दीपावली पर मां लक्ष्मी का पूजन कर मनोकामना पूर्ति का मांगा आशीर्वाद, घर-आंगन में जले दीप-सजी रंगोली, पटाखों की गूंज से गूंजा शहर

बालाघाट. अंधेरे पर उजाले की जीत का पर्व दीपावली मुख्यालय सहित पूरे जिले में उत्साह, उमंग और खुशी के साथ मनाया गया. घरों और प्रतिष्ठानो में मां लक्ष्मी का पूजन कर सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य और वैभव के साथ स्वास्थ्य शरीर की मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद मांगा गया.  घरो और प्रतिष्ठानो में शुभ मुहुर्त पर पूजा अर्चना की गई और मां को व्यंजन एवं मिठाईयों का भोग लगाया गया. दीपावली पर नए परिधान में सजे बच्चो, युवा, पुरूष, महिलाओं और बुजुर्गो ने दीपावली की खुशियां मनाई. घरो में छोटो ने बड़ो के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया. वहीं पूजन के बाद मुख्यालय में पटाखों की गूंज से माहौल गुंजायमान हो उठा.

दीपों का महापर्व दीपावली रविवार 12 नवंबर को हर्षोउल्लास के साथ मनाई गई. इस मौके पर हर घर, दीपों की रौशनी से आलोकित हो उठा. रोशनी के इस पर्व पर घर के आंगन और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के बनाई गई रंगोली देखते ही बनती है. मुख्यालय में ऐसे कई रंगोली कलाकार है, जिनकी रंगोली जीवंत नजर आती है, नगर के सांई मंदिर के सामने उरकुड़े परिवार द्वारा बनाई जाने वाली रंगोली के साथ ही सुमित मंगलानी की रंगोली ने लोगों का मनमोह लिया.  

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रंगोली महज एक कलात्मक अथवा सजावटी वस्तु नहीं है. रंगोली की आकृतियां घर से बुरी आत्माओं एवं दोषों को दूर रखती हैं. रंगोली के सुंदर रंग घर में खुशहाली एवं सुख-समृद्धि लाते हैं. दीपावली त्यौहार में रंगोली बनाना महज एक रिवाज नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक इतिहास भी प्रचलित है. लोक मान्यताओं के आधार पर ऐसा माना जाता है कि लंकेश रावण का वध करने के पश्चात जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता के साथ 14 वर्षों का वनवास व्यतीत करके अयोध्या वापस लौट रहे थे, तब अयोध्या वासियों ने उनका पूरे हर्षोल्लास से स्वागत किया था. इसके लिए अयोध्या वासियों द्वारा घर की साफ-सफाई करके घर के आंगन में या फिर प्रवेशद्वार के समीप रंगोली बनाई गई थी तथा पूरे अयोध्या को दीपक से सजाया गया था. तभी से प्रत्येक वर्ष दीपावली पर रंगोली बनाने और दीपावली का  रिवाज प्रचलित हो गया. दिपावली पर्व पर नगर में जहां एक ओर रोशनी से पूरा शहर जगमगा उठा तो वही घरों के आंॅगन रंगोलियों से चमक उठे.  

दीपावली के पंच दिवसीय उत्सव के तहत दूसरे दिन 12 नवंबर को घरो में गोवर्धन पूजा की जाएगी. गोवर्धन पूजा में भगवान कृष्‍ण, गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा की जाएगी. ऐसी मान्यता है कि ब्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से विशाल गोवर्धन पर्वत को छोटी अंगुली में उठाकर हजारों जीव-जतुंओं और इंसानी जिंदगियों को भगवान इंद्र के कोप से बचाया था. इस दिन लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन बनाते हैं. जमीन पर गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर पूजा की जाती है.


Web Title : ON DEEPAWALI, GODDESS LAKSHMI WAS WORSHIPED AND SOUGHT BLESSINGS FOR FULFILLMENT OF WISHES, THE CITY WAS FILLED WITH LAMPS AND FIREWORKS IN THE COURTYARD.