देवडोंगरी की पहाड़ी पर संरक्षित हैं राष्ट्रीय महत्व के स्मारक, प्रकृति का शांत वातावरण और अनुपम सौंद्रर्य पर्यटकों को करता हैं आकर्षित

बालाघाट. पर्यटन की असीम संभावनाओं को समेटे बालाघाट जिले में पुरातत्व और पर्यटन स्थलों की कोई कमी नहीं है. इन्हीं में से एक सोनखार के जंगलों पर स्थित पहाड़ी है. जिसे स्थानीय जन देवडोंगरी के नाम से जानते है. प्रकृति की सुरम्य वादियों से अच्छादित जंगल के बीच यहां राष्ट्रीय महत्व का स्मारक स्थापित किया गया है, जिन्हें केन्द्र सरकार ने संरक्षित भी किया है. इसी स्मारक के प्रत्यक्ष दर्शन, प्राकृतिक पहाड़ी और रहस्यमयी गुफाओं के रोमांच का लुत्फ उठाने जिला पुरातत्व, पर्यटन एवं संस्कृति परिषद (डीएटीसीसी) टीम यहां पहुंची. मप्र टूरिज्म बोर्ड की महिला सुरक्षित पर्यटन परियोजना के लिहाज से पूरे क्षेत्र का भ्रमण और अवलोकन किया गया. इस स्पॉट के प्रचार-प्रसार और कैसे यहां टूरिज्म की संभावनाओं का विस्तार कर प्रसिद्ध टूरिज्म स्पॉट बनाया जा सकता है. इस पर संगोष्ठी कर विचार विमर्श किया गया. टीम में महिला पर्यटकों के साथ ही स्थानीय युवा और ग्रामीण भी शामिल रहे.  

53 प्रतिमाओं को किया गया है संरक्षित

देवडोंगरी स्मारक में शासन ने 53 पुरातन प्रतिमाओं को संरक्षित कर रखा है. यहां दो चौकीदार भी नियुक्त किए गए हैं, जो पूरे स्मारक का रख रखाव और निगरानी करते हैं. इन्होंने बताया कि मूर्तियां 10 वीं से 16 वीं शताब्दी की होना बताया जाता है. इन कलात्मक मूर्तियों में पुरातन समय के वैवाहिक कार्यक्रमों के दृश्य नजर आते हैं. राजा महाराजाओं की वेशभूषा में दुल्हा बारात के साथ वधु को ब्याहकर लाने जैसी प्रतिमाएं है, जिनको लेकर कई तरह की क्विंदतियां और कहानियां प्रचलन में है. इन कहानियों को सुनने और अनुभूति करना एक अलग ही अनुभव प्रदान करता है.  

श्राप के कारण पत्थर बनी बारात

सोनखार में कई पीढियों से निवासरत बुजुर्ग वर्ग की माने तो पहाड़ी की मूर्तियों को लेकर कई तरह की कहानियां है. इनमें प्रमुख मामा-भांजे की क्विंदतियां है. बताया जाता है कि प्रतिमाओं में अंकित दुल्हा जिनका विवाह संपन्न होना था और पूरी तैयारी दुल्हे के भांजे ने की, लेकिन बारात जाने के दौरान मामा अपने भांजे को ही बारात में ले जाना भूल गया. इस बात से आहत होकर भांजे ने श्राप दिया और बारात वापस आने के दौरान पत्थरों की मूर्तियों में तब्दील हो गई. वहीं कुछ लोग पहाड़ी को श्रापित होना बताते हैं और इस कारण यहां विशेष दिनों में पहुंचे लोग मूर्तियों में तब्दील होना बताया जाता है.  

ऐसे पहुंचे पर्यटक

बालाघाट से नैनपुर पहुंच मार्ग में 60 किमी दूर लामता चांगोटोला के बाद गुडरू होते हुए सोनखान पहुंचना पड़ता है. पूरा सफर करीब 80-85 किमी का होता है. यहां से करीब तीन किमी दूर गोवारीटोला पड़ता है. यहां तक दोपहिया और चारपहिया सभी तरह के वाहनों से पहुंचा जाता है. यहां से जंगलों और पत्थरों की रहस्यमयी गुफाओं वाला सफर पैदल ही पूरा करना पड़ता है. प्रकृति का शांत वातावरण मन को सुकून प्रदान करता है. जंगलों में वन्य प्राणियों के दीदार, हैरतंगेज करने वाली गुफाएं पूरे सफर को मनोरंजक बनाती है. कारण यहीं है कि यहां एक बार आने वाला दोबार जरूर पहुंचने की इच्छा रखता है.

यह रहे शामिल

डीएटीसीसी टीम में पर्यटन प्रबंधक एमके यादव के साथ क्षेत्रीय जिला पंचायत सदस्या स्मिता तेकाम, पार्वती श्रीवास, युवा मोटीवेटर अजयसिंह ठाकुर, परामर्शदाता विजय सूर्यवंशी, पर्यटन प्रेमी अंकुश चौहान, अजय बहेटवार, महेश दौने, देवेन्द्र रनगिरे, सोनू विश्वकर्मा, चेतन शरणागत, गिरीश ठाकरे, रूपसिंह कुशवाहा, फूलचंद ठाकरे, संजय पारधी के अलावा स्थानीय पंचायत प्रतिनिधि, ग्रामीण और थाने से स्टॉफ भी शामिल रहा.


Web Title : MONUMENTS OF NATIONAL IMPORTANCE ARE PRESERVED ON THE HILL OF DEVDONGRI, THE SERENE ATMOSPHERE OF NATURE AND UNIQUE BEAUTY ATTRACT TOURISTS