाव मैदान में उतरे थे, वह इस बार दिखाई नहीं दिया. जिसके पीछे कई वजह हो सकती है, लेकिन देश की सबसे बड़ी पंचायत के चुनाव में जिले में कांग्रेस ने भी भाजपा को कड़ी टक्कर दी है. जिससे अब यह केवल कयास ही लगाए जा सकते है कि संसदीय क्षेत्र में यह प्रत्याशी जीत दर्ज कर रहा है. जिसको लेकर पुख्ता तौर से दावा कोई नहीं कर रहा है.  

राजनीतिक विश्लेषक रहीम खान की मानें तो इस चुनाव में विधानसभा में भाजपा के किसानों से समर्थन मूल्य में धान की 31 सौ और गंेहू की 27 सौ रूपए में समर्थन मूल्य में खरीदी के साथ ही लाड़ली बहनो को 03 हजार, आवास और 450 रूपए मंे गैस सिलेंडर का वादा पूरा नहीं होने का असर भी पड़ेगा. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में निर्णायक रहने वाले जाति समुदाय के वोटों पर भाजपा वह संेधमारी नहीं कर सकी है, जिसकी उसे उम्मीद थी. जिसके चलते यह चुनाव, भाजपा के चिंतनीय हो गया है. जीत और हार का अंतर कितना होगा, यह तो 04 जून को होने वाली मतगणना से ही पता चलेगा.


Web Title : LOW VOTER TURNOUT INCREASES BJP CONGRESS WORRIES, MARGIN OF VICTORY AND DEFEAT MAY BE LESS, SHOW EFFECT OF NOT FULFILLING PROMISES OF FARMERS AND WOMEN IN ASSEMBLY