City Live Special : सर्वेश्वरी आश्रम में विराजती है माँ दुर्गा का स्वरुप माँ विंध्यवासिनी

धनबाद : धनबाद के सर्वेश्वरी आश्रम में दुर्गा पूजा को लेकर माता के विध्यवासिनी देवी के रूप की पूजा के लिए जिले के अलग अलग भागो से लोग उमड़ रहे है. सर्वेश्वरी आश्रम में माता विंध्यवासिनी के पिंड स्थापित है. जिसे धनबाद के लोग सौभाग्य मान रहे है.

कहा जता है की विन्ध्याचल में माता विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए तीन जगह पिंड स्थापित किये गए है जिसके दर्शन के बाद ही उनकी यात्रा सफल होती है. और वे पुन्य के भागी के बनते है.

वंही सर्वेश्वरी आश्रम में विराजमान माता विन्ध्वासिनी की ख़ास बात ये है की यंहा माता के तीनो पिंड की स्थापना की गयी है. जिनके दर्शन मात्र से ही लोगो को मनचाहा फल प्राप्त होता है और तीनो पिंडो के दर्शन के लिए अलग अलग जगहों पर नहीं जाना होता बल्कि एक ही जगह माता के तीनो स्थापित पिंड के दर्शन हो जाते है.

स्थापना पर एक नजर

लोगो के अनुसार वर्ष 1981 में अघोरपंथ और सर्वेश्वरी समूह के संस्थापक अघोरेश्वर भगवान् राम ने ही माता विंध्यवासिनी के तीनो पिंड को बनारस से लाकर स्थापित किया था. तब से आज तक वंहा लोग दूर दूर से माता के दर्शन करने वंहा आते है.

मान्यता के अनुसार अघोरेश्वर किनाराम जी के द्वारा माँ के पिंड को पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित पहाड़ी से जंहा माँ हिंगलाज विराजमान है. उन्होंने अपने साधना काल में वंहा से माता का पिंड लाकर बनारस में स्थापित किया था. उन्होंने बताया था की माता विंध्यवासिनी अपने भक्तो की पुकार सुनकर सशरीर उपस्थित रहती है. और उन्हें मनचाहा वरदान देती है.

सर्वेश्वरी में होता है माता विंध्यवासिनी का जन्मोत्सव

सर्वेश्वरी आश्रम में रोजाना विधी - विधान से पूजा अर्चना की जाती है. सर्वेश्वरी आश्रम में दो उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है पहला माता विन्ध्वासिनी का जन्मोत्सव और दुसरा सर्वेश्वरी आश्रम का स्थापना दिवस.

माता विन्ध्वासिनी का जन्मोत्सव कृष्णजन्माष्टमी के दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. कथाओं के अनुसार देवकी के आठवें गर्भ से आविर्भूत श्रीकृष्ण को वसुदेवजी ने कंस के भय से रातोंरात यमुनाजीके पार गोकुल में नन्दजीके घर पहुँचा दिया तथा वहाँ यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं भगवान की शक्ति योगमाया को चुपचाप मथुरा ले आए.

आठवीं संतान के जन्म का समाचार सुन कर कंस ने उस नवजात कन्या को पत्थर पर जैसे ही पटक कर मारना चाहा, वैसे ही वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुँच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित किया.

कंस के वध की भविष्यवाणी करके भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई. इसलिए भगवान् कृष्ण के जन्म पर ही विन्ध्वासिनी देवी की भी जयंती मनाई जाती है. वंही आश्रम का स्थापना दिवस भी यंहा धूमधाम से मनाया जाता है. कई दिनों तक भजन कीर्तन से यंहा माहौल भक्तिमय बना रहता है.

भक्तो की आस्था पर एक नजर

धनबाद के रहने वाले डा. सुधीर कुमार ने माता के प्रति उनकी आस्था से जुड़े कुछ किस्से बयां किये. उन्होंने बताया की वर्ष 1982 में जब वे माता विन्ध्वासिनी के दर्शन को जा रहे थे.

तब उनके सामने बवंडर की तेजी से एक साधू आया और कहा की कंहा जा रहे हो माता विन्ध्यावासिनी तो अब धनबाद में विराजती है तुम कंहा आ गए. जा उनकी वंही पूजा कर कहने के बाद वे नजर नहीं आये.

आस्था से जुडी उन्होंने दूसरी कहानी कहते हुए बताया की एक बार वे माता के दर्शन करने विन्ध्याचल गए थे भारी भीड़ के कारण उन्होंने बिना दर्शन कर लौट जाने का मन बनाया.

तभी उनके पास एक साधू आया और बोला बिना दर्शन किये जाना चाहता है. तुझे माता के दर्शन करके ही जाना होगा. ऐसा कहने के बाद उन्होंने उनका हाथ पकड़ा और माता के दर्शन भी करा दिए.

इसके बदले जब डा. सुधीर ने उन्हें कुछ देना चाहा तो उन्होंने कहा की माता तो धनबाद में विराजती है लेकिन आप धनबाद से आये है इसलिए मई आपको माता के दर्शन कराकर धन्य हो गया

Web Title : MAA VINDHVASHANI AT TEMPLE OF SARVESHWARI ASHARAM DHANBAD