आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संवाद 8 से, 20 राज्य के प्रतिनिधि होंगे शामिल, 75 साल बाद भी आदिवासियों को नहीं मिले संवैधानिक अधिकार-कोर्राम

बालाघाट. सरकारे आदिवासियों के उत्थान में योजना और उनके संरक्षण के लिए कानून बनाये जाने के दावे करती है लेकिन इसके उलट आदिवासी संगठनो के प्रमुखों का कहना है कि आजादी के 75 वर्षो बाद भी आदिवासियों को उनका संवैधानिक अधिकार नहीं मिला है.  अभा. धर्म परिषद इंजी. भुवनसिंह कोर्राम की मानें तो आजादी के बाद से लगातार आदिवासी अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है, लेकिन सरकारें, उन्हें उनका संवैधानिक अधिकार नहीं दे रही है. सरकारों से आदिवासी संगठन, अपने संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई लड़ता आ रहा है लेकिन अब लगता है कि हमें अब न्यायपालिका का सहयोग लेना पड़ेगा, तब ही हमें उम्मीद है कि हमें हमारे संवैधानिक अधिकार मिलेंगे. उन्होंने बताया कि इसी उद्देश्य को लेकर आगामी 8 एवं 9 अप्रैल को मुख्यालय के निकेतन में 20 प्रदेश के आदिवासी प्रतिनिधियों के साथ ही आदिवासी समाज से जुड़े वर्तमान एवं पूर्व पंच, सरपंच, जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, विधायक, सांसद को इसमें आमंत्रित किया गया है. जिससे निकलने वाले मंथन को सरकारों और न्यायपालिका के समक्ष रखकर, अधिकारो की आवाज बुलंद की जायेगी.

दो दिवसीय राष्ट्रीय संवाद में यह अतिथि रहेंगे उपस्थित

अभा. धर्म परिषद के प्रदेश अध्यक्ष इंजी. भुवनसिंह कोर्राम ने बताया कि निकेतन के सभागार में आयोजित राष्ट्रीय संवाद कार्यक्रम में झारखंड पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव, राजस्थान से सामाजिक चिंतक भंवरलाल परमार, आदिवासी सत्ता मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के संपादक के. आर. शाह, अभा आदिवासी धर्म परिषद महाराष्ट्र के राष्ट्रीय अध्यक्ष विश्वनाथ वाकड़े, झारखंड पूर्व सांसद देव कुमार धान, मध्यप्रदेश के धनावर विधायक डॉ. हीरा अलावा, राजस्थान के सामाजिक चिंतक एवं प्रोफेसर डॉ. हीरा मीणा सहित अन्य अति विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहेंगे. जिसमें भारतीय जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों एवं वर्तमान में ज्वंलत मुद्दो पर चर्चा की जायेगी.

पेसा एक्ट प्रभावी नहीं-कोर्राम

पेसा एक्ट को लेकर अभा. धर्म परिषद के प्रदेश अध्यक्ष इंजी. भुवनसिंह कोर्राम ने कहा कि सरकार ने चुनावी फायदे के लिए पेसा एक्ट तो लागु कर दिया है, लेकिन इसमें अधिकार और शक्ति कम कर दी है. जो वर्तमान में प्रभावी नहीं है. जब तक आदिवासियों को स्वशासन और ग्राम सभा को अधिकार नहीं मिलेगा, तब तक यह पेसा एक्ट प्रभावी नहीं हो सकता है. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सरकार ने आदिवासियों का विस्थापन कर दस लाख तो दे दिये लेकिन उसके बाद वह किस हालत में इसका ध्यान नहीं रखा. जिसके चलते कई विस्थापित आदिवासी ने मिली राशि को दुरूपयोग किया तो कईयो आदिवासी, दलालांे का शिकार बन गये. उन्होंने कहा कि प्रदेश में आदिवासियों की स्थिति अच्छी नहीं है.  


Web Title : TWO DAY NATIONAL DIALOGUE ON CONSTITUTIONAL RIGHTS OF TRIBALS TO BE HELD FROM 8 TO 20 STATE REPRESENTATIVES