अयोग्य व्यक्ति को ऊंचाई पर पहुंचाने से बहुत बड़ी गड़बड़ी हो सकती है : रमेश भाई ओझा

धनबाद : अयोग्य व्यक्ति को ऊंचाई पर पहुंचाने से बहुत बड़ी गड़बड़ी हो सकती है. इससे समाज और राष्ट्र को भी नुकसान पहुंचने की संभावना है. लेकिन अर्जुन और सुखदेव की तरह गुरु के शिष्य बनकर, ज्ञान प्राप्त कर समाज और राष्ट्र का कल्याण कर सकते है. गुरु भी वैसे इंसान को अपना शिष्य मानते हैं जिनपर उनका शासन हो.

इसलिए यदि किसी को अपना गुरु मानो तो उसपर अर्जुन और सुखदेव की तरह शिष्य भाव से अपने गुरु के सामने समर्पण करो. रमेश भाई ने कहा अपनी विद्या किसी अशिष्य को नहीं देनी चाहिए नहीं तो शिष्य गुरु की बातों का दुरुपयोग करेगा. भावगत कथा भी यदि सुननी हो तो उसे समर्पण के भाव से सुनो. पार्वती भी शिष्य बनकर शिव के पास गई थी और कथा सुनी थी. यह बातें आज श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन रमेश भाई ओझा ने श्रोताओं से कही.

श्रवण श्रद्धापूर्वक करो – रमेश भाई ने कहा कि कथा का श्रवण भी श्रद्धापूर्वक भाव से करो. जिस ग्रंथ की कथा सुनते हैं उसमें श्रद्धा रखो. कथा के वक्ता तथा कथा के विषय पर श्रद्धा रखो. श्रद्धा, प्रेम और रूची, तीनों मिलकर कथा श्रवण को सार्थक बना देते हैं. यही सार्थकता भक्ति में परिवर्तित हो जाती है.

रमेश भाई ने कहा भगवान शंकर ने जब पार्वती को कथा सुनायी थी तब पार्वती को शंकर पर श्रद्धा थी. शंकर विश्वास का प्रकित है और पार्वती श्रद्धा का रूप है. इसलिए कथा को ज्ञान यज्ञ भी कहा गया है. रमेश भाई ने कहा कि हम दिनभर विभिन्न विषयों पर वार्तालाप करते हैं. लेकिन वार्तालाप को कथा नहीं कह सकते. व्यर्थ विषय पर वार्तालाप करना समय की बर्बादी है. वार्तालाप सत्संग नहीं है.

ईश्वर को स्वीकार करने वाले दो – रमेश भाई ने कहा कि ईश्वर अनुगम्य है. उनको स्वीकार करने वाले दो प्रकार के होते हैं. एक वह होता है जिसके लिए ईश्वर केवल अनुमान है. दूसरा वह होता है जिसके लिए ईश्वर अनुभव के समान है. रमेश भाई ने स्वामी विवेकानंद का उदाहरण देते हुए कहा कि एक सामान्य नरेन्द्र दत्त को जब ईश्वर की अनुभूति हुई तो वे स्वामी विवेकानंद बन गए. ईश्वर की अनुमान करके पूजा करेंगे तो अंदर से संतोष नहीं मिलेगा.

दिव्य दमामी ते चख्सु – भाई श्री ने कहा कि प्रत्येक सदगुरु अपने शिष्य को दिव्य दृष्टि देता है. जिससे वह ईश्वर का दर्शन कर सके. सदगुरु विवेक का नयन देव है. दिव्य दृष्टि से स्वयं सही और गलत में फर्क करने की शक्ति होती है. क्या नश्वर और क्या नित्य है, इसे समझने की शक्ति मिलती है. कहा कि जिस तरह से शरीर और प्राण अलग है उसी तरह से धर्म और कर्म भी अलग है.

धर्म को कर्म से जोड़ो – धर्म को अपने कर्म से जोड़ना चाहिए. लोग अपने धर्म के अनुसार अपना खान-पान, पर्व त्यौहार इत्यादि को स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन जब कर्म करने का समय आता है तब धर्म के विपरित कर्म करते हैं. धर्म कहता है किसी गरीब को मत सताओ. लेकिन इंसान इसके विपरित गरीबों को सताता है. वह पानी तो छानकर पीता है लेकिन गरीब का खून सीधा पी जाता है. यदि हमारे कर्म में धर्म है तो यह पूजा है.

गुरु अज्ञानता को हर लेते हैं – रमेश भाई ने कहा कि गु यानि अंधकार और रु यानि प्रकाश. जो हमारे अंकधार को प्रकाश में परिवर्तित करदे वह गुरु. गुरु ज्ञान देते नहीं, वह हमारी अज्ञानता को हर लेते है. गुरु अपने शिष्य में ज्ञान का प्राकट्य करते हैं. वह शिष्य में परमात्मा को प्रकट करते हैं.

परमात्मा नित्य है. ज्ञान भी नित्य वस्तु है. लेकिन बिन गुरु वह ढंका हुआ है. गुरु उसे बाहर निकालता है. गुरु यह बताते हैं कि परमात्मा सर्व है, सर्वत्र है. कोई स्थान ऐसा नहीं, कोई काल ऐसा नहीं जहां परमात्मा नहीं. लेकिन जबतक अज्ञानता का पर्दा नहीं हटाया जाएगा तबतक परमात्मा दिखाई नहीं देगा.

ज्ञान के अभाव में हमें नश्वर का मोह है. मोह सारी समस्या की जड़ है. दुख का मूल कारण भी मोह है.कथा से पूर्व पोथी यजमान रामप्रसाद कटेसरिया, रामबाबू अग्रवाल, चेतन गोयनका, राजकुमार तायल, रमेश चन्द्र अग्रावल, विमल सरिया, योगेन्द्र तुलस्यान, महेश बजानिया, भानु जालान का सम्मान किया गया. इसके बाद आयोजन कमिटी के सदस्यों का सम्मान किया गया.

 

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