जिले में बिखरी पड़ी पुरातत्व धरोहरें, 300 प्रतिमाओं को संरक्षित करने भोपाल में अटकी फाईल, तत्कालीन कलेक्टर के सामने पुरातत्व संग्राहलय बालाघाट ने पेश किया था 10 करोड़ के भवन का प्रस्ताव

बालाघाट. कभी सीपी बरार में शामिल बालाघाट जिला, लंबे समय तक महाराष्ट्र में शामिल रहा. उस वक्त महाराष्ट्र का भंडारा इसका जिला और नागपुर राजधानी हुआ करती थी. खनिज और वन संपदा से परिपूर्ण यह जिला, पुरातात्विक धरोहरों से भी साधन संपन्न है. 1867 में मुख्य आयुक्त रहे, सर रिचर्ड टेंपल ने इसे अस्थायी जिला घोषित किया था. 10 साल बाद बालाघाट स्थायी जिला बना, तब बालाघाट बुढ़ा-बुढ़ी के नाम से जाना जाता था, लेकिन 1895 में विभिन्न घाटों के कारण, इसका नाम बालाघाट पड़ा. हालांकि इतिहास में तिथि का उल्लेख नहीं है लेकिन पुरातत्व शोध संस्थान प्रतिवर्ष 21 दिसंबर को बालाघाट नामकरण की वर्षगांठ बनाता है.

पुरातत्व विशेषज्ञ वीरेन्द्रसिंह गहरवार बताते है कि बालाघाट पूरा जंगली क्षेत्र था. जहां समय पर अंग्रेजों के साथ ही कल्चुरी वंश, आदिवासी गोंड शासनकाल, मराठा और भोंसले शासन का उल्लेख मिलता है. यह उल्लेख, उस काल के पुरातत्व धरोहरों के जिले में खुदाई और संरक्षित की गई धरोहरों से मिलता है.  पुरातत्व विशेषज्ञ वीरेन्द्रसिंह गहरवार बताते है कि जिले में 10 वीं से 19 शताब्दी तक की पुरातत्व धरोहरें, जिले मंे मिली है. जो प्रमाण है कि इन शताब्दियों में विभिन्न वंशो के शासकों का शासन रहा है. यही नहीं बल्कि जिले में ऐसी 06 पुरातत्व स्थल है, जो वर्तमान में केन्द्र शासन के अधीन है और दो पुरातत्व स्थल, राज्य सरकार के अधीन है, फिर भी 18 ऐसे स्थल है, जो अब तक असंरक्षित है, जहां लगभग 300 पुरातत्व धरोहरें है, जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है.

वीरेन्द्रसिंह गहरवार बताते है कि प्रमुख सचिव, मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग भोपाल, के पास ऐसे 18 असंरक्षित स्थलों को संरक्षित स्थल घोषित करने के लिए जिले से फाईल भोपाल चली गई है, जो वर्तमान में संस्कृति विभाग के पास है.  वे बताते है कि तत्कालीन कलेक्टर डॉ. गिरीश कुमार मिश्रा के साथ इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान संग्राहलय की बैठक में इस पर निर्णय हो चुका है कि जिले के लांजी, बैहर, समनापुर, बोरी, रानी कुठार और हट्टा में यत्र-तत्र पड़ी पुरातत्व धरोहरों को संग्रहालय में लाकर संरक्षित किया जाए. जिसके लिए संग्रहालय की 50 बाई 100 की खाली जगह पर 10 करोड़ की लागत से पुरातत्व भवन बनाने को लेकर चर्चा भी हो चुकी है. उन्होंने कहा कि यदि भवन बन जाता है तो जिले के कई स्थानो में पड़ी पुरातत्व धरोहरों को, यहां सहेजकर रखा जा सकता है और यदि पुरातत्व धरोहरों के स्थल को संरक्षित स्थल घोषित कर देती है तो जिले में पुरातत्व धरोहरों से शासकों के शासनकाल के इतिहास में रूचि और अध्ययन करने वालों के लिए मील का पत्थर साबित होगा.

वर्तमान में छोटे भवन में रखी 10 वीं से 19 शताब्दी की पुरातत्व धरोहरे

इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान संग्रहालय के संग्रहाध्यक्ष डॉ. वीरेन्द्रसिंह गहरवार बताते है कि वर्तमान में मुख्यालय में जो संग्रहालय है, वहां भगवान गणेश, विष्णु, महेश, तीर्थनाथ, चतुर्भुज विष्ण, दशावतार विष्णु, हनुमान, ढाल-तलवार लिए योद्धा की प्रतिमाए है. यही नहीं बल्कि केन्द्र सरकार द्वारा संरक्षित स्थल में सिद्धस्थल लांजी का कोटेश्वर मंदिर, शिवमंदिर, महादेव खोली और राज्य सरकार द्वारा संरक्षित स्थल में हट्टा की बावड़ी और धनसुआ का गोसाई मंदिर है.  भूगर्भशास्त्री डॉ. संतोष सक्सेना कहते है कि जिले में पुरातत्व धरोहरों का इतिहास काफी पुराना है, जिले में जगह-जगह पुरातत्व मंदिरों और प्रतिमाएं बिखरी पड़ी है. जिसमंे कुछ प्रतिमाओं को संग्रहालय में संरक्षित किया गया है. जिनका पूरा इतिहास संग्रहालय में रखा गया है. जिससे यहां आने वालो को बालाघाट के इतिहास से लेकर यहां कई शताब्दी वर्ष पूर्व रहे शासकों के शासनकाल का भी पता चलता है. यदि इसका विस्तार किया जाता है और यहां और यत्र-तत्र बिखरी पड़ी पुरातत्व धरोंहरों की प्रतिमाओं को सहेजा जाता है तो निश्चित ही इसका लाभ इतिहास के शोधकारो और अध्यापन करने वालों को मिलेगा.  


Web Title : ARCHAEOLOGICAL HERITAGE SCATTERED IN THE DISTRICT, FILE STUCK IN BHOPAL TO PRESERVE 300 STATUES