तु जो चाहे पर्वत-पहाड़ों को तोड़ दे, नदियों के रुख को भी मोड़ दे : मोहन भागवत

धनबाद : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संचालक मोहन राव भागवत ने आज कहा कि इंसान में यदि किसी कार्य को लेकर दृढ ईच्छाशक्ति हो, तो वह कुछ भी कर सकने में सक्षम होता है.

उन्होंने कहा कि तु जो चाहे तो पर्वत-पहाड़ों को तोड़ दे, नदियों के रुख को भी मोड़ दे. इंसान कभी छोटा नहीं होता. केवल मन में दृढ संकल्प करने की आवश्कता है.  

भागवत धनबाद में वनबंधु परिषद् द्वारा आयोजित तीन दिवसीय एकल परिणाम कुंभ को संबोधित कर रहे थे.

धनबाद के महान समाज सेवी स्व. मदन लाल अग्रवाला ने 25 वर्ष पूर्व एकल विद्यालय की स्थापना की थी.

धीरे-धीरे उनके अभियान ने देश और विदेश में अपने पांव पसारे. आज भारत सहित विदेशों में एकल विद्यालय की 55 हजार से अधिक विद्यालय है.

अभियान के तहत विगत 25 वर्षों में 30 लाख से अधिक छात्रों को शिक्षा प्रदान की गई है.

भागवत ने कहा कि हमारी मुट्ठी में स्वयं भगवान है. मनुष्य ठान ले तो वह अपने आप को बड़ा बना सकता है.

लेकिन उसे इसके लिए अवसर मिलना चाहिए. कहा कि संघ के सभी सदस्य हनुमानजी की तरह शक्तिशाली है.

देश के लिए कुर्बानियां भी देते हैं. उन्होंने कहा कि जिस तरह से महाराणा प्रताप ने अपना सब कुछ न्यौछावर कर के भारतमाता के लिए बलिदान दिया, उसी तरह हमें भी भारत माता की सेवा करने के लिए कुछ त्याग करना चाहिए.

भागवत ने कहा कि जो विधिवत नहीं समाज उसे स्वीकार नहीं करता, जो विधि से नहीं चलते वह अराजक होते हैं.

उन्होंने कहा कि परिणाम कुंभ में 25 वर्पों के कार्यों की समीक्षा करेंगे. कार्य आगे कैसे बढे इस पर विचार करेंगे.

जिस दिशा में बढे थे उसी दिशा में आगे बढेंगे. रणनीति बदलनी पड़ सकती है. सिंहावलोकन कर देखेंगे. कैसी राह चलकर आए, कैसे रास्ते पर चलेंगे.

कहा आगे काम में अनुकूलता-प्रतिकूलता आएगी. राह कैसी थी इस पर नहीं सोचना. राह में जो अनुभव मिले इसे स्मरण रखना है.

25 वर्पों में जो अच्छा मिला उसे आगे बढाना है. जिस कारण से ठोकर लगी उस पर विचार करना है.

अपने अनुभव से क्या सीखा उससे सबक लेना है. जो असली कार्यकर्ता हैं वे असुविधा में काम करते हैं, जो सुविधाभोगी कार्यकर्ता हैं वे काम नहीं करते.

कल्पना का जन्म मन में होता है. कल्पना को प्रत्यक्ष करने के लिए साहस चाहिए. पथ कांटों भरा हो लेकिन चलना चाहिए.

मन में अहंकार नहीं रखें. भारतीय चिंतन पद्धति कहती है कि सभी आत्मिक जन हैं. सब में आत्मा का वास है. यही आत्मचिंतन का भाव सनातन काल से भारतीयों को जोड़े हुए है.

संघ प्रमुख ने आगे कहा कि हमें क्या करना है इसका स्पप्ट ध्यान रखना चाहिए. प्रेम ही आगे ले जाता है.

मनुप्य को सही कार्य में किसी की सहायता की जरूरत नहीं. भागवत ने कहा कि भारत में धनपतियों की कमी नहीं.

जो काम किया है उसका चिंतन करें. काम हमलोगों ने किया है इसीलिए यहां पहुंचे हैं.

सामर्थ्य और पुरुपार्थ के कारण स्थिति बदली. जो विधिवत नहीं समाज उसे स्वीकार नहीं करता. जो विधि से नहीं चलते वह अराजक है.

उन्होंने कहा कि मंदिर, धर्मस्थल सभी को हमें ठीक करना है. देश की संस्कृति रीति-नीति को मानना चाहिए. सब को स्वीकार करना हमारी नीति है.

आगे काम करने के लिए हो सकता है कि हम लोगों को अपना स्वरूप बदल कर काम करना पड़े. अब तक के परिणाम अच्छे हैं. यह सोचकर काम नहीं चलेगा. हर्ष करो, पर गर्व न करो.

कार्यक्रम में विहिप के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक अशोक सिंघल, महामंत्री चंपक राय, संगठन प्रभारी श्याम अग्रवाल, विहिप के भिष्म पितामाह शिव चन्द्र गोयल, केदार नाथ मित्तल, महेन्द्र अग्रवाल, झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास, धनबाद और झरिया के विधायक, सांसद पशुपतिनाथ सिंह, उद्योगपति प्रदीप संथोलिया, दिपक पोद्दार, शुभाष चन्द्रा सहित देश तथा विदेश पधारे हजारों अतिथि उपस्थित थे.

Web Title : MOHAN BHAGWAT SPEAKS AT EKAL VIDYALAYA PARINAM KUMBH