विधायक राजकुमार और गौरव की लोकसभा चुनाव के बाद खुल सकती है किस्मत, बनाए जा सकते है मंत्री

बालाघाट. विधानसभा के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व मंे प्रदेश में पांचवी बार बनी सरकार में, यह पहली बार ही हुआ था कि प्रदेश के मंत्रीमंडल में बालाघाट को स्थान नहीं मिला. अमूमन प्रदेश सरकार के अब तक के लंबे इतिहास में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर विगत साढ़े 18 सालो की भाजपा सरकार में बालाघाट को मंत्रीमंडल में स्थान दिया गया. जिसमंे लंबे समय तक जिले के बड़े नेता माने जाने वाले गौरीशंकर बिसेन, लंबे समय तक मंत्रीमंडल का हिस्सा रहे, विगत 2018 के चुनाव में ही उन्हें मंत्रीमंडल में मौका ना देकर, उनके राजनीतिक शिष्य, रामकिशोर कावरे को राज्यमंत्री बनाया गया था. जो भी पूरे महाकौशल में इकलौते मंत्री थे. हालांकि चुनाव के करीब-करीब लगभग सरकार के अंत के ढाई महिने में गौरीशंकर बिसेन को फिर केबिनेट मंत्री बनाया गया था लेकिन यह केवल रस्म अदायगी की तरह ही रहा.  

जिसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिले की 06 सीटो में केवल दो सीटो पर ही जीत मिली. जबकि उसके हाथो की तीन मंत्रियों की सीट छिन गई. जिसके बाद अक्सर यह बात उठती रही कि 2018 के मंत्रीमंडल में बालाघाट को उसकी अपेक्षानुरूप तवज्जो नहीं देना भी, भाजपा की तीन सुरक्षित सीटो पर हार की एक वजह रही है.  

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में गठित प्रदेश की नई सरकार में उम्मीद थी कि बालाघाट के मंत्रीमंडल के हक को बरकरार रखा जाएगा, लेकिन इस सरकार में केबिनेट मंत्री तो दूर राज्यमंत्री तक दर्जा बालाघाट को ना देकर, बालाघाट जिले की अनदेखी कर दी. जिससे जिला, भाजपा की राजनीतिक और संगठनात्मक नेतृत्व में कमजोर ही दिखाई दिया. हालांकि संगठनात्मक तौर से यहां विधानसभा चुनाव में हजारों वोटो से हारने वाले नेता को अध्यक्ष का कार्यभार देकर, उसके हार के गम को कम करने और फ्रंट फुट में आकर काम करने का अवसर तो दिया, लेकिन उसके बाद संगठन में वह असर देखने को नहीं मिला, जो पूर्व संगठन अध्यक्षो में दिखाई देता रहा है. जिसकी प्रमुख वजह अध्यक्ष का, राज्यमंत्री रहते हुए जैसा व्यवहार रहा था, वह हारने के बाद एकाएक संगठन अध्यक्ष बनाए जाने के बाद वैसा ही रहा, कहा जाये तो राज्यमंत्री के तौर पर बनाए अपने व्यवहार को अध्यक्ष बनने के बाद भी उन्होंने बरकरार रखा. जिसका खामियाजा, हालिया हुए लोकसभा चुनाव में देखने को मिला. वह केवल, नाम के अध्यक्ष के रूप में नजर आए, चूंकि प्रत्याशी तय करने से लेकर प्रत्याशी की घोषणा और उसके बाद चुनाव की रणनीति में भी उनसे ज्यादा बाहरी नेताओं का हस्तक्षेप रहा. यही कारण रहा कि संगठन से जुड़े पदाधिकारी और कार्यकर्ता तथा नेता, लोकसभा चुनाव में उस उर्जा से काम नहीं कर सके, जिस उर्जा से वर्ष 2004, 2019 के लोकसभा चुनाव में किया था.  

लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आगमन के बाद भी भाजपा, अपने प्रचार के टेम्पो को वह रफ्तार नहीं दे सकी, जो उसे देना था. यही कारण है कि भाजपा 2024 के लोकसभा में जीत को पुख्ता तौर पर कुछ भी कह नहीं पा रही है. जबकि बूथो के आंकड़े और मतदान दलो पर कार्यकर्ताओं से रीडिंग लेने के बाद भी भाजपा असंमजस में दिखाई दे रही है.  

यही कारण है कि बालाघाट संसदीय क्षेत्र में पार्टी की सुनिश्चित जीत, अब अनिश्चित नजर आने लगी है, जिसका फीडबैंक, प्रदेश और केन्द्रीय नेतृत्व तक गया है. सूत्रों की मानें तो बीते दिनों केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भोपाल पहुंचे थे. यहां उन्होंने सीएम के साथ प्रदेश की 06 सीटो में प्रथम चरण में हुए लोकसभा चुनाव और जहां हो रहे तथा आगामी समय में होने वाले प्रदेश की लोकसभा सीटो को लेकर समीक्षा की. बताया जाता है कि जहां लोकसभा चुनाव हो गए है, वहां के विधायकों से चुनाव की रिपोर्ट भी मांगी गई है. भाजपा के गढ़, बालाघाट जिले में विधानसभा चुनाव में भाजपा की चार सीटो पर हार और लोकसभा चुनाव की फीडबैक के बाद यह माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश में मंत्रीमंडल का विस्तार हो सकता है और बालाघाट जिले के दो विधायको राजकुमार कर्राहे और गौरव पारधी में से किसी एक को मंत्रीमंडल में स्थान देकर बालाघाट में भाजपा की कमजोर होती स्थिति को मजबूत करने पर विचार किया जा सकता है.


Web Title : RAJKUMAR AND GAURAVS FATE MAY OPEN AFTER LOK SABHA ELECTIONS, MAY BE MADE MINISTERS