मंत्री कावरे की पहल पर पुरातत्व स्थल गोसाई मंदिर धनसुआ एवं हट्टा की बावड़ी का होगा सुदृढ़ीकरण

बालाघाट. जिले में पुरातात्विक धरोहरे, यत्र-तत्र बिखरी पड़ी है, जिसका संरक्षण नहीं होने से उनका अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है, जिले के परसवाड़ा क्षेत्र में पुरातत्व धरोहर में, धनसुआ का गोसाई मंदिर और हट्टा की बावली है, जिसके अस्तित्व को बचाने के लिए राजनीतिक स्तर पर प्रदेश के आयुष मंत्री कावरे ने पहल की है. परसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के पुरातत्व एवं ऐतिहासिक महत्व के स्थल गोसाई मंदिर धनसुआ तथा हट्टा की बावड़ी का अनुरक्षण और विकास कार्य किया जाना है.  मंत्री कावरे की पहल पर गोसाई मंदिर धनसुआ के अनुरक्षण एवं विकास कार्य के लिए संस्कृति विभाग के पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय मध्यप्रदेश शासन भोपाल द्वारा 49 लाख 82 हजार रूपये की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई है.

आयुष मंत्री कावरे ने बताया कि गोसाई मंदिर धनसुआ के अनुरक्षण एवं विकास कार्य के लिए टेंडर लग चुका है. जल्द ही हट्टा बावड़ी के विकास एवं अनुरक्षण कार्य प्रारंभ हो जायेगा. उन्होंने कहा कि परसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में अनेक ऐतिहासिक एवं पुरातत्व महत्व के स्थल हैं, जिनके अनुरक्षण एवं विकास के लिए वे स्वयं शासन स्तर पर प्रयासरत हैं. उन्होंने बताया कि देखरेख के आभाव में धनसुआ का मंदिर सामने की ओर झुक रहा था, जिसका अनुरक्षण कार्य किया जाना अतिआवश्यक था. साथ ही मंदिर के संरक्षण के लिए चारदीवारी का निर्माण भी किया जायेगा. चारदीवारी निर्माण के पश्चात यह स्थल पहले से और अधिक सुरक्षित हो जाएगा.  

गौरतलब हो कि परसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के ग्राम धनसुवा में गांव के बाहर स्थित प्राचीन गोसाई मंदिर विद्यमान है. इसे शिव आराधना के कारण शिव मंदिर भी कहा जाता है. वर्तमान में गर्भगृह के अंदर कोई प्रतिमा विद्यमान नहीं है, किंतु मंदिर के शीर्ष पर सीधा ओम अलंकृत है. इसे शिव साधना का तांत्रिक मंदिर कहते हैं. स्थापत्य विद्या की दृष्टि से यह मंदिर 10 वी-11 वीं शताब्दी का प्रतीत होता है. वहीं हट्टा बावड़ी का निर्माण प्राचीन किले में किया गया है. हैहयवंशीय राजाओ के बाद गोंड राजा हटेसिंह वल्के ने इस बावली का निर्माण कराया था. माना जाता है कि राजा हेट सिंह ने गर्मी के दिनों में सैनिको के छिपने, पेयजल, स्नान और आराम करने के लिए इस बावड़ी का निर्माण किया था. गोंड काल के बाद मराठा शासक और भोंसले साम्राज्य में भी इसका उपयोग होते रहा है. इस वजह से बावड़ी में मराठा शासक और भोंसले साम्राज्य की कलाकृतिया देखने को मिलती है. फिलहाल इस बावड़ी को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर अपने अधीनस्त रखी हुई है. इस बावड़ी का निर्माण 17 वी-18 वी शताब्दी में हुआ था. इस दौरान बड़ी बड़ी चट्टानों को काटकर सजाया गया और स्तंभो को लगाया गया था. यह बावड़ी दो मंजिला है. प्रथम तल पर 10 स्तंभ तथा उसके नीचे 08 स्तंभ आधारित बरामदे एवं कक्ष का निर्माण किया गया है. बावड़ी के प्रवेश द्वार पर 02 चतुर्भुजी शिव अम्बिका प्रतिमाओं की नक्काशी की गई है.


Web Title : ON THE INITIATIVE OF MINISTER KAVRE, THE ARCHAEOLOGICAL SITE GOSAI TEMPLE DHANSUA AND HATTA KI BAWDI WILL BE STRENGTHENED.