पति के साथ रिश्ते में होते तनाव का हवाला देकर गर्भपात की मांग कर रही महिला को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से झटका लगा है. कोर्ट का कहना है कि केवल बिगड़ते संबंधों के आधार पर ही गर्भपात की इजाजत नहीं दी जा सकती है. साथ ही कोर्ट का कहना है कि भारत में अबॉर्शन को अपराध की तरह माना जाता है. कोर्ट ने महिला की याचिका को खारिज कर दिया है. 29 वर्षीय महिला की साल 2022 में शादी हुई थी. याचिकाकर्ता ने स्वीकर किया था कि शादीशुदा जीवन में उन्हें गर्भधारण हुआ. कुछ समय के बाद पति-पत्नी के बीच रिश्ता ठीक नहीं चला और महिला ने गर्भपात कराने का फैसला कर लिया था. इसे लेकर उन्होंने उच्च न्यायलय का रुख किया और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971 के तहत गर्भपात की अनुमति मांगी थी. याचिका पर विचार के बाद कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता किसी यौन अपराध के चलते गर्भवती नहीं हुई हैं. वह एक शादीशुदा महिला हैं, जो यह भी दावा नहीं कर रही हैं कि उन्हें पति के अलावा किसी और व्यक्ति ने गर्भवती किया है. जस्टिस पी सैम कोशी की एकल पीठ ने कहा, ´अगर यह कोर्ट रिट याचिका में किए गए दावों के आधार पर गर्भपात कराने की मांग कर रहीं याचिकाओं पर विचार शुरू कर देगा, तो 1971 के इस एक्ट का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा. ´ कोर्ट ने कहा, ´भारत में गर्भपात को अपराध माना जाता है. जब तक ऐसे हालात न बन जाएं कि गर्भवती महिला का गर्भपात करना ही होगा, तब तक मेडिकल प्रैक्टिस करने वाले भी अबॉर्शन से बचते हैं. वो भी किसी योग्य डॉक्टर की सलाह पर करते हैं, जो गर्भवती महिला की जांच के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि गर्भवती महिला के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को जोखिम है या ऐसी भी स्थिति बन सकती है कि जन्म लेने वाला बच्चे के किसी गंभीर विकृति या बिमारी का शिकार होने का जोखिम हो. ´