आंध्रप्रदेश : अगर आप इंसान है तो जरूरी है कि वक्त आने पर आपकी इंसानियत नजर आए. लेकिन इन दिनों होने वाली घटनाओं को देखकर लग रहा है कि लोगों की इंसानियत मर गई है.
आंध्रप्रदेश में विशाखापत्तनम के वाइजैग में ऐसी ही एक घटना हुई. वाइजैग में दिन-दहाड़े शराब के नशे में एक शख्स सरेआम एक महिला का रेप करता रहा और आस पास के लोग देखते रहे. यह घटना अंधेरी काली रात में नहीं बल्कि दोपहर 2 बजे हुई है. यह कोई आम घटना नहीं है. यह घटना हमारी असंवेदनशील और डरपोक मानसिकता को दर्शाती है.
क्यूँ हमे फर्क नहीं पड़ता
कल्पना कीजिए वो क्या माहौल होगा जब खुलेआम एक आदमी एक औरत को नोचता-खसोटता रहा और आसपास के लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. आखिर ऐसी क्या वजह है कि हमारी आत्मा मर गई है. इंसानियत को कोई नामोनिशां नहीं दिखता. क्या हम डरपोक हैं? हमारी व्यस्तता बहुत बढ़ गई है? या हमारा समाज इतना असंवेदनशील हो गया है कि उसे किसी भी चीज से कोई फर्क नहीं पड़ता?
वाइजैग में रेप करने वाला शख्स शराब के नशे में धुत्त था. लेकिन आस पास के लोग जो वहां तमाशबीन बने हुए थे क्या वे भी किसी नशे में थे? कथित तौर पर सभ्य समाज के लोग.. . जो उस फुटपाथ से बचकर गुजर रहे थे क्या वो इस घटना के लिए दोषी नहीं हैं.
क्यों हम मूकदर्शक बनकर तमाशा देखते हैं.
उस वक्त एक ऑटो रिक्शा चालक इस पूरी घटना का वीडियो बना रहा था. क्या वो इस गुनाह का हिस्सेदार नहीं है? शराब के नशे में धुत्त शख्स को रोकने या उसे पकड़ने की हिम्मत क्यों नहीं कोई दिखा पाया? हालांकि ऑटो रिक्शा ने वह वीडियो ले जाकर पुलिस को दिखाया, जिसके बाद पुलिस ने उस शख्स को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन क्या इससे उसके चुप होकर तमाशा देखने का गुनाह कम हो जाता है.
हमारा समाज डरपोक है, जिसकी वजह से अपराधियों की ताकत बढ़ती है. वाइजैग की दोपहर हो या फिर मुंबई की लोकल ट्रेन. क्यों हम मूकदर्शक बनकर तमाशा देखते हैं. जबकि यह जानते हैं कि यहां कोई सुरक्षित नहीं है. कोई भी घटना कभी भी किसी के साथ हो सकती है. वह महिला आपकी बहन हो सकती है. बीबी हो सकती है. दोस्त हो सकती. आप खुद हो सकती हैं? आप में किसी को रोकने की ताकत है या नहीं.. . उससे कहीं ज्यादा जरूरी है कि आप उसे रोकने की कोशिश करते हैं या नहीं?
क्या हमारा सिर शर्म से नहीं झुकाना चाहिए
मुंबई के लोकल ट्रेन में एक महिला के साथ जो हुआ वो हमारा सिर शर्म से झुकाने के लिए काफी है. मुंबई की लोकल ट्रेन, जहां हर वक्त भीड़ रहती है. उसके बावजूद एक महीने में यह दूसरी बार है जब मुंबई लोकल में कोई शख्स किसी महिला के सामने हस्तमैथुन करने लगा. उस शख्स को यह भरोसा था कि उसे रोकने की हिम्मत किसी में नहीं है.
आमतौर पर जब कोई लड़की या महिला घर से बाहर निकलती है तो उसे सौ तरह की हिदायतें दी जाती हैं. इतने से भी बात न बने तो घर के सदस्यों के साथ ही बाहर निकलने की सलाह दी जाती है. लेकिन इस घटना के बाद मान सकते हैं परिवार साथ रहने पर भी विकृत मानसिकता वाले लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता. असल में ऐसे लोगों को कहीं न कहीं यह भरोसा होता है कि इस तरह के दृश्य देखकर लोग या तो मुंह छिपा लेंगे या मुंह मोड़ लेंगे.
मुंबई लोकल ट्रेन में 23 साल की युवती अपने परिवार के साथ सफर कर रही थी. ट्रेन के दूसरे हिस्से में मौजूद शख्स उस युवती को देखकर अश्लील हरकतें करने लगा. युवती के शिकायत करने पर पुलिस ने उस शख्स को गिरफ्तार कर लिया लेकिन आस-पास के लोग अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने की दौड़ में लगे रहे.
इतना ही नहीं मुंबई लोकल ट्रेन में सफर कर रही 14 साल की एक लड़की छेड़खानी से बचने के लिए ट्रेन से कूद गई. इस घटना में उस लड़की का एक पैर टूट गया. मामला यह था कि एक लड़का लोकल ट्रेन में लड़कियों के डब्बे में चढ़ गया. उस लड़की ने जब इसका विरोध किया तो वह लड़का उसे छेड़ने लगा. वहां खड़ी महिलाओं की भीड़ भी किसी दूसरी भीड़ की तरह तमाशबीन बनी रही. लड़के की हरकतें बढ़ने लगी थी. ऐसे में बचने का कोई तरीका न देखकर 14 साल की वह लड़की ट्रेन से कूद गई. बेवजह किसी भी मुद्दे पर गला फाड़कर राय देने वालों की भारत में कमी नहीं है लेकिन सही मौके पर बोलने से सबको डर क्यों लगता है?
क्या खुद को इस तरह से बचाकर हम अपने लिए और अपनी आगे आने वाली पीढ़ी के लिए बेहतर भविष्य का निर्माण कर रहे हैं. क्या हर जिम्मेदारी पुलिस और सरकार पर डालने से हमारा दोष कम हो जाएगा? क्या हमारी भलाई सिर्फ चुप रहने में है. अगर हम अब भी अपनी चुप्पी नहीं तोड़ेंगे तो एक दिन हमारा तमाशा भी बन सकता है. और तब तमाशबीनों की शिकायत करने का हक हमारे पास भी नहीं होगा.