बालाघाट. 23 मई 1921 को जन्मे श्री श्री आनंदमूर्ति जी का जन्मोत्सव आनंद मार्गी अनुयायियों ने मुख्यालय स्थित आनंद मार्ग योग साधना आश्रम में मनाया गया. इस दौरान उनके व्यक्तित्व और उनके दर्शन पर आश्रम के प्रमुखो द्वारा विस्तृत प्रकाश डाला गया. आचार्य सुष्मितानंद अवधूत ने बताया कि आज बड़े ही प्रसन्नता का दिन है, आज श्री श्री आनंदमूर्ति जी के जन्मोत्सव का दिन है. उन्होंने कहा कि गीता में कहा गया है कि जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का उत्थान होता है तो मानव रूप में स्वयं परमात्मा धरती पर आते है. वे मानव के रूप में कार्य करते है लेकिन उन्हें कोई समझ नहीं पाता है. उन्होंने कहा कि इस धरती पर शिवजी और भगवान कृष्ण ने जन्म लिया. जिन्होंने तंत्र, योग, रूढ़िवादिता से दूर होने, अन्याय के विरूद्ध संग्राम करने, कुप्रथा और कुरीति के खिलाफ आवाज उठाने की सीख दी. भगवान श्रीकृष्ण ने हमें बताया कि भगवान इंद्र से हमें पानी नहीं मिलता है, बल्कि पहाड़ो से पानी आता है. जब-जब ऐसे धर्मात्मा आते है वह परमात्मा और सत्य को स्थापित करते है. उन्होंने बताया कि इस धरती पर कई तरह के दार्शनिक हुए है, जिनमें कुछ दार्शनिकों न जड़वादी तो कुछ दर्शनिको ने भौतिक दर्शन का पाठ पढ़ाया. भौतिक दर्शन देने वाले हमेशा पूंजीवाद, साम्यवाद को ही आत्मा की शांति बताते थे लेकिन जड़वादी दर्शनिको ने परमात्मा की प्राप्ति और पूजन, भजन और कीर्तन को ही आत्मा की शांति बताया.
उन्होंने कहा कि ऐसे ही मानव जीवन का दर्शन देने वाले श्री श्री आनंद मूर्ति जी थे. जिन्होंने मानव जीवन केा संपूर्ण दर्शन दिया. श्री श्री आनंदमूर्ति जी के अनुयायियों ने बताया कि बचपन मंे सीधे दूध की थाल उठाकर दूध पी जाना और बालक आयु में शेर की सवारी करने जैसे घटनाओं ने उन्हें पूज्यनीय बना दिया था. आज हम सभी उन्हें अपने आराध्य के रूप में मानते है, जिनका सृष्टि के निर्माण में अहम योगदान है. जिन्होंने हमें मानव कल्याण का मार्ग बताया.