बालाघाट. सर्व आदिवासी समाज द्वारा अखिल भारतीय आदिवासी धर्म परिषद भारत के तत्वाधान में आयोजित प्रांतीय अधिवेशन का आयोजन आदिवासी धर्म संस्कृति विशेषज्ञ इंजी. नसीब कुसरे की अध्यक्षता और अखिल भारतीय आदि धर्म परिषद राष्ट्रीय अध्यक्ष विश्वनाथ वाकड़े के मुख्य आतिथ्य में आयोजित किया गया. जिसमें 10 प्रांत से परिषद प्रतिनिधि पहुंचे थे. जहां आदिवासियों के हक और अधिकार पर चर्चा की गई. यह परिषद प्रतिनिधियों ने संबोधित करते हुए कहा कि 1821 से हुई जनगणना में आदिवासियो को अलग-अलग कैटेगिरी में रखा गया और स्वतंत्रता के बाद आदिवासियों को बिखराकर उन पर धर्म थोपा गया. जबकि हमारा एक ही धर्म है और हम आदिवासी है. जिसको लेकर परिषद पूरे देश में कार्य कर रही है, बिखरे आदिवासियों को एकत्रित करने का काम कर रही है, 18 प्रदेशो तक हम पहुंच गये है और यह प्रयास निरंतर जारी है.
सर्व आदिवासी समाज जिलाध्यक्ष इंजी. भुवनसिंह कोर्राम ने बताया कि अखिल भारतीय आदिवासी धर्म परिषद भारत के द्वारा प्रांतीय अधिवेशन रखा गया है, जिसमें 10 प्रांत से प्रतिनिधि पहुंचे है, जिसमें आदिवासियों की ज्वलंत समस्या जनगणना प्रपत्र पर अलग से कॉलम, प्रदेश सरकार द्वारा लागु किये गये पेसा एक्ट में मूलभावना को खत्म करने सहित गोंडी भाषा को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने, वन अधिकार अधिनियम, वन ग्राम विस्थापन नीति, भू राजस्व संहिता, पेसा एक्ट, गौण खनिज अधिनियम, एट्रोसिटी एक्ट, आदिवासी समाज के संवैधानिक अधिकार सहित समाज की ज्वलंत सामाजिक समस्याओं पर चर्चा की गई. इस दौरान एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि प्रदेश कार्यकारिणी के गठन की चर्चा की गई है, जिस पर अभी निर्णयात्मक फैसला होना बाकी है.
सर्व आदिवासी समाज द्वारा 25 दिसंबर शनिवार को नगर के नूतन कला निकेतन में प्रांतीय अधिवेशन का आयोजन किया गया. अखिल भारतीय आदिवासी धर्म परिषद भारत के तात्वधान में आयोजित इस प्रांतीय अधिवेशन में देश के अलग-अलग 10 प्रांतो और प्रदेश के विभिन्न जिलों से आये प्रतिनिधियों ने इस प्रांतीय अधिवेशन में हिस्सा लिया और अपने विचार रखे.
सम्मेलन में जनगणना प्रपत्र में धर्म कोड का अलग से कालम देने, गोंडी भाषा को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने, वन अधिकार अधिनियम, वन ग्राम विस्थापन नीति, भू राजस्व संहिता, पेसा एक्ट, गौण खनिज अधिनियम, एट्रोसिटी एक्ट, आदिवासी समाज के संवैधानिक अधिकार सहित समाज की ज्वलंत सामाजिक समस्याओं पर चर्चा की गई. इस दौरान वक्ताओं ने आदिवासी समाज को उनका हक अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन की रणनीति बनाई. उन्होंने कहा कि सरकारों पर आदिवासी समाज की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए जनगणना के आधार पर लोकसभा और विधान सभा मे अधिक से अधिक समाज के लोगो को चुनकर भेजने और आदिवासियो के हक अधिकार का मुद्दा सदन में ना उठाने वाले समाज के विधायक, सांसद और मंत्रियों का बहिष्कार करने की बात कही. साथ ही उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते हुए अपने हक अधिकारों के लिए देश भर में आंदोलन किए जाने की चेतावनी दी.