मोदी के भरोसे भाजपा की भारती!, पार्षद टैग का कितना मिलेगा लाभ? जिले के बड़े नेता और कृपापात्र संगठन पदाधिकारी के रोल पर टिकी भारती की किस्मत

बालाघाट. जिले में भाजपा की पहली महिला सांसद प्रत्याशी बनने का गौरव तो भारती पारधी ने हासिल कर लिया, लेकिन क्या वह जिले की पहली महिला सांसद भी बन पाएगी? समृद्ध राजनीतिक परिवेश से आने वाली श्रीमती भारती पारधी, तकरीबन लगभग 3 दशक से ज्यादा समय से राजनीतिक सेवा से जुड़ी है. वर्ष 1999 से 2004 तक जिला पंचायत सदस्य रही और उसके लगभग दो दशक बाद वह पार्षद पद पर चुनी गई. चुनावी राजनीति के लंबे अंतराल में उनकी ज्यादा राजनीति संगठनात्मक रही. राष्ट्रीय और प्रदेश कार्यसमिति की सदस्य और जिला संगठन में दो-दो बार उपाध्यक्ष और महामंत्री का दायित्व उन्होंने संभाला. कुशल मंच संचालक होने से अक्सर जिले के भाजपा संगठनात्मक और राजनीतिक कार्यक्रमों का भली-भांति संचालन किया.  

ऐसा कहा जाता है कि प्रखर वक्ता भारती पारधी को, लोकसभा का टिकिट, जिले की प्रभावशाली पंवार जाति का प्रतिनिधित्व करने और महाकौशल की राजनीति में बड़ा कद रखने वाले मंत्री प्रहलाद पटेल के कारण मिली है. यह काफी हद तक सत्य भी है, लगातार वर्ष 1998 से 2019 तक बालाघाट संसदीय क्षेत्र में यदि भाजपा 6 बार लगातार जीतते आ रही है, तो केवल 1999 में प्रहलाद पटेल को छोड़ दिया जाए तो पांच बार पंवार समाज के प्रतिनिधि को ही भाजपा ने संसदीय टिकिट दी है और सातवीं बार भी भाजपा ने पंवार जाति कार्ड खेला है.  यह और बात है कि भाजपा, जातिगत आधार को नहीं मानने की बात करती है लेकिन बालाघाट संसदीय सीट पर प्रत्याशी का विचार करना हो तो पार्टी जातिगत के आधार पर ही फैसला लेती है और यही भारती पारधी को टिकिट मिलने का आधार माना जा रहा है.  

भाजपा नेत्री भारती पारधी, की राजनीतिक विरासत तो समृद्ध है लेकिन, वह जिला पंचायत सदस्य और पार्षद के अलावा चुनावी राजनीति का कोई बड़ा चुनाव वह लड़ नही सकी है. ऐसे में जिले के 08 विधानसभा वाले बड़े संसदीय क्षेत्र की जनता तक कैसी अपनी राजनीतिक छाप छोड़ पाएगी? यह एक बड़ा सवाल है, विधानसभा चुनाव में काफी हद तक प्रत्याशी के लिए दायरा छोटा होता है लेकिन संसदीय क्षेत्र का दायरा काफी बड़ा है, यह और बात है कि संगठनात्मक रूप से वह संगठन और संगठन उनसे परिचित है लेकिन संसदीय चुनाव संगठन के लोगों से ज्यादा जिले के मतदाताओं तक अपनी पकड़ रखने से मजबूत होता है. जिसमें अभी भारती पारधी को काफी मेहनत करनी पड़ेगी.  

भले ही भारती को प्रधानमंत्री मोदी के भरोसे जीत दिखाई दे रही हो, लेकिन बीते 2018 और 2023 के विधानसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र में भाजपा के जीत के आंकड़े देखे तो भाजपा और कांग्रेस में कोई बड़ा अंतर नहीं हैं. यह सही है कि 2019 लोकसभा में भाजपा को ढाई लाख वोटों से जीत मिली थी, लेकिन उस चुनाव में जहां प्रतिद्वंदी नेता को निपटाने का जुनुन था. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी अपना प्रभाव जनता पर नहीं छोड़ सके थे और दूसरी बार देश की जनता ने मोदी सरकार बनाने प्रत्याशियों को जीत दिला दी, लेकिन इस बार के चुनाव चुनौतीपूर्ण है. 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जिले के चार विधानसभा सीटो पर जीती है, वहीं इस बार कांग्रेस, काफी विचार के बाद प्रत्याशी उतारने के मूड में नजर आ रही है. हालांकि उसने अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किया है लेकिन यदि इस बार भाजपा के सामने कांग्रेस किसी मजबूत प्रत्याशी को उतरती है तो निश्चित ही उससे पार पाना भाजपा के लिए काफी मुश्किल होगा. दूसरी बड़ी बात, जिले के कद्दावर नेतृत्व और कृपापात्र संगठन पदाधिकारियों का रोल भी, भारती भारती की किस्मत को तय करेगा. चूंकि जिस तरह से दिग्गजो को पछाड़कर भारती पारधी ने टिकिट तो हासिल कर लिया, लेकिन इससे लगी चोट, कितनी गहरी है, फिलहाल, मोदी, भारती के लिए जीत की गारंटी बनेंगे या नहीं, यह तो आने वाला समय बताएगा.


Web Title : BJP BHARTI TRUSTS MODI!, HOW MUCH WILL THE COUNCILLOR TAG BENEFIT? BHARTIS FATE RESTS ON THE ROLE OF BIG LEADER OF THE DISTRICT AND FAVORED ORGANIZATION OFFICE BEARER